नई दिल्ली: शाम ढल चुकी है और रात की तीरगी बढ़ रही है, अभी रात के दस बजे हैं. लेकिन जैसे ही मेरी गाड़ी जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी कैंपस के मुख्य दरवाज़े पर पहुंचती है. चहल-पहल का समा है. एक हल-चल, एक हुजूम, जो आगे की तरफ रवां-दवां है. हमारा इस्तकबाल करती है, जो जेएनयू की उबड़ खाबड़ ज़मीन पर किसी इल्मी मयख़ाने के सजने की खबर देती है.


चंद मिनट में हम अपनी मंजिल पर थे. महफिल सज चुकी थी. आदाब-ए-मयख़ाना दिल को लुभाने वाला था. रकीब (विरोधी) और दिलबर आसपास ही बैठे थे. ढोल-ताशों की थाप गूंज रही थी. आज़ाद परिंदों की तरह छात्र-छात्राएं पूरे जोश-व-जज़्बे के साथ छात्र संघ चुनाव की प्रेसिडेंशियल डिबेट के शुरू होने का इंतजार कर रहे थे.


शाम ढलते ही परिंदे भी अपने घौंसलों की तरफ लौट चलते हैं, लेकिन यहां छात्र-छात्राएं असल परिंदों से भी ज्यादा आज़ाद हैं. यही जेएनयू की खासियत है, जो उन्हें सबसे अलग बनाती है. ज्यों-ज्यों अंधेरा बढ़ रहा है, भीड़ बढ़ती चली जा रही है.


करीब 10.20 मिनट पर प्रेसिडेंशियल डिबेट शुरू होती. बीएपीएसए की शबाना अली डिबेट की शुरुआत करती हैं. उनके बाद एक-एक करके छह उम्मीदवार अपनी-अपनी दलीलें रखते हैं. लेकिन मफफिल-ए-मयखाने की असल जान निर्दलीय उम्मीदवार मोहम्मद फारूक साबित होते हैं, उन्होंने सबकी जोर से बजाई. जमकर तालियां बटोरीं, तारीफें भी. जब फारूक ने बोलना शुरू किया तो ऐसा लगा कि रौशनी फैल रही है और लेफ्ट हो या राइट सब का रंग काला हो गया है.


आपको बता दें कि आज जेएनयू छात्र संघ चुनाव के लिए वोट डाले जा रहे हैं और दो-तीन दिन में नतीजों का एलान होगा.


तीन रंग और दो पंथों के बीच है लड़ाई 




जेएनयू छात्र संघ के अध्यक्ष पद के लिए इस बार 7 उम्मीदवार मैदान में हैं, लेकिन प्रेसिडेंशियल डिबेट में छह उम्मीदवार ही शरीक हुए. सभों की बातें, दलीलें और दावे सुनने और वहां मौजूद लोगों की तरफ से मिल रही वाह-वाही और विरोध से स्वर से साफ जाहिर हुआ कि छात्र संघ के चुनाव की ये जंग तीन रंगों लाल, भगवा और नीले के बीच है. लाल रंग का प्रतिनिधित्व दो-दो वामसंगठन कर रहे थे, इसलिए लाल सलाम और क्रांतिकारी लाल सलाम में फर्क दिखा. एबीवीपी का भगवा रंग भी जोश में दिखा. दबे-कुचले समाज का नीला रंग अपना हक मांग रहा था.

किसने क्या कहा?


बीएपीएसए की शबाना अली ने डिबेट की शुरुआत की. उन्होंने ब्राह्मणवादी ताकतों पर जमकर हमला किया. राइट के साथ-साथ लेफ्ट को भी तार-तार किया. नजीब मामले में लेफ्ट को कटघरे में खड़ा किया और जेएनयू में ओबीसी फैकल्टी की कमी सवाल उठाया.


एबीवीपी की उम्मीदवार निधि त्रिपाठी इस डिबेट में देश और दुनिया की बहस से दूर भाग रही थीं और सिर्फ जेएनयू पर भी केंद्रित रहना चाहती थी, लेकिन एआईएसएफ की उम्मीदवार अपराजिता राजा का कहना था, क्यों, शोर-ए-दुनिया से कैसी घबराहट. राइट पर हमला करते हुए अपराजिता ने कहा कि रोटी मांगी जाती है तो त्रिशूल थमा दी जाती है. अच्छे दिन किस दूरबीन से देखूं.


एआईएसए की गीता कुमार ने क्रांतिकारी लाल सलाम से अपनी बात की शुरुआत की. रोहिंग्या मुस्लिम के मुद्दे को भी उठाया. मोदी सरकार को निशाने पर लेते हुए कहा कि वो एक ऐसा देश बनाना चाहते हैं कि देश का नागरिक सरकार से डरे. उन्होंने कहा ये सरकार शांति की बात करने वाली गुलमोहर (सैनिक की बेटी) और गीता कुमार (सैनिक की बेटी) से डरती है.


डिबेट में फ्ल़ॉप वृंशिका सिंह


प्रेसिडेंशियल डिबेट में जिसका भाषण सबसे कमजोर था वो थीं एनएसयूआई की वृंशिका सिंह. उन्होंने बहुत कमजोर तरीके से अपनी बात रखी. उन्होंने जेएनयू के ही मुद्दे को उठाया. जब वृंशिका सिंह अपनी बात रख रही थीं तो करीब ही बैठे लोगों में ये चुगली भी चल रही थी कि इनकी शैली कांग्रेस के राहुल गांधी जैसी है.


अब बात महफिले मयखाने की


मयखाने की जान मोहम्मद फारूक रहे और वो वामपंथी छात्र संगठनों पर जमकर बरसे. इनकी प्रगतिशीलता को छलावा बताया. उन्हें बेशर्म बताते हुए आरोप लगाया कि ये सिर्फ एबीवीपी का डर दिखाते हैं. एबीवीपी के वंदे मातरम और भारत माता की जय का जमकर मजाक उड़ाया. एबीवीपी वालों को संघी गुंडे बताते ही हिंदू-मुस्लिम करने से बाज़ आने की बात कही. जेएनयू के मौजूदा वीसी पर भी जमकर कोसा. मोदी सरकार के सबका विकास सबका साथ के नारे को खोखला करार दिया.


करीब 12.30 बज चुके थे. डिबेट खत्म हुई. कुछ देर बाद आसमान पर घटा घनगोर हो गई. बरखा ने बरसना शुरू कर दिया, लेकिन आजाद परिंदों ने सामियाने, करीब की बिल्डिंगों और बबूल के छोटे बड़े दरख्तों के नीचे छिपना मंजूर किया, लेकिन इस वीराने से जाना मंजूर नहीं किया. मयखाने में रिंदों की हुजूम जमा रही.


बारिश खत्म हुई. करीब दो बजे सवाल-जवाब का सिलसिला शुरू हुआ. सहर की आहट मिल चुकी थी. जेएनयू ये पैगाम देने में कामयाब रही कि अब नई सुबह का आग़ाज़ होगा...