Himalayam Sinking: उत्तराखंड के चमोली जिले का जोशीमठ कस्बा भूधंसाव को लेकर चर्चा में है. इस बीच केंद्र सरकार ने संसद को बताया है कि हिमालय के कई हिस्सों का भूविज्ञान अस्थिर और गतिशील है जो भूधंसाव और भूस्खलन का कारण बन सकता है. यह भी बताया गया है कि इस क्षेत्र में जमीन धीरे-धीरे खिसक रही है.
जोशीमठ मामले पर संसद में कई सवाल पूछे गए थे जिसके जवाब में सरकार ने पिछले सप्ताह जवाब दिया था. पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (MES) ने अपने लिखित उत्तर में संसद को बताया कि अस्थिर और गतिशील जियोलॉजी के चलते इस क्षेत्र में किसी भी बड़ी निर्माण परियोजना को शुरू करने से पहले पर्यावरण मंजूरी अनिवार्य है. हालांकि, मौजूदा भारी निर्माण कार्यों के दौरान क्या मापदंडों का उल्लंघन किया गया, इस पर मंत्रालय ने चुप्पी साधे रखी.
भूस्खलन की मिट्टी पर बसा है जोशीमठ
बताया गया है कि आवासीय या व्यावसायिक निर्माण पर पूरी तरह से प्रतिबंध नहीं है लेकिन स्थानीय प्रशासन जोखिम के आधार पर प्रतिबंध लगाने पर निर्णय ले सकता है.
पृथ्वी विज्ञान मंत्री जितेंद्र सिंह ने बताया कि उत्तराखंड सरकार से मिली गई जानकारी के अनुसार, जोशीमठ बहुत पुरानी भूस्खलन सामग्री के मोटे जमाव पर स्थित है. इस क्षेत्र में धीरे-धीरे धंसाव देखा जा रहा है. 1976 में महेश चंद्र मिश्रा की कमेटी ने भी इसे रिपोर्ट किया था. मंत्री ने कहा कि मिश्रा समिति की रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि जमीनी स्थिति की भार सह पाने क्षमता की जांच के बाद ही भारी निर्माण की अनुमति दी जानी चाहिए. मिश्रा समिति की सिफारिशों को लागू करने के लिए सरकार ने साल दर साल क्या कदम उठाए, इसे लेकर आप के राज्यसभा सांसद संजय सिंह ने सवाल पूछा था. इस पर मंत्री ने कोई जवाब नहीं दिया.
परियोजनाओं को रोका गया
मंत्रालय ने बताया कि जमीन खिसकने की घटनाओं के बाद तपोवन-विष्णुगढ़ बिजली परियोजना और हेलोंग मारवाड़ी बाईपास रोड समेत पूरे जोशीमठ क्षेत्र में सभी निर्माण गतिविधियों को रोक दिया गया है.
लिखित जवाब के मुताबिक राज्य और केंद्र सरकार सातों दिन और चौबीसों घंटे स्थिति पर नजर बनाए हुए है. इसके अलावा, जोशीमठ क्षेत्र में भू-धंसाव के प्रभाव को कम करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें संबंधित सभी एजेंसियों के साथ मिलकर काम कर रही हैं.
जोशीमठ में हजारों हो चुके बेघर
जोशीमठ में आई आपदा ने हजारों लोगों को बेघर कर दिया. जोशीमठ कस्बे में जमीन खिसकने के चलते अब तक 863 घरों में दरारें आ चुकी हैं. इनमें 181 घर असुरक्षित क्षेत्र में है. सैकड़ों परिवार अभी तक अपना घर छोड़ चुके हैं. इनमें से कई सरकार के बनाए शेल्टर को अपना ठिकाना बनाए हैं तो कई अपने पैतृक आवास या रिश्तेदारों के घर में चले गए हैं.
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