जोशीमठ पर 46 साल पहले आई मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट में क्या लिखा था?
घरों की दरकती दरो-दीवार, धंसती जमीन और जिंदगी भर की जमा पूंजी के पल में बिखर जाने का गम अब जोशीमठ की नियति है, लेकिन इसे टाला जा सकता था यदि 46 साल पहले दी गई चेतावनियों को अनदेखा न किया गया होता.
जोशीमठ में इस वक्त गम और बैचेनी का मंजर है. जमीन धंस रही है. वहां के बाशिदों के घरों की दर-ओ-दीवारों की दरारें जैसे कह रही हैं कि कहो अलविदा की अब बिछड़ने का वक्त है. बड़े अरमानों से जिंदगी भर की कमाई से बनाए आशियानों को छोड़ने का गम दिल से आंखों में उतर आया है. इस दर्द को लफ्जों में नहीं बांधा जा सकता है, लेकिन उत्तराखंड के चमोली जिले के जोशीमठ की इस खराब नियति को टाला जा सकता था. इस पर लगाम लगाई जा सकती थी.
आगाह करने के बाद भी भौगोलिक नजरिए से संवेदनशील इस इलाके में अंधाधुंध बेपरवाह निर्माण के काम होते गए. नतीजा अब इस पहाड़ी कस्बे के खाली करने की नौबत तक आ पहुंचा है. हालांकि, कुछ हिस्सों को बचाने की कवायद तेज हो रही है. आनन-फानन में लोगों को वहां से हटाया जा रहा है. कभी शान से खड़े टूरिज्म की आन-बान समझे जाने वाले होटलों को ढहाया जा रहा है. काश आज से 46 साल पहले अगर ये निर्माण कार्य नहीं होने दिए गए होते या इन पर रोक लगा दी गई होती तो आज जोशीमठ की तकदीर कुछ अलग होती.
46 साल पहले की चेतावनी की अनदेखी
जोशीमठ के हालातों पर अब सिर पीटने से कुछ खास नहीं होना वाला है. इस कस्बे को लेकर आज से लगभग आधी सदी पहले आगाह किया जा चुका था, लेकिन बेपरवाही इस कदर हावी थी कि उसमें ये पहाड़ी कस्बा कहीं का नहीं रहा. एक 18 सदस्यों वाली कमेटी ने 46 साल पहले ही आगाह किया था कि जोशीमठ भौगोलिक तौर पर अस्थिर है. इससे साफ था कि यहां पर कभी भी कुछ हो सकता है. कमेटी का कहना था कि इस इलाके में बगैर सोचे-समझे किया गया निर्माण कार्य कभी भी मुसीबत को दावत दे सकता है और ये सच साबित हुआ.
इससे बचने के लिए कमेटी ने कई प्रतिबंधों के साथ ही सुधार और सुरक्षा के सुझाव दिए थे. इसी तरह के हालात 70 के दशक में भी थे. यही वजह रही थी कि इस शहर के भूस्खलन और डूबने की वजहों को जानने के लिए तत्कालीन गढ़वाल मंडल आयुक्त महेश चंद्र मिश्रा की अध्यक्षता में एक कमेटी का गठन किया गया था.
इस कमेटी ने 7 मई, 1976 की अपनी रिपोर्ट पेश की थी. इसमें साफ गया था कि जोशीमठ में भारी निर्माण कार्यों, ढलानों पर कृषि, पेड़ों की कटाई पर प्रतिबंध लगाना जरूरी है. इसे बदतर हालातों से बचने के लिए बारिश के पानी के रिसाव को रोकने के लिए इसकी निकासी के लिए पक्का निर्माण, सही तरीके का सीवेज सिस्टम और मिट्टी का कटाव को रोकने के लिए नदी के किनारों पर सीमेंट ब्लॉक बनाने के सुझाव दिए गए थे.
इस रिपोर्ट को संजीदगी से लेने की जगह इसकी अनदेखी की गई है. अब हालात इतने खराब हो चुके हैं कि मौजूदा संकट के लिए कांग्रेस और बीजेपी एक-दूसरे पर रिपोर्ट की सिफारिशों को लागू करने में नाकाम रहने के आरोप थोप रहे हैं.
जोशीमठ टाउनशिप के लिए मुफीद नहीं
मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट के मुताबिक जोशीमठ की भौगोलिक कुंडली ऐसी है जो इसे भूगर्भीय तौर से अस्थिर दिखाती है. यही वजह है कि ये इलाका भूस्खलनों, सड़कों के टूटने, जमीन धंसने की परेशानियों से दो-चार होता रहता है. इस इलाके में लगातार होते निर्माण के काम, जनसंख्या में बढ़ोतरी से यहां महत्वपूर्ण जैविक गड़बड़ी हुई है.
बार-बार होने वाले भूस्खलन पर रिपोर्ट में कहा गया है कि इसके संभावित कारणों में हिलवॉश हो सकता है. हिलवॉश, कटाव की एक प्रक्रिया है जिसमें सतह पर ढीली पड़ी तलछटको बारिश का पानी बहा ले जाता है. इसके अलावा खेती वाली जमीन की लोकेशन, हिमनदी सामग्री के साथ पुराने भूस्खलन के मलबे पर बसावट, अपक्षय और धाराओं से मिट्टी का कटाव भी लैंडस्लाइड के बार-बार होने की वजह बनते हैं.
इसी तरह ढलानों पर खेती वाला इलाका होने से भूस्खलन बढ़ेंगे. खुली चट्टानों के टूटने-फूटने की वजह से अपक्षय (Weathering) का भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा. अपक्षय पृथ्वी की सतह पर चट्टानों और खनिजों के टूटने या घुलने को कहते हैं. पानी, बर्फ, अम्ल, लवण, पौधे, जानवर और तापमान में परिवर्तन ये सभी अपक्षय के कारक हैं.
रिपोर्ट के मुताबिक इसके साथ ही अलकनंदा और धौलीगंगा नदी की धाराओं से हो रहा कटाव भी भूस्खलन लाने में अहम भूमिका निभा रहा है. बारिश और बर्फ पिघलने के कारण हिलवॉश और पानी का रिसाव होता है. रिपोर्ट बताती है कि 1962 के बाद इस इलाके में भारी निर्माण परियोजनाएं शुरू की गईं, लेकिन पानी की निकासी के लिए सही तरीका नहीं अपनाया गया. इस वजह से जमीन के अंदर पानी का रिसाव होता रहा जो आखिरकार भूस्खलन यानी लैंडस्लाइड की वजह बना.
रिपोर्ट में कहा गया है कि ढलानों से नीचे बहने वाले पानी का तेज वेग ढलानों को नंगे कर देता है और इनकी सतह से रिसने वाला पानी नरम मिट्टी को पूरी तरह से भिगो डालता है और इसे बहा ले जाता है. इस तरह से शिलाखंडों यानी बोल्डर्स के बीच गड्ढे बनाते हैं. बोल्डर्स उन बड़ी चट्टानों को कहते हैं जो कटाव की वजह से नरम पड़ जाती है. इस तरह से बगैर सहारे के ये शिलाखंड बोल्डर अपने मूल द्रव्यमान से अलग हो जाते हैं, जिसकी वजह से स्लाइड होता है. इस प्रक्रिया का बार-बार होना ढलान को और अधिक ढलवा कर देता है.
रिपोर्ट में पेड़ों की अंधाधुंध कटाई पर ध्यान दिलाया गया है. इसमें कहा गया है कि पेड़ महत्वपूर्ण हैं क्योंकि वे बारिश के लिए यांत्रिक बाधाओं के तौर पर काम करते हैं. जल संरक्षण क्षमता में बढ़ोतरी करते हैं और ढीले मलबे या तलछट के ढेर को पकड़ते हैं. मवेशी को चराना और चारागाह बनाने में बढ़ोतरी होना भी पेड़ों की कटाई के जैसा ही है.
जोशीमठ क्षेत्र में प्राकृतिक वन आवरण को कई एजेंसियों ने बेहरमी से नष्ट कर दिया है. चट्टानी ढलान नंगे और पेड़ों के बगैर हैं. पेड़ों के अभाव में मृदा अपरदन और भूस्खलन होता है. डिटैचिंग बोल्डर को पकड़ने यानी रोके रखने के लिए कुछ भी नहीं है. प्राकृतिक तौर से हो रहा भूस्खलन और नरम चट्टानों का फिसलना और खिसकना इसके नतीजे के तौर पर सामने आता है.
रिपोर्ट में बताया गया कि जोशीमठ रेत और पत्थर के जमाव पर बसा है और ये एक टाउनशिप के लिए मुफीद नहीं है. इसमें कहा गया है कि ब्लास्टिंग और भारी ट्रैफिक से होने वाले कंपन से प्राकृतिक कारकों में भी असंतुलन पैदा होगा. पानी निकासी की उचित सुविधाओं की कमी होना भी भूस्खलन के लिए जिम्मेदार है. मौजूद सोख्ता गड्ढे (Soak Pits) जो घरों से निकलने वाली गंदे पानी को सोखते हैं वो मिट्टी और बोल्डर के बीच गड्ढे बनाने के लिए जिम्मेदार हैं. इससे आगे जमीन के अंदर पानी का रिसाव होगा और मिट्टी का कटाव होगा.
कैसे सुधरेंगे हालात?
इस तरह के हालातों को सुधारने के लिए रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि मिट्टी की भार वहन क्षमता की जांच के बाद ही भारी निर्माण कार्य की मंजूरी दी जानी चाहिए. सड़क की मरम्मत और अन्य निर्माण कार्य के लिए यह सलाह दी जाती है कि पहाड़ी को खोदकर या विस्फोट करके पत्थरों को न हटाया जाए. इसमें कहा गया है कि भूस्खलन की आशंका वाले क्षेत्रों में पहाड़ी की तलहटी से पत्थर और शिलाखंड नहीं हटाए जाने चाहिए क्योंकि इससे पहाड़ी को मिल सहारे को नुकसान पहुंचेगा.
शहर को इमारती, जलाऊ और कोयला बनाने के लिए की जाने वाली लकड़ी आपूर्ति के लिए पेड़ों की कटाई को सख्ती से काबू में करने की जरूरत है. इसके साथ ही भूस्खलन वाले इलाकों में पेड़ बिल्कुल नहीं काटे जाने चाहिए. ढलानों पर कृषि से बचना चाहिए. इसके बजाय, मिट्टी और जल संसाधनों के संरक्षण के लिए पेड़ और घास लगाने का बड़े स्तर पर अभियान चलाना चाहिए.
जोशीमठ क्षेत्र स्थायी टेक्टोनिक जोन पर है, जो वर्तमान समय में सक्रिय हो सकता है. क्षेत्र में पानी का रिसाव बेहताशा है इसलिए भविष्य में किसी और भूस्खलन को रोकने के लिए जमीन के नीचे वर्षा के पानी के रिसाव को रोकना जरूरी है. ऐसे में पक्की नाली का निर्माण बेहद जरूरी है. पानी निकासी के लिए नैनीताल की तरह सही निमार्ण होना जरूरी है.
रिपोर्ट में कहा गया है कि नैनीताल में माल रोड के नाम से जाने जानी वाली सड़क का एक हिस्सा डूब रहा था तो वहां इस तरह की व्यवस्था की गई थी. ये उपाय तुरंत किया जाना चाहिए. ये नाले पक्के होने चाहिए और इन्हें भूस्खलन क्षेत्र में गिरने से रोकना चाहिए. लटकते हुए शिलाखंडों को सहारा देना चाहिए. तलहटी में पड़े शिलाखंडों को भी इसी तरह का सहारा दिया जाना चाहिए.
हालांकि पिछले हफ्ते कई घरों में बड़ी दरारें आने के कुछ दिनों बाद ही उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इसी तरह के उपायों का सुझाव दिया था. जोशीमठ के दौरे के दौरान सीएम धामी ने कहा, "तत्काल कार्य योजना के साथ-साथ लंबे चलनेवाली योजनाओं की प्रक्रिया को छोटा किया जाना चाहिए और डेंजर जोन, सीवर और ड्रेनेज का काम जल्द से जल्द पूरा किया जाना चाहिए."
जोशीमठ में 4 हजार से अधिक इमारतें
चमोली जिला प्रशासन के मुहैया कराए गए आंकड़ों के मुताबिक 2.5 वर्ग किलोमीटर में फैले जोशीमठ इलाके में लगभग 3,900 घर और 400 व्यावसायिक भवन हैं. पीएम आवास योजना के तहत करीब 195 घर बनाए गए. 9 जनवरी सोमवार शाम तक इनमें से 678 घरों और ढांचों में दरारें आने की सूचना मिली थी. सोमवार को 27 और परिवारों को स्थानांतरित किए जाने के साथ अब तक कुल 81 परिवारों को अस्थायी आश्रयों में भेजा गया है.
द इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक नगर पालिका के अधिकारियों ने कहा कि केवल 1,790 घर संपत्ति कर जमा करते हैं, क्योंकि बाकी का निर्माण बगैर मंजूरी के किया गया है. एक अधिकारी का कहना है कि इलाके के अधिकांश घर बिना किसी मंजूरी के बने हैं. जिन लोगों को बैंकों से लोन की जरूरत होती है, वे ही स्थानीय विकास प्राधिकरण से नक्शे पास करवाते हैं.
जिला स्तरीय विकास प्राधिकरण के एक अधिकारी ने कहा कि आधिकारिक रिकॉर्ड के मुताबिक 2018 से इलाके में लगभग 60 नए घर बनाए गए हैं. उन्होंने ये भी माना कि हालांकि वास्तविक संख्या इससे कहीं अधिक है.
क्या कहते हैं जोशीमठ के लोग?
जोशीमठ के मौजूदा हालात में वहां के लोग अपने घर छोड़ने को तैयार नहीं हैं. जोशीमठ के गांधी नगर वार्ड के निवासी विकलेश का कहना है कि पूरे जोशीमठ के घरों में दरारें आ रही है और ये लगभग डेढ़ साल पहले से आ रही हैं. इसके बारे में कई बार शासन- प्रशासन को बताया था. उनका कहना है कि उस वक्त तो कोई एक्शन हुआ नहीं.
इस वक्त एकदम से इन लोगों ने भगदड़ मचा दी है. ये हमें कुछ नहीं बता रहे हैं केवल ये कह रहे हैं कि तुम लोगों को यहां से शिफ्ट कर रहे हैं. उनका कहना है कि हमें हमारे मजबूत घरों से निकालकर ऐसी जगह रखा जा रहा है जहां सबसे ज्यादा खतरा है. यही जोशीमठ में ही रख रहे हैं. इस वार्ड से निकालकर मार्केट में रखा जा रहा है. मार्केट ने भी तो खत्म होना ही है जब पूरा जोशीमठ खतरे में है.
अजय का मकान गिरने के कगार पर है. अजय कहते हैं कि सरकार हमारा घर खाली करा रही है, लेकिन हमने अभी खाली नहीं किया है. हमारे घर में बहुत दरारें हैं. घर में दरार आना एक साल पहले से शुरू हो गया था, लेकिन बीती 2 जनवरी से अचानक से हालात भयावह हो गए. हमें कुछ पता नहीं हम कहां जाएंगे. न जगह का पता है न कोई फंड है. ये सब होता तो हम घर छोड़ने के बारे में कुछ सोचते. उनसे जब से पूछा गया तो घर गिर गया तो क्या करेंगे तो अजय ने बताया कि आप बताए हमारे पास कोई दूसरा ऑप्शन है क्या?
उधर देहरादून से वहां पहुंचे स्थानीय पत्रकार त्रिलोचन भट्ट का कहना है कि मिश्रा कमेटी की सिफारिशों को लेकर सरकारें पहले ही संजीदा क्यों नहीं हुई जोशीमठ के लोग यही सवाल कर रहे हैं. उनका कहना था कि जिस जगह हम खड़े हैं अभी उसका नाम छावनी बाजार है. यहां बीते साल 21 अक्टूबर 2021 में सबसे पहले यहीं दरारें आई थीं.
उनका कहना है कि मिश्रा कमेटी की रिपोर्ट पर अमल क्यों नहीं किया गया ये भी अपने में एक बड़ा सवाल है. यहां कई होटल हैं और आज यानी 10 जनवरी 2023 को यहां दो होटल को ढहाया जा रहा है. वो कहते हैं कि जब ये तोड़ने ही थे तो इनका निर्माण ही क्यों करने दिया गया?