JNU Vice Chancellor Santishree Pandit: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय की कुलपति शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित ने बुधवार को विश्वविद्यालय कैंपस में राजनीति करने वाले छात्रों पर बड़ी टिप्पणी की और कहा कि परिसर में हिंसा के लिए कोई जगह नहीं है और राजनीतिक आकांक्षाओं वाले विद्यार्थियों को अपनी आकांक्षाएं विश्वविद्यालय के बाहर पूरी करनी चाहिए. इसके साथ ही उन्होंने श की नई शिक्षा नीति को लेकर भी कई अहम बातें कहीं और इसका विरोध किए जाने के मुद्दे पर भी चर्चा की. बता दें कि शांतिश्री धूलिपुड़ी पंडित जेएनयू की पहली महिला कुलपति हैं और दक्षिण भारत की रहनेवाली हैं.


शांतिश्री ने कहा-भाषा काफी संवेदनशील मुद्दा है


जेएनयू की कुलपति ने कहा कि किसी खास भाषा या किसी क्षेत्रीय भाषा पर 'बहुत जोर' देने से क्षेत्रवाद को बढ़ावा मिल सकता है क्योंकि भाषा काफी 'संवेदनशील' मुद्दा है और कुछ लोग इसका फायदा उठा सकते हैं. उन्होंने नयी शिक्षा नीति में बहुभाषावाद के संबंध में जोर देकर कहा कि  सरकार को क्षेत्रीय भाषाओं को आगे बढ़ाने को लेकर सावधान रहने की जरूरत है और इसके द्वारा 'मजबूत क्षेत्रीय पहचान' का नेतृत्व नहीं किया जाना चाहिए.


उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी) का विरोध किए जाने के मुद्दे पर कहा, 'यह (एनईपी) सिर्फ एक दस्तावेज है. इसमें ऐसा कुछ नहीं है जिसे किसी पर थोपा जा रहा है. मुझे लगता है कि हम इससे अच्छी चीजें ले सकते हैं और संभव है कि अगली बार आने वाली नयी एनईपी इससे एक कदम बेहतर हो.'


नयी शिक्षा नीति का मकसद 


कुलपति ने कहा कि नयी शिक्षा नीति ने 34 साल पुरानी राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनपीई) 1986 की जगह ली है और इसका मकसद 2030 तक स्कूली शिक्षा में 100 प्रतिशत सकल नामांकन अनुपात (जीईआर) के साथ माध्यमिक स्तर तक शिक्षा का सार्वभौमिकरण करना है. पंडित ने कहा, 'एनईपी बहुभाषावाद के लिए है और मैं इसका पूरा समर्थन करती हूं. एक ही चीज है, जिससे कुछ मतभेद है, वह है कि हम भारत की 27 भाषाओं में कैसे पढ़ाने जा रहे हैं.'


उन्होंने कहा, 'वे हमें विद्यार्थियों को उनकी मातृभाषाओं में पढ़ाने के लिए कहते हैं, तो फिर लिंक (संपर्क) भाषा क्या होगी ... इसको लेकर मैं कुछ चिंतित हूं. मैं तमिलनाडु राज्य से हूं जैसे ही आप मातृभाषा कहते हैं, इस बारे में हमारी बहुत मजबूत राय है.'


सरकार को दिया सुझाव


उन्होंने सुझाव दिया कि सरकार को बहुभाषावाद के ढांचे के अंदर ही क्षेत्रीय भाषाओं को बढ़ावा देना चाहिए. उन्होंने कहा, 'यदि आप क्षेत्रीय भाषा पर जोर देते हैं... अवश्य दीजिए.. लेकिन हमें बहुभाषावाद के ढांचे के अंदर ही जोर देना चाहिए. यहां मैं त्रि-भाषा फार्मूले से सहमत हूं. हर किसी को तीन भाषाएं सीखनी चाहिए.'


यह पूछे जाने पर कि क्या एक खास भाषा को आगे बढ़ाने से क्षेत्रवाद बढ़ सकता है, उन्होंने कहा, ‘‘हां, ऐसा हो सकता है, अगर हम बहुत जोर देते हैं. हम कहते हैं कि हमारी दो आधिकारिक भाषाएं हैं - अंग्रेजी और हिंदी... दक्षिणी राज्य और गैर-हिंदी राज्य सहमत नहीं हो सकते. यदि आप इस पर जोर देते हैं तो ऐसी मांगें पैदा होंगी जो आज तमिलनाडु कर रहा है. यह बहुत संवेदनशील है.'


शिक्षा में सुधार की जरूरत है


उन्होंने कहा कि शिक्षा में सुधार की जरूरत है और विश्वविद्यालयों को नयी शिक्षा नीति से 'अच्छी चीजें' लेनी चाहिए. ‘‘कई वर्षों तक, हमने शिक्षा प्रणाली में कोई सुधार नहीं किया. इसमें सुधारों की जरूरत है। संभव है कि आप इससे सहमत नहीं हों.’’