कभी झारखंड में इन नेताओं के नाम से होती थी वोटों की बारिश, अब पहचान को तरस रहे
झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे से बीजेपी ही नहीं बल्कि बिहार में उसके सहयोगी जेडीयू और एलजेपी को भी करारा झटका लगा है. खुद एलजेपी और जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष अपनी अपनी जमानत नहीं बचा पाए.
पटना: झारखंड राज्य बनने से पहले बिहार का हिस्सा रहे इस राज्य में लालू प्रसाद यादव, नीतीश कुमार और रामविलास पासवान के अलावा सिर्फ शीबू सोरेन ही मशहूर नेता हुआ करते थे. इनके नाम से ही वोट मिलता था. अब ये नेता अपने वोट पर पकड़ नहीं रख पा रहे लिहाज़ा अब पहचान का संकट हो चला है. पड़ोसी राज्य में इनकी स्थिति सिर्फ वोटकटवा तक नहीं है, बल्कि ज़मानत जब्त होने वाले निर्दलीयों की तरह हो चुकी है.
झारखंड विधानसभा चुनाव के नतीजे से बीजेपी ही नहीं बल्कि बिहार में उसके सहयोगी जेडीयू और एलजेपी को भी करारा झटका लगा है. हालांकि बिहार में एकजुट ये तीनों पार्टियां झारखंड में अलग-अलग चुनाव लडीं. लेकिन नतीजा क्या हुआ, बीजेपी को छोड़कर जेडीयू और एलजेपी एक फीसदी वोट नहीं पा सकीं जबकि दावा अपने बूते पर सरकार बनाने का था. बिहार में विपक्ष की मुख्य पार्टी आरजेडी को छोड़कर कोई पार्टी एक फीसदी वोट भी नहीं ला पायी. राजद झारखंड मुक्ति मोर्चा और कांग्रेस के साथ गठबंधन में शामिल थी और 7 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. इस वजह से बिहार से सटे इलाकों में राजद का प्रदर्शन बेहतर रहा और उसे 2.76 प्रतिशत वोट मिला. एकीकृत बिहार में जेडीयू और लोजपा जैसी पार्टियां हमेशा सत्ता के केंद्र में रहीं. झारखंड अलग होने के बाद भी समता पार्टी और राजद हमेशा कुछ सीट लाती रही हैं. 2009 तक जेडीयू 2 सीट पर चुनाव जीती थी और राजद 5 पर. वहीं 2014 विधानसभा चुनाव में राजद और जेडीयू शून्य सीट पर सिमट गई थी. खुद एलजेपी और जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष अपनी अपनी जमानत नहीं बचा पाए.
डेढ़ फीसदी वोट पर ही सिमट गईं आधा दर्जन छोटी पार्टियां
विधानसभा चुनाव में एक दर्जन से ज्यादा छोटी पार्टियां अपनी किस्मत आजमा रहीं थी. चुनाव से पहले बड़े-बड़े दावे करने वाली ये पार्टियां चुनाव में पूरी तरह धराशायी हो गयीं. स्थिति यह थी कि आधा दर्जन से ज्यादा छोटी पार्टियों को चुनाव में नोटा से भी कम वोट मय्यशर हुए. 90 फीसदी से ज्यादा विधानसभा क्षेत्रों में इनके उम्मीदवार अपनी जमानत भी नहीं बचा पाए हैं. सभी पार्टियों को मिले कुल वोट का योग मात्र 1.5 फीसदी है. इनमें जेडीयू, लोजपा, तृणमूल कांग्रेस, सपा जैसी पार्टियां भी शामिल हैं.
दशमलव में सिमटा जेडीयू का ग्राफ
बिहार के नीतीश मॉडल को झारखंड में लागू करने का दावा चुनाव में चारों खाने चित हो गया. कभी राज्य में छह विधायकों वाली इस पार्टी का मत प्रतिशत दशमलव के नीचे सिमट कर रह गया. विधानसभा चुनाव में पार्टी 45 सीटों पर चुनाव लड़ी थी. पार्टी को सभी सीटों पर कुल मिलाकर 1.25 लाख से भी कम 0.73 फीसदी वोट मिले. पार्टी की सुधा चौधरी को छतरपुर में सर्वाधिक 8768 वोट मिले. इस पर खुद जेडीयू के प्रदेश अध्यक्ष ने कहा कि पार्टी हार के कारणों की समीक्षा करेगी. खोये जनाधार को पाने के लिए आगे भी आम लोगों की समस्यओं को पार्टी उठाती रहेगी.
इससे भी बुरी स्थिति राज्य में लोजपा, सपा, आईयूएमएल और एसएचएस की रही. लोजपा 33 सीट पर लड़ी और उसे कुल 44704 वोट मिले .वहीं राजद 7 सीट पर चुनाव लड़ के 413167 वोट लेकर आई और उसके एक उम्मीदवार को जीत मिली. जबकि 3 सीट पर पार्टी बहुत कम वोट से हारी.
एआईएमआईएम की शानदार एंट्री
असदउद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) ने पहली बार झारखंड चुनाव में अपना उम्मीदवार उतारा था. पार्टी 14 सीटों पर चुनाव लड़ रही थी और सभी सीटों पर अन्य पार्टियों से बेहतर स्थिति इनकी रही. चुनाव में पार्टी को लगभग डेढ़ लाख वोट मिले हैं. इसमें पार्टी के डुमरी प्रत्याशी को 24 हजार, मांडर के प्रत्याशी को 23592 और बरकट्ठा के प्रत्याशी को 18 हजार से भी अधिक वोट मिले हैं.