US-China Military Talks: अमेरिका के सैन फ्रांसिस्को में हाल में आयोजित हुए एशिया-प्रशांत आर्थिक सहयोग (EPEC) शिखर सम्मेलन में अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन और उनके चीनी समकक्ष शी जिनपिंग की मुलाकात हुई. समिट में दोनों नेता दोनों देशों के बीच समानता के आधार पर फिर से शुरू करने और उच्च स्तरीय सैन्य संचार शुरू करने पर सहमत हुए.


बता दें कि पूर्व अमेरिकी हाउस स्पीकर नैंसी पेलोसी की पिछले साल ताइवान यात्रा की वजह से अमेरिका-चीन तनाव चरम पर पहुंच गया था और दोनों देशों के बीच सैन्य संचार बाधिक हो गया था.


इंडिया टुडे की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि बाइडेन और जिनपिंग की मुलाकात केवल द्विपक्षीय मामला नहीं है, बल्कि इसका भारत पर गहरा असर है. रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के लिए यह अपने राजनयिक और रणनीतिक दृष्टिकोण को फिर से परखने का क्षण है.


रिपोर्ट के मुताबिक, वैश्विक बदलावों के बीच भारत को खुद एक जटिल स्थिति में पाता है, जो चीन के साथ लगातार सीमा पर तनाव का सामना कर रहा है, जिसका उदाहरण 2020 के गलवान घाटी संघर्ष से लिया जा सकता है. अमेरिका-चीन संबंधों की बदलती गतिशीलता पड़ोसी देश (चीन) को लेकर भारत के दृष्टिकोण को प्रभावित कर सकती है. हालांकि, अमेरिका और चीन के साथ संबंधों पर भारत का दृष्टिकोण बहुआयामी है.


चीन के प्रति अमेरिका के नजरिये में बदलाव के क्या हैं मायने?


रिपोर्ट में कहा गया है कि एशिया और इंडो-पैसिफिक में हाल की स्थिति ने, खासकर इस क्षेत्र में चीन की बढ़ती मुखरता के मद्देनजर भारत और अमेरिका को अपने संबंधों को और आगे बढ़ाने पर विचार करने के लिए प्रेरित किया है. अमेरिका ने फिर से पुष्टि की है कि इंडो-पैसिफिक एक उच्च प्राथमिकता बना हुआ है और वह क्षेत्रीय आधिपत्य के चीन के दावे को चुनौती दे रहा है और चीन के प्रभाव को संतुलित करने के लिए गठबंधन जुटा रहा है.


हालांकि, अमेरिका के दृष्टिकोण में साफ बदलाव उसके आक्रामक रुख से आगे बढ़ते हुए चीन के साथ आर्थिक संबंधों को जोखिम मुक्त बनाना है और इसके लिए विश्वास का माहौल बनाने लिए उच्च-स्तरीय वार्ता फिर से शुरू करना, उसकी बीजिंग से निपटने में एक सूक्ष्म रणनीति का संकेत देता है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 2022 में दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार 700 बिलियन डॉलर तक पहुंचने के साथ ही यह बदलाव पर्याप्त आर्थिक जुड़ाव पर आधारित है.


कैसी हो भारत की रणनीति, एक्सपर्ट ने बताया


रिपोर्ट में एशिया पॉलिसी सोसाइटी इंस्टीट्यूट के वरिष्ठ फेलो सी राजा मोहन के हवाले से भारत की संभावित रणनीति के बारे में कहा गया है, ''भारत ने अपना काम पूरा कर लिया है, जबकि उसे लगातार बड़ी शक्तियों के साथ संबंधों में बदलाव का आकलन करना चाहिए, खासकर अमेरिका, चीन और रूस के बीच. भारत का जोर अमेरिका के साथ अपने संबंधों को मजबूत करने, रूस के साथ अपने दीर्घकालिक संबंधों को बनाए रखने और चीन के साथ कठिन संबंधों को प्रबंधित करने के लिए नई संभावनाओं का लाभ उठाने पर होना चाहिए.


उन्होंने कहा कि अंतरराष्ट्रीय प्रणाली में भारत का उदय उसे बड़े शक्तियों के साथ संबंधों में किसी भी अचानक बदलाव को प्रभावी ढंग से संभालने की अनुमति देता है.


'साझा खतरों से निपटने में एकजुट हों शक्तियां'


विल्सन सेंटर में दक्षिण एशिया संस्थान के निदेशक माइकल कुगेलमैन ने कहा कि दुनिया के ज्यादातर लोग अमेरिका और चीन के बीच कम तनावपूर्ण संबंधों को देखना चाहेंगे और भारत भी इसका अपवाद नहीं है.


उन्होंने कहा कि चूंकि सबसे बड़े उभरते वैश्विक खतरे मूल रूप से अंतरराष्ट्रीय हैं जैसे कि कोई महामारी या जलवायु परिवर्तन, ऐसे में पूरी दुनिया चाहेगी कि दो सबसे शक्तिशाली देश साझा खतरों से निपटने में सहयोग करने के लिए पर्याप्त रूप से एकजुट हों.


अमेरिका-चीन मेल-मिलाप का भारत पर क्या असर पड़ेगा?


कुगेलमैन ने यह भी बताया कि अमेरिका-चीन के मेल-मिलाप का भारत पर क्या असर पड़ेगा. उन्होंने कहा कि कुछ अमेरिकी-चीन सैन्य सहयोग की बहाली और दोनों देशों के संबंधों में मामूली नरमी संभावित रूप से भारत को सीधे लाभ पहुंचा सकती है.


उन्होंने कहा कि ऐसे कई कारण हैं जिनकी वजह से चीन ने एलएसी और हिंद महासागर में भारत के खिलाफ उकसावे की कार्रवाई बढ़ा दी है लेकिन एक संभावना तेजी से बढ़ती अमेरिका-भारत सुरक्षा साझेदारी है.


उन्होंने कहा कि अगर अमेरिका-चीन तनाव कम होता रहा तो बीजिंग के पास भारत के खिलाफ आक्रामक होने की  प्रेरणा कम हो सकती है. उन्होंने कहा कि निश्चित रूप से इन प्रभावों को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं बताया जाना चाहिए क्योंकि अमेरिका-चीन संबंधों में ये नए घटनाक्रम उलट भी सकते हैं.


उन्होंने कहा कि चूंकि भारत-चीन प्रतिस्पर्धा ने अपने आप में एक जीवन बना लिया है जो अमेरिका से संबंधित कारकों से जुड़ा नहीं है. फिर भी अमेरिका-चीन तनाव कम होने से चीन से उत्पन्न सुरक्षा खतरे मामूली रूप से कम होने से भारत के हितों को संबोधित करने में मदद मिल सकती है.


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