जिन्ना का सेना प्रमुख बनाने का ऑफर भी नहीं बदल पाया था मोहम्मद उस्मान का मन
मोहम्मद अली जिन्ना मोहम्मद उस्मान की क्षमता को पहचानते थे. जिन्ना ने उनको पाकिस्तान सेना में शामिल होने पर आर्मी चीफ बनाने तक का ऑफर दिया जिसे उन्होंने ठुकरा दिया और भारतीय सेना में ही रहने के फैसले पर अडिग रहे.
नई दिल्लीः भारत- पाकिस्तान के बंटवारे के बाद दोनों देशों में सेना को भी बांटा जा रहा था. सेना का बंटवारा भी धर्म के आधार पर हो रहा था. अधिकांश मुस्लिम सैनिक और अफसर पाकिस्तान की तरफ शामिल हो रहे थे. लेकिन बलूच रेजिमेंट के ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान ने भारत की सेना में ही रहने का फैसला किया.
कौन थे मोहम्मद उस्मान
मोहम्मद उस्मान उत्तरप्रदेश के आजमगढ़ में 15 जुलाई 1912 में जन्में थे. उनके पिता उन्हें प्रशासनिक अधिकारी बनाना चाहते थे लेकिन उन्होंने सेना को चुना.
जिन्ना का ऑफर ठुकराया
उस्मान द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान बर्मा में सेवाएं दे चुके थे. इसलिए मोहम्मद अली जिन्ना उनकी क्षमता को पहचानते थे. जिन्ना ने उनको पाकिस्तान सेना में शामिल होने पर आर्मी चीफ बनाने तक का ऑफर दिया जिसे उन्होंने ठुकरा दिया और भारतीय सेना में ही रहने के फैसले पर अडिग रहे.
रॉयल मिलट्री एकेडमी से ट्रैनिंग
मोहम्मद उस्मान ने रॉयल मिलिट्री अकादमी सैंडहर्स्ट से ट्रैनिंग के लिए आवेदन किया. वे 1932 में इंगलैंड गए और 1934 में पास हुए. 1935 में उन्हें बलूच रेजीमेंट में नियुक्त मिली. 1944 में द्वितीय विश्व युद्ध में उन्होंने बर्मा में गए. उन्होंने ने 10वीं बलूच रेजिमेंट की 14वीं बलाटियन की 1945 से 1946 तक कमान संभाली. आजादी के बाद बलूच रेजिमेंट पाकिस्तान में चली फिर वे डोगरा रेजिमेंट में आ गए.
एक हजार से ज्यादा दुश्मनों को मार गिराया
1947 में कबायली घुसपैठियों के समय वे जम्मू-कश्मीर में तैनात थे और उन्हें नौशेरा की सुरक्षा की जिम्मेदारी दी गई . पाकिस्तान की तरफ से लगभग 5 हजार कबायलियों ने नौशेरा पर हमला बोला. वे मस्जिद की आड़ लेकर हमला कर रहे थे, उस्मान ने कबाइलियों पर सबसे पहले हमला शुरू किया. भारतीय सैनिकों की संख्या कम होने के बावजूद उन्होंने अच्छी टक्कर दी. भारत के 22 सैनिक शहीद हुए और उन्होंने 1000 से दुश्मनों को मार गिराया.
मात्र 36 साल की आयु में हुए शहीद
36 साल की आयु में ही वे पूरी ब्रगेड संभाल रहे थे. 3 जुलाई 1948 को यिद्ध के दौरान अचानक तोप का गोला उनके पास आकर गिरा और वे शहीद हो गए. उनकी वीरता और अदम्य साहस के लिए उन्हें मरणोपरांत 'महावीर चक्र' सम्मान दिया गया.
यह भी पढ़ें-
Live Updates: रिलायंस की 43वीं एजीएम शुरू, मुकेश अंबानी बोले- कोरोना मानव इतिहास का सबसे बड़ा संकट