नई दिल्ली: जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में साल भर हर मुद्दे पर बहस होती रहती है. हर मुद्दे पर यहां बेबाक राय रखी जाती है लेकिन सितंबर का महीना यहां कुछ खास होता है. इस महीने आरोप- प्रत्यारोप से लेकर दक्षिणपंथी और वामपंथी आवाजें और भी ज्यादा मुखर हो चलती हैं, क्योंकि सितंबर में जेएनयू का छात्रसंघ चुनाव होता है. जेएनयू में केवल हॉस्टल या यूनिवर्सिटी के मुद्दे पर ही चुनाव नहीं लड़ा जाता बल्कि देश में कौन-कौन से मुद्दे हैं और इस किसकी क्या राय है, ये भी एक महत्वपूर्ण विषय होता है.
इस बार आरएसएस की छात्र इकाई एबीवीपी के सामने मैदान में लेफ्ट का आधी अधूरी एकजुट दिख रही है. लेफ्ट की दो-दो उम्मीदवार मैदान में हैं. इस बार आईसा (ऑल इंडिया स्टूडेंट्स एसोसिएशन) और एसएफआई ( स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया) ने अपना साझा उम्मीदवार उतारा हैं. पिछली बार भी जब लेफ्ट एकजुट हुआ था, तो सेंट्रल पैनल की चारों सीटें लेफ्ट विंग ने अपने नाम की थी.
कन्हैया कुमार जिस एआईएसएफ (ऑल इंडिया स्टूडेंट फेडरेशन) के साथ जुडे हुए हैं उसने भी अपना उम्मीदवार मैदान में उतारा है. पिछली बार मतभेदों की वजह से सीपीआई की छात्र इकाई एआईएसएफ ने चुनाव नहीं लड़ा था. लेफ्ट एकजुटता के लिए एआईएसएफ परेशानियां भी खड़ा कर रहा है, क्योंकि लेफ्ट के वोट सीधे एक ही छात्र यूनियन को नहीं मिलेंगे. क्योंकि अलग-अलग लेफ्ट संगठनों का मैदान में होने की वजह से वोट विभाजित हो जाएंगे.
लेफ्ट फ्रंट का जहां नारा है कि फासीवादी ताकतों को जेएनयू में नहीं घुसने देना है, तो वहीं पिछले साल अक्टूबर से नजीब की गुमशुदगी को भी इस बार मुद्दा बनाया गया है. वरिष्ठ पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या को भी इस बार जेएनयू में चुनाव का मुद्दा बनाया गया है. लेफ्ट के निशाने पर सीधा एबीवीपी है.
बताते चलें कि एबीपीवी पिछले साल सेंट्रल पैनल की एक भी सीट पर काबिज नहीं हो पाई थी. एबीवीपी, लेफ्ट की असफल वायदों के साथ मैदान में है. नजीब के लापता होने से पहले जिस छात्र के साथ लड़ाई हुई थी, एबीवीपी ने उसी छात्र अंकित राय को स्कूल ऑफ लैंग्वेज लिटरेचर एंड कल्चरल स्टडीज से कांउसलर के पद का टिकट दिया है.