JNU Counter Terrorism Course: JNU में पढ़ाया जाएगा ' काउंटर टेररिज्म', कोर्स को लेकर बवाल- जानें क्या है पूरा मामला
JNU Counter Terrorism Course: CPI के राज्यसभा सांसद बिनॉय विश्वम ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को पत्र लिखकर पाठ्यक्रम में शामिल होने वाली सामग्री की गलत प्रकृति पर आपत्ति जताई है.
JNU Counter Terrorism Course: JNU के इंजीनियरिंग के 5वें साल के स्टूडेंट्स के लिए एक वैकल्पिक कोर्स की शुरुआत को लेकर विवाद खड़ा हो गया है. दरअसल इस नये कोर्स 'काउंटर टेरररिज़्म' में एक सिलेबस जोड़ा गया है जिसका नाम 'कट्टरपंथी धार्मिक आतंकवाद' है. ( Counter Terrorism, Asymmetric Conflicts and Strategies for Cooperation among Major Powers) पाठयक्रम में कट्टरपंथी आतंकवाद का ज़िक्र किया गया है और इस बात का जिक्र भी किया गया है कि कैसे भारत इसका शिकार हुआ. इसे लेकर भारत का क्या स्टैंड रहा और भविष्य में इससे कैसे निपटा जाएगा. साथ ही इस्लाम की पाक किताब कुरआन को कैसे गलत तरीके से पेश किया गया, इस पर ये पेपर आधारित है.17 अगस्त को जेएनयू एकेडमिक काउंसिल मीटिंग में इस नए सिलेबस को इन्ट्रोड्यूज किया गया और अब 2 सितंबर को इस सिलेबस को मंजूरी देने को लेकर एग्ज़ीक्युटिव की मीटिंग होने जा रही है.
CPI के राज्यसभा सांसद बिनॉय विश्वम ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री धर्मेंद्र प्रधान को पत्र लिखकर जेएनयू के पाठ्यक्रम में शामिल होने वाली सामग्री की गलत प्रकृति पर आपत्ति जताई है. वो कहते हैं कि "उच्च शिक्षा का उपयोग अर्धसत्य और अकादमिक रूप से गलत जानकारी की प्रस्तुति के माध्यम से राजनीतिक मुद्दों के सांप्रदायिकरण और राजनीतिकरण के लिए किया जा रहा है." उन्होंने अपने पत्र में कहा कि इस आतंकवाद विरोधी मॉड्यूल में "जिहादी आतंकवाद" जैसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया है. मॉड्यूल में छात्रों को क्या पेश किया जाता है, इस पर नाराज़ होते हुए सीपीआई नेता कहते हैं कि ये बयान "गहरा पूर्वाग्रह और राजनीति से प्रेरित" है.उन्होंने धर्मेंद्र प्रधान से यह सुनिश्चित करने के लिए कहा कि इस तरह की "पक्षपाती" सामग्री को पारित करने की अनुमति ना दी जाए.
'कट्टरपंथी-धार्मिक आतंकवाद और उसके प्रभाव' शीर्षक वाले नए पाठ्यक्रम के मॉड्यूल में से एक में लिखा है: "कट्टरपंथी - धार्मिक-प्रेरित आतंकवाद ने 21वीं सदी की शुरुआत में आतंकवादी हिंसा को जन्म देने में एक बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रमुख भूमिका निभाई है. फिलहाल विभाग के प्रोफेसर अरविंद का कहना है कि इस पर विवाद गलत है. आज की पीढ़ी को कट्टरपंथी आतंकवाद के विषय में जानना ज़रूरी है.
जेएनयू में एंटी टेररिज्म से जुड़ा ये कंटेंट इंजीनियरिंग के छात्रों को एमएस के 5वें साल में पढ़ाया जाएगा और कोर्स का हिस्सा है. इंजीनियरिंग में बी. टेक के बाद अंतरराष्ट्रीय संबंधों में विशेषज्ञता के साथ MS करने वाले छात्रों के कोर्स में इसे पढ़ाया जाएगा ,हालांकि यह ऑप्शनल सब्जेक्ट होगा.
संबंधित सेंटर का स्पष्टीकरण
सेंटर फॉर कैनेडियन, यूएस और लैटिन अमेरिकन स्टडीज के चेयरपर्सन अरविंद कुमार कहते हैं कि इस पाठ्यक्रम ने किसी भी समुदाय को चिन्हित नहीं किया है. पाठ्यक्रम का शीर्षक "आतंकवाद का मुकाबला, असममित संघर्ष और प्रमुख शक्तियों के बीच सहयोग के लिए रणनीतियां" है. पाठ्यक्रम को भारत के दृष्टिकोण को ध्यान में रखते हुए तैयार किया गया है. आतंकवाद के शिकार के रूप में इन सभी दशकों में भारत का अनुभव कैसा रहा है. यह समझना होगा कि जिहादी आतंकवाद तालिबान की अभिव्यक्ति है और सभी पूर्वाग्रहों को दूर रखते हुए शिक्षाविदों से वैश्विक और क्षेत्रीय आतंकवादी संगठन दोनों पर गहन अध्ययन की आवश्यकता है.
चीन ने हमेशा एक बार नहीं बल्कि कई मौकों पर यूएनएससी में मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी के रूप में मान्यता देने में वीटो किया है. समय आ गया है कि सभी प्रमुख शक्तियां एक साथ आएं और आतंकवाद के मुद्दे को गंभीरता से लें और एकजुट हों. आतंकवाद का मुकाबला करने में विज्ञान और प्रौद्योगिकी कैसे मदद कर सकते हैं यह भी पाठ्यक्रम का एक मुख्य हिस्सा है. यह आतंकवाद के मुद्दे से निपटने में भारत और पूरे विश्व के अनुभव पर आधारित है. इस कोर्स को लेकर गलत धारणा तैयार की जा रही है और यह भारत के लिए अच्छा नहीं है. इसका किसी राजनीतिक दल से भी कोई लेना-देना नहीं है.
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के टीचर एसोसिएशन का क्या है कहना ?
किसी भी नए कोर्स को जोड़ने के लिए क्रमानुसार पहले सेंटर से शुरुआत होती है. फिर डिपार्टमेंट के बीच चर्चा की जाती है और फिर बॉडी ऑफ स्टडी में जाता है. जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के टीचर एसोसिएशन के अध्यक्ष प्रोफेसर मिलाप शर्मा एबीपी न्यूज से खास बातचीत में कहते हैं कि "हम जेएनयू के टीचर एसोसिएशन केवल इतना कहते हैं और मानते हैं कि आतंकवाद धर्म, क्षेत्र ,जाति आधारित नहीं है. हम पिछले 30 वर्षों से इस नीति में विश्वास करते हैं. सत्ता की शक्ति से सामान्य कामकाज ठप है. पिछले दो तीन सालों से अध्यापकों और छात्रों का प्रतिनिधित्व नहीं हो रहा है. क्योंकि उन्हें मुसीबत पैदा करने वाले (Trouble Creators) माना जाता है. हम अपने छात्रों के लिए ही तो सवाल उठाते हैं, इसमें किसी को क्या परेशानी होनी चाहिए."
JNUTA की सेक्रेटरी मोनामी बासु एबीपी न्यूज से बातचीत में बताती हैं कि पहले एकेडमिक काउंसिल में टीचर एसोसिएशन के प्रतिनिधि, छात्र संघ के प्रतिनिधि, विशेष अतिथियों सहित अलग अलग समूह के लोग हिस्सा होते थे, लेकिन इस बार एकेडमिक काउंसिल में अध्यापकों या छात्रों का कोई प्रतिनिधित्व करने वाला नहीं था. इसमें चर्चा की इजाजत नहीं दी गई थी और AC द्वारा कोर्स को पारित कर दिया गया. यह व्यंगात्मक प्रस्तुति है. पिछले दो साल से हमारी कोरोना वायरस के कारण ऑनलाइन मीटिंग हो रही है, जहां कई सदस्य बोलना चाहते थे, लेकिन उन्हें बोलने की अनुमति नहीं है. हमारी कॉल्स को म्यूट पर ही रखा जाता है और अन - म्यूट करने का कंट्रोल कुलपति के पास ही होता है."
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के छात्र संघ की क्या है राय ?
जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय छात्र संघ के जनरल सेक्रेटरी सतीश चंद्र यादव कहते हैं कि नए कोर्स बढ़ाने के बजाय जो कोर्स पहले से हैं उन्हें पढ़ाने के बारे में जेएनयू प्रशासन को ज्यादा ध्यान देना चाहिए. कोरोना के बाद से कैम्पस बंद है, छात्रों की घर से ऑनलाइन शिक्षा नहीं हो पा रही है. छात्रों को समय पर स्कॉलरशिप और फेलोशिप नहीं मिल रही है. इन तमाम मुद्दों पर प्रशासन ध्यान केंद्रित करे. विश्वविद्यालय स्तर का कोई भी निर्णय लोकतांत्रिक तरह से होता है, जहां वाद विवाद और संवाद की गुंजाइश होती है. क्योंकि ऐसा करने से स्वस्थ और बेहतर निर्णय लिया जा सकता है. लेकिन इस तरह से देश में मतभेद की तहजीब को खत्म किया जा रहा है. जाति और धर्म को आतंकवाद से जोड़ना सच्चाई से आंखें मूंद लेने के समान है.
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