जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल: इंडोनेशिया पर रामायण की अमिट छाप के बारे में आप कितना जानते हैं?
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के चौथे दिन, तीन इतिहासकार- विलियम डेलरिम्पल, मालिनी सरन और विनोद सी खन्ना इंडोनेशिया की समृद्ध रामायण परंपराओं पर चर्चा करने के लिए एक साथ आए.
जयपुर लिटरेचर फेस्टिवल के चौथे दिन, तीन इतिहासकार- विलियम डेलरिम्पल, मालिनी सरन और विनोद सी खन्ना इंडोनेशिया की समृद्ध रामायण परंपराओं पर चर्चा करने के लिए एक साथ आए. चर्चा सारण और खन्ना की किताब द रामायण इन इंडोनेशिया पर आधारित थी. लेखकों ने इसे राम की कहानी का शायद सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली विदेशी वर्णन कहा.
डेलरिम्पल ने कहा, "यह एक उल्लेखनीय बात है और अधिकांश भारतीय इससे अनजान हैं. हिंदू और बौद्ध धर्म के कुछ सबसे शानदार, परिष्कृत और बड़े स्मारक भारत से बहुत दूर इंडोनेशिया और कंबोडिया में स्थित हैं.''
विनोद सी खन्ना ने कहा, कि मध्य जावा में राम कथा की दो शानदार रीटेलिंग दिखाई दीं. एक गढ़ा हुआ वर्णन और एक पुराना जावानीस वाला वर्णन. विनोद सी खन्ना ने कहा कि जावानीस रामायण ने अपनी एक अलग पहचान बनाई. पुरानी जावानीस रामायण संस्कृत शब्दावली में समृद्ध थी, लेकिन एक पूरी तरह से अलग भाषाई समूह से संबंधित थी. लेखक का नाम अभी भी अज्ञात है. इसका प्राथमिक स्रोत वाल्मीकि रामायण नहीं है, बल्कि एक कम ज्ञात शास्त्रीय संस्कृत कविता भट्टिकव्य है, जिसका नाम इसके लेखक भट्टी के नाम पर रखा गया है. ”
खन्ना ने कहा, ''काकविन रामायण (काकविन प्राचीन जावा और बाली के कावी भाषा में लिखे काव्य को कहते हैं) केवल भट्टिकव्य की नकल नहीं है, यह सबसे प्रभावशाली ट्रांसक्रिएशन का काम है.''
उनके सह-लेखक सरन ने जावा और बाली की कलाओं में रामायण के महत्व पर प्रकाश डाला. उन्होंने समझाया कि मंदिरों, शाही दरबारों और गाँव के प्रांगणों में "रामायण के निहित गुण, मनोरंजन, निर्देश और संपादन, उनकी विशेष स्थिति को बढ़ावा देते हैं."
खन्ना ने आगे कहा: “पुराना जावानीस कवि स्पष्ट रूप से एक पढ़ा-लिखा संस्कृत विद्वान था. हालांकि, कई हिस्सों में वे भट्टी से आगे निकल जाते हैं और सीधे वाल्मीकि से प्रेरणा लेते हैं. वह अपने कार्यों में अन्य संस्कृत क्लासिक्स का भी स्वतंत्र रूप से और कल्पनात्मक रूप से उपयोग करते हैं. काकाविन रामायण में निश्चय ही नाटक का भाव अधिक है. सदियों से काकाविन के सटीक संचरण के लिए बाली की पीढ़ियों के बाद की पीढ़ियां जिम्मेदार हैं. उन्होंने बड़ी मेहनत से इसे ताड़ के पत्तों की पांडुलिपियों पर कॉपी किया. ”
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