Jharkhand Political Crisis: झारखंड की सियासत में इन दिनों घमासा मचा हुआ है. एक ओर जहां आईएएस पूजा सिंघल के घोटालों को लेकर राज्य की मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी लगातार झारखंड की हेमंत सरकार पर हमला बोल रही है तो वहीं दूसरी ओर कांग्रेस के विधायकों का एक धड़ा हेमंत सरकार पर अनदेखी किए जाने का आरोप लगाकर हमला बोल रहा है. कांग्रेस विधायक इरफान अंसारी 7-8 विधायकों के साथ 14 मई को दिल्ली में कांग्रेस आलाकमान से मुलाकात करने जाएंगे. ऐसे में  सबसे बड़ा सवाल है कि झारखंडे में रहेगी या जाएगी हेमंत सरकार?


झारखंड में इन दिनों हर किसी के जुबान पर एक ही सवाल है क्या हेमंत अपनी गद्दी बचा पाएंगे? इन्हीं सवालों के बीच झारखंड की सियासत भी झूल रही. आइए आपको बताते हैं कि क्या वजह है झारखंड में इस सियासी संकट की जो मौजूदा झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार पर लगातार मंडरा रहा है.


सीएम हेमंत पर क्या है आरोप?
झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन चुनाव आयोग द्वारा नोटिस को लेकर फिलहाल आश्वस्त नज़र आ रहे हैं.चुनाव आयोग द्वारा नोटिस का जवाब देने के लिए सोरेन ने एक महीने का समय मांगा था.जिसके लिए उन्हें फिलहाल दस दिन का समय भी मिल चुका है. मुख्यमन्त्री द्वारा अपने नाम से खनन लीज़ लिए जाने के बाद बीजेपी ने राज्यपाल से कार्रवाई की मांग की थी.जिसके बाद राज्यपाल ने मुख्य सचिव से जानकारी जुटाने के बाद शिकायत को चुनाव आयोग भेज दिया.बाद में दिल्ली जाकर प्रधानमंत्री और गृह मंत्री से बातचीत भी की थी.


चुनाव आयोग का है अहम रोल!
चुनाव आयोग ने शिकायत को संज्ञान में लेते हुए पहले राज्य के मुख्य सचिव को मामले की पूरी जानकारी देने के लिए नोटिस भेजा. मुख्य सचिव से जानकारी मिलने के बाद आयोग ने अब खुद मुख्यमंत्री को नोटिस भेजा है और पूछा है कि आखिर क्यों उन के खिलाफ जन प्रतिनिधि द्वारा भ्रष्टाचार के आरोप में कदम न उठाया जाए.


बीजेपी का दावा हेमंत कुछ दिन के मेहमान!
वहीं मुख्य विपक्षी पार्टी बीजेपी का आरोप है कि खुद को खनन पट्टा दे कर मुख्यमंत्री ने लोक प्राधिनितव अधिनियम का उल्लंघन किया है.इसलिए अधिनियम के सेक्शन 9(a) और भारत के सविंधान के अनुछेद 19(e) के तहत सोरेन को अयोग्य घोषित कर देना चाहिए.सोरेन की तरफ से उनकी पार्टी झारखंड मुक्ति मोर्चा का कहना है कि मुख्यमंत्री के नाम पर पट्टे का आवंटन एक प्रशासनिक भूल थी जिसे बाद में रद्द कर दिया था. इसके अलावा रद्द करने के समय तक पट्टे पर कोई भी काम शुरू नहीं किया गया था, इसलिए इस कानून के प्रावधान इस मामले में लागू नहीं होते हैं.विपक्ष के खिलाफ सताधारी पार्टियां एकजुट नज़र आ रही है.


हेमंत की सफाई में कितना दम!
सरकार आयोग को जवाब देने के लिये एक्सपर्ट वकील और विशेषज्ञों की राय लगातार ले रही है. विधि विशेषज्ञ की माने तो मुख्यमंत्री के खिलाफ राज्यपाल फैसला लेने के लिए स्वतंत्र है और वो अंतिम होगा .हालांकि कई मामले ऐसे हैं जिसे हाई कोर्ट में चुनोती दी गयी है.हाई कोर्ट ने इसमें हस्तक्षेप भी किया है.


क्या कहते हैं विश्लेषक?
कई भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ मुहिम छेड़ कर सज़ा दिलवा चुके निर्दलीय विधयाक सरयू राय इस मामले को आफिस ऑफ प्रॉफिट से अलग कॉन्ट्रैक्ट का मानते हैं.सरयू राय का कहना है कि माइंस लीज़ आफिस ऑफ प्रॉफिट के अंतर्गत नही आता . जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी जन प्रतिनिधियों के खिलाफ पहले दो फैसलों में माना है.


हेमंत के पास क्या है विकल्प?
अब देखना होगा कि मुख्यमंत्री चुनाव आयोग के नोटिस का क्या जवाब देते हैं और फिर चुनाव आयोग क्या कदम उठाता है. ऐसे में अगर हेमंत सोरेन अयोग्य करार दिए जाते हैं तो उनकी सरकार फिर भी सुरक्षित दिख रही है.रही बात मुख्यमंत्री की तो उनके पिता शिबू सोरेन के अलावा उनके कैबिनेट में भी पार्टी के सीनियर नेता जैसे चम्पई सोरेन,जगरनाथ महतो चेहरे हैं.खुद हेमंत सोरेन भी आयोग होने के बाद भी मुख्यमंत्री पद की फिर से शपथ ले सकते हैं पर उन्हें 6 महीनों के अंदर फिर से किसी सीट से विधायक का चुनाव जीतना होगा.


कांग्रेस पार्टी के हाथ में चाभी!
झारखंड में कांग्रेस पार्टी के अंदर कलह है.विधायकों की गुटबंदी सामने आता रहता है.ताजा मामला विधायक इरफान अंसारी से जुड़ा है.अंसारी खुद और अपने करीबी विधायकों को मंत्री पद दिलाना चाहते हैं.ऐसे में कांग्रेस मोल भाव कर सकती है.


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