झारखंड में जज की संदिग्ध मौत का मामला : सुप्रीम कोर्ट ने कहा- अगर जजों की सुरक्षा पर राज्य सरकारें गंभीर नहीं, तो हमें ही देना पड़ेगा आदेश
झारखंड में जज की संदिग्ध मौत के मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर जजों की सुरक्षा पर राज्य सरकारें गंभीर नहीं होंगी तो हमें ही आदेश देना पड़ेगा.
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नई दिल्लीः देश भर में जजों पर पड़ने वाले आपराधिक दबाव पर सुप्रीम कोर्ट ने चिंता जताई है. झारखंड में एक जज की संदिग्ध मौत के मामले को सुनते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा, "यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि जब जज खुद को मिलने वाली धमकी की शिकायत करते हैं, तो पुलिस या सीबीआई उसे गंभीरता से नहीं लेते. राज्य सरकारें जजों की सुरक्षा को लेकर गंभीर नहीं हैं. इसलिए, यह जरूरी है कि सुप्रीम कोर्ट के इस मामले में जरूरी आदेश दे."
सुप्रीम कोर्ट ने मामले पर खुद संज्ञान लेते हुए यह सुनवाई शुरू की है. सबसे पहले झारखंड सरकार की तरफ से राज्य के एडवोकेट जनरल राजीव रंजन ने कोर्ट को यह जानकारी दी कि मामले की जांच सीबीआई को सौंप दी गई है. इस पर चीफ जस्टिस एन वी रमना ने कहा, "यानी आप ने अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया है." एडवोकेट जनरल ने जवाब दिया, "ऐसा नहीं है. राज्य सरकार ने 22 सदस्यों की एसआईटी बनाई थी. दो लोगों को मामले में तुरंत गिरफ्तार किया गया था. धनबाद बंगाल से लगती सीमा में पड़ता है. इसलिए, अपराधियों का संबंध दूसरे राज्य से भी होने की आशंका को देखते हुए मामला सीबीआई को सौंपा गया है." इस पर कोर्ट ने कहा कि वह मामले में सीबीआई को भी सुनना चाहेगा. इसके लिए मामला सोमवार, 9 अगस्त को लगाया जा रहा है.
इसके बाद देश भर में जजों की सुरक्षा के व्यापक मुद्दे पर सुनवाई शुरू हुई. चीफ जस्टिस एन वी रमना ने कहा, "पिछले काफी समय से जज धमकी और हमलों का शिकार हो रहे हैं. ज्यादातर मामलों में पुलिस और दूसरी एजेंसियां निष्क्रिय बनी बैठी रहती हैं. वह बात को गंभीरता से नहीं लेते." एटॉर्नी जनरल ने के के वेणुगोपाल ने कोर्ट की चिंता से सहमति जताते हुए कहा, "यह बहुत सामान्य है कि जब किसी बड़े गैंगस्टर का मामला हो तो जज को धमकी भरा फोन आए. इस तरह के फोन में यह कहा जाता है- हमें पता है कि आप की बेटी इस नंबर की गाड़ी से, इतने बजे, इस स्कूल में जाती है. न्याय के प्रति अपने कर्तव्य और परिवार की चिंता के बीच फंसा जज ऐसे में मामले को 6 महीने के लिए स्थगित कर देता है. देश में कई ऐसे मामले जो शायद सिर्फ इसी वजह से 10-15 साल तक लटके रहते हैं."
इस पर चीफ जस्टिस ने कहा, "ऐसी स्थिति को स्वीकार नहीं किया जा सकता है. कोर्ट में पहले से इस विषय पर एक याचिका लंबित है. हम सभी राज्यों को यह मौका दे रहे हैं कि वह 17 अगस्त तक इस पर जवाब दाखिल करें. हमें एटॉर्नी जनरल से भी अनुरोध करते हैं कि वह मामले पर अपने सुझाव दें." कोर्ट ने आगे कहा, "यह बहुत चिंता की बात है कि जजों के आवासीय इलाकों में राज्य पर्याप्त सुरक्षा उपलब्ध नहीं करवाते. झारखंड का धनबाद जैसा शहर कोल माफिया का गढ़ रहा है. वहां इस तरह की कई घटनाएं हुई हैं. लेकिन एक बार फिर एक जज आवासीय इलाके के नजदीक ही मारा जाता है. यह दिखाता है कि राज्य जजों की सुरक्षा को कितनी गंभीरता से लेते हैं."
जस्टिस सूर्यकांत के साथ बैठे चीफ जस्टिस ने कोर्ट की छवि खराब कर जजों पर दबाव दबाव बनाए जाने का भी जिक्र किया. उन्होंने कहा, "एक नया चलन शुरू हुआ है. जब कोई प्रभावशाली व्यक्ति मुकदमे का सामना कर रहा होता है और मनचाहा आदेश नहीं मिलता तो कोर्ट की छवि खराब करना शुरू कर दिया जाता है. यह सब कुछ बहुत चिंताजनक है. न्याय प्रणाली सही ढंग से काम कर सके, इसके लिए इन बातों का समाधान निकालना जरूरी है."
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