Joshimath Sinking: एक साल में 10 करोड़ लोग पहुंचे उत्तराखंड, विशेषज्ञों ने कहा- जोशीमठ तो बस शुरुआत
Joshimath Sinking: पर्यटन के लिहाज से साल 2022 सबसे बेहतरीन रहा. हालांकि, इतनी बड़ी संख्या में लोगों के पहुंचने ने कई सवाल भी खड़े किए हैं. इसे लेकर विशेषज्ञों ने चिंता जताई है.
Joshimath Sinking: उत्तराखंड के जोशीमठ में जमीन धंसने की घटनाओं से लोगों में दहशत फैल गई है. घरों की दरकती दीवारें, जमीन फाड़कर निकलता पानी और सड़कों में पड़ी दरारों ने सबको चौंका दिया है. इन सबके बीच खबर सामने आई है कि 2022 में उत्तराखंड में 10 करोड़ पर्यटक पहुंचे हैं.
वहीं, 2019 में जोशीमठ पहुंचने वालों की संख्या 4.9 लाख थी. जो 2017 में महज 2.4 लाख थी. आसान शब्दों में कहें, तो केवल 2 सालों में जोशीमठ पहुंचने वाले पर्यटकों की संख्या में करीब दोगुने से ज्यादा का इजाफा हुआ है. ये आंकड़ें न केवल चौंकाते हैं, बल्कि, विशेषज्ञों ने इसे लेकर चिंता भी जताई है.
पर्यटन के लिहाज से बढ़िया, लेकिन पर्यावरण के लिए खतरनाक
टाइम्स ऑफ इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार, साल 2022 में करीब 5 करोड़ पर्यटक, 3.8 करोड़ कांवड़ यात्री और 45 लाख चार धाम के श्रद्धालु उत्तराखंड पहुंचे थे. पर्यटन के लिहाज से साल 2022 सबसे बेहतरीन रहा. हालांकि, इतनी बड़ी संख्या में लोगों के पहुंचने ने कई सवाल भी खड़े किए हैं. जोशीमठ में जमीन धंसने के बाद उत्तराखंड में इतनी बड़ी संख्या में लोगों के लिए इंफ्रास्ट्रक्चर की उपलब्धता, पहाड़ी शहरों की भीड़ को सहन करने की क्षमता, पहाड़ों और स्थानीय लोगों के सुरक्षा से जुड़े वैज्ञानिक शोध जैसी कई चीजों पर चर्चाएं तेज हो गई हैं.
साल-दर-साल बढ़ता रहा चारधाम के श्रद्धालुओं का आंकड़ा
इस रिपोर्ट के अनुसार, 2017 में 24 लाख श्रद्धालुओं ने चारधाम यात्रा से जुड़े शहरों में अपनी दस्तक दी थी. वहीं, 2022 में ये आंकड़ा बढ़कर लगभग दोगुना होकर 45 लाख तक पहुंच गया. दो मुख्य हिल स्टेशन मसूरी और नैनीताल में भी कमोबेश ऐसा ही हाल रहा. कोरोना महामारी के बाद इन हिल स्टेशनों पर बड़ी संख्या में पर्यटकों की भीड़ उमड़ी है.
जोशीमठ के अनुभवों से सीखने की जरूरत- विशेषज्ञ
रिपोर्ट के मुताबिक, एक विशेषज्ञ ने कहा कि हमें जोशीमठ के अनुभवों से सीखने की जरूरत है. पहाड़ी शहरों का एक वैज्ञानिक शोध होना चाहिए. हमें उनकी पर्यटकों और स्थानीय निवासियों के हिसाब से भीड़ को सहन करने की क्षमता के बारे में जानकारी निकालने की जरूरत है. 1976 में जोशीमठ में कुछ हजार लोग रहते थे, लेकिन माइग्रेशन की वजह से ये संख्या अब 25 हजार हो गई है. हर शहर की एक क्षमता है और हमें इसे दिमाग में रखना होगा.
1976 में ही उठाया गया था मुद्दा
विशेषज्ञ ने कहा कि अथॉरिटीज की ओर से तमाम रिपोर्टों को नजरअंदाज किए जाने से जोशीमठ की घटना मुझे चौंकती नहीं है. ये मामला 1976 में ही उठाया गया था, लेकिन किसी ने इस पर ध्यान नहीं दिया. जोशीमठ के नीचे एक नदी बह रही है, लेकिन किसी को इससे फर्क नहीं पड़ा और विकास को गति दी जाती रही. हमें पर्यावरण और अपने बच्चों के भविष्य के लिए और गंभीर होना होगा. उन्होंने कहा कि 1000 मीटर से ज्यादा के निर्माण कार्य को शोध होने के बाद ही स्वीकार किया जाना चाहिए.
उत्तराखंड में एक जोशीमठ नहीं है- विशेषज्ञ
रिपोर्ट के अनुसार, विशेषज्ञ अनूप नौटियाल ने कहा कि अगर हम अभी सतर्क नहीं हुए, तो यह चौंकाने वाली बात नहीं होगी कि जोशीमठ एक शुरुआत भर है. उन्होंने कहा कि उत्तराखंड में जोशीमठ जैसी कई घटनाएं होने का इंतजार कर रही हैं और ये कुछ दिनों, हफ्तों, महीनों या सालों में हो सकता है. हमें स्थिति को संभालने की जरूरत हैं.
ये भी पढ़ें:
दरकते पहाड़, सिसकते लोग! जोशीमठ के निवासियों ने बताई तबाही की वजह, पलायन करने को हुए मजबूर