'लाभ के पद' मामले में हेमंत सोरेन अकेले नहीं, सोनिया गांधी, शिबू सोरेन समेत इन नेताओं ने गंवाई थी सदस्यता
Office For Profit: हालांकि सीएम हेमंत सोरेन की मुख्यमंत्री की कुर्सी चली भी जाए तो 'UPA'दोबारा सरकार बनाने का दावा पेश कर सकती है, क्योंकि सरकार बनाने के लिए उनके पास विधायकों की पर्याप्त संख्या है.
Jharkhand Political Crisis: झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को कभी भी सीएम पद से इस्तीफा देना पड़ सकता है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पर आरोप है कि उन्होंने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए अपने कार्यकाल के दौरान खुद के नाम से खनन पट्टा आवंटित करवा लिया. पद के लाभ मामले में सोरेन कड़ी दर कड़ी ऐसे फंसते नजर आ रहे हैं जिससे उनका निकल पाना मुश्किल दिखाई दे रहा है. इस मामले में उनकी विधानसभा सदस्यता को लेकर भारत निर्वाचन आयोग ने अपनी सलाह राज्यपाल रमेश सिंह बैंस को सौंप दी है. राज्यपाल उनकी अयोग्यता को लेकर कभी भी फैसला ले सकते हैं. फिलहाल इसे लेकर चुनाव आयोग ने सीलबंद लिफाफे में अपनी राय राज्यपाल को दे दी है.
इन नेताओं ने गंवाई थी सदस्यता
मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन लाभ के पद मामले में घिरने वाले कोई पहले जनप्रतिनिधि नहीं है. इससे पहले भी कई नेता रहे हैं जो इस मामले में घिर चुके हैं. जेएमएम और झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री शिबू सोरेन, कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी और जया बच्चन भी इस मामले में घिर चुकी हैं. इसके चलते इन सभी को अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी थी. बता दें कि चुनाव आयोग का इस मामले में हमेशा से सख्त रुख रहा है. माना जा रहा है कि आयोग हेमंत सोरेन के मामले में भी सख्त रुख अख्तियार कर सकता है.
शिबू सोरेन को छोड़नी पड़ी थी राज्यसभा
चुनाव आयोग से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक, लाभ के पद का लेकर पहला मामला 2001 में आया था, जब झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) के वरिष्ठ नेता और वर्तमान अध्यक्ष शिबू सोरेन की ऐसे ही एक मामले में राज्यसभा की सदस्यता रद कर दी गई थी. शिबू सोरेन पर आरोप था कि राज्यसभा के नामांकन के दौरान उन्होंने अपने को किसी 'लाभ के पद' पर होने की बात छुपाई थी, जबकि शिबू सोरेन उस समय झारखंड क्षेत्र स्वायत्त परिषद के अध्यक्ष थे. हंगामें के बाद यह मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा. सुप्रीम कोर्ट ने इसे रद्द करने का आदेश दिया था.
दूसरे मामले में सोनिया गांधी घिरी थीं
दूसरा मामला 2006 में आया, जिसमें कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को रायबरेली की अपनी लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देना पड़ गया था. सोनिया गांधी पर आरोप था कि रायबरेली से लोकसभा की सांसद के साथ वो यूपीए सरकार के समय गठित 'राष्ट्रीय सलाहकार परिषद' की चेयरमैन भी थीं. जिसे भारत निर्वाचन आयोग ने लाभ का पद करार दिया गया था. इससे जुड़ा तीसरा अहम मामला भी 2006 में ही आया. इस मामले में राज्यसभा सांसद जया बच्चन को राज्यसभा की सदस्यता से इस्तीफा देना पड़ा था. उन पर आरोप था कि वह सांसद के साथ-साथ 'उत्तर प्रदेश फिल्म विकास निगम' की चेयरमैन की जिम्मेदारी भी संभाल रही हैं. उन्होंने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का भी दरवाजा खटखटाया, लेकिन उन्हें वहां से भी कोई राहत नहीं मिली थी.
क्या होता है लाभ का पद
भारत के संविधान में प्रावधान है कि संसद और राज्य विधानसभाओं को किसी भी तरह से सरकारी दबाव से मुक्त रखना है. संविधान के अनुच्छेद-102 (1)ए के तहत कोई भी सांसद और विधायक अपने कार्यकाल के दौरान ऐसे किसी पद पर नहीं रह सकता है, जहां से उसे वेतन, भत्ता या फिर दूसरा आलाउंस मिलता हो. जनप्रतिनिधित्व से जुड़े कानून की धारा 9 (ए) के तहत भी सांसद और विधायक कोई अन्य पद नहीं ले सकते हैं. लाभ के पद के दायरे में किसी पद पर नियुक्ति के साथ ही किसी तरह का सरकारी लाभ यानी कोई लाइसेंस और पट्टा आदि हासिल करना भी शामिल है. सीएम हेमंत सोरेन का मामला इसी कानून का उल्लंघन है.
तो बची रहेगी जेएमएम की सरकार!
सूत्रों के अनुसार दावा है कि निर्वाचन आयोग ने हेमंत सोरेन को विधानसभा की सदस्यता से अयोग्य करने की सलाह दी है. हालांकि अभी तक राज्यपाल की तरफ से कोई अंतिम निर्णय नहीं लिया गया है. हालांकि अगर सीएम हेमंत सोरेन की मुख्यमंत्री की कुर्सी चली भी जाए तो 'UPA'दोबारा सरकार बनाने का दावा पेश कर सकती है, क्योंकि सरकार बनाने के लिए उनके पास विधायकों की पर्याप्त संख्या है. सोरेन सरकार में झारखंड मुक्ति मोर्चा के अलावा, कांग्रेस और राष्ट्रीय जनता दल शामिल हैं. झारखंड की मौजूदा विधानसभा में जेएमएम के पास 30, कांग्रेस के 16 और आरजेडी के पास 1 विधायक हैं. जबकि सोरेन सरकार को सापीआई (एमएल) की एक और दो निर्दलिय विधायकों का भी समर्थन हासिल है.