Joshimath Sinking: जानिए क्या होता है सिस्मिक जोन, उत्तराखंड के किन पहाड़ी शहरों पर है सबसे ज्यादा खतरा?
Seismic Zone in Uttarakhand: जिन जगहों पर भूकंप आने की संभावना बहुत ज्यादा होती है, उन्हें सिस्मिक जोन कहा जाता है. वैज्ञानिकों की भाषा में इन्हें उच्च जोखिम वाले भूकंपीय क्षेत्र कहा जाता है.
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Uttarakhand Seismic Zone: चारधाम यात्रा का गेटवे कहे जाने वाले उत्तराखंड के जोशीमठ में लगातार भू-धंसाव की घटनाओं से लोगों में दहशत भर गई है. घरों और होटलों की दीवारें दरक रही हैं, सड़कों पर दरारें पड़ गई हैं और कई जगहों पर जमीन फाड़कर पानी निकल रहा है. लोगों को जोशीमठ से हटाकर दूसरी जगहों पर पहुंचाया जा रहा है. इन सबके बीच विषेशज्ञों ने चेतावनी जारी की है कि ये इकलौता मामला नहीं होने वाला है और जोशीमठ की तरह कई अन्य पहाड़ी शहर भी भूस्खलन की चपेट में आ सकते हैं.
भूस्खलन एक ऐसा पर्यावरणीय नतीजा है, जो बिना भौगोलिक स्थितियों को समझे मानव जनित गतिविधियों के बढ़ने से होती हैं. पर्यावरणविदों के अनुसार, जोशीमठ का इलाका प्राकृतिक आपदाओं के लिहाज से काफी संवेदनशील माने जाने वाले सिस्मिक जोन 5 में आता है. वैसे, उत्तराखंड का केवल जोशीमठ ही नहीं, इसके अलावा कई अन्य पहाड़ी शहर भी हैं, जिन पर ऐसा ही खतरा मंडरा रहा है. आइए जानते हैं कि क्या होता है सिस्मिक जोन और उत्तराखंड के किन पहाड़ी शहरों पर है सबसे ज्यादा खतरा?
क्या होता है सिस्मिक जोन?
जिन जगहों पर भूकंप आने की संभावना बहुत ज्यादा होती है, उन्हें सिस्मिक जोन कहा जाता है. वैज्ञानिकों की भाषा में इन्हें उच्च जोखिम वाले भूकंपीय क्षेत्र कहा जाता है. इसमें भौगोलिक स्थिति को देखते हुए भूकंप की दृष्टि से खतरनाक और कम खतरनाक जोन में इलाकों को बांटा जाता है. भारत के भूकंपीय इतिहास को देखते हुए इसे 2 से लेकर 5 तक के जोन में बांटा गया है. सिस्मिक जोन में सबसे खतरनाक जोन 5 है, इसके अंतर्गत आने वाली जगहों पर नौ से ज्यादा की तीव्रता का भूकंप आने की संभावना रहती है. वहीं, जोन 2 के इलाकों में सबसे कम तीव्रता का भूकंप आने की आशंका रहती है.
किन सिस्मिक जोन में है भारत के राज्य?
सिस्मिक जोन 5 में हिमालय की पर्वतश्रृंखला से लगते राज्यों जैसे जम्मू-कश्मीर के कुछ हिस्से, लद्दाख, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, पूर्वोत्तर भारत के साथ गुजरात के कच्छ का कुछ हिस्सा, बिहार का उत्तरी हिस्सा और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह के कुछ हिस्से शामिल हैं. सिस्मिक जोन 4 में दिल्ली, एनसीआर, जम्मू कश्मीर, लद्दाख, उत्तराखंड, सिक्किम, हिमाचल प्रदेश का कुछ हिस्सा, यूपी, बिहार, पश्चिम बंगाल का उत्तरी इलाका, गुजरात का कुछ इलाका, महाराष्ट्र और राजस्थान का हिस्सा आता है.
सिस्मिक जोन 3 में केरल, गोवा, लक्षदीप, यूपी, गुजरात, पश्चिम बंगाल का बचा हुआ हिस्सा, पंजाब, राजस्थान, मध्य प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, उड़ीसा, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु और कर्नाटक के इलाके आते हैं. सिस्मिक जोन 2 में भारत का बचा हुए करीब 40 फीसदी हिस्सा आता है. सिस्मिक जोन 5 में भारत का करीब 11 फीसदी भू-भाग, सिस्मिक जोन 4 में 18 फीसदी, सिस्मिक जोन 3 में 30 फीसदी और बाकी का हिस्सा सिस्मिक जोन 2 में आता है.
उत्तराखंड के किन पहाड़ी शहरों पर है सबसे ज्यादा खतरा?
सिस्मिक जोन 5 यानी अति संवेदनशील या सबसे खतरनाक जोन की बात करें, तो इसमें उत्तराखंड के 5 जिले आते हैं. जो रुद्रप्रयाग, बागेश्वर, पिथौरागढ़, चमोली और उत्तरकाशी हैं. वहीं, सिस्मिक जोन 4 में ऊधमसिंहनगर, नैनीताल, चंपावत, हरिद्वार, पौड़ी गढ़वाल और अल्मोड़ा जिला शामिल है. वहीं, देहरादून और टिहरी का हिस्सा दोनों जोन में शामिल है. आसान शब्दों में कहें, तो उत्तराखंड के लगभग सभी जिलों में प्राकृतिक आपदाओं के आने की संभावना बनी रहती है. वहीं, मानवजनित गतिविधियों के चलते भी इन जिलों में तेजी से चीजें बदली हैं.
जोशीमठ में तबाही की वजह क्या है?
1936 में अर्नाल्ड हेम और ऑगस्ट गन्स की किताब सेंट्रल हिमालय जिओलॉजिकल ऑब्जरवेशन ऑफ द स्विस एक्सपेडिशन में बताया गया था कि जोशीमठ समेत उत्तराखंड के कई जिले ग्लेशियर के भूस्खलन से आई मिट्टी और चट्टानों पर बसे हैं. इस किताब में कहा गया था कि इन पहाड़ों से बहुत ज्यादा छेड़छाड़ करने पर प्राकृतिक आपदाओं के संभावना बढ़ जाएगी.
70 के दशक में उत्तराखंड में बाढ़ की वजह से जोशीमठ में भूस्खलन की घटनाएं बड़ी संख्या में सामने आई थीं. तब इन्हें रोकने के लिए तत्कालीन सरकार ने मिश्रा कमेटी बनाई थी. इस कमेटी ने भी हेम और गन्स की किताब के साथ पर्यावरणविदों की कई रिपोर्ट के आधार पर कहा था कि जोशीमठ की पहाड़ी बहुत ज्यादा मजबूत नहीं है. यहां एहतियाती कदम उठाने के साथ विकास की योजनाओं के नाम पर बहुत ज्यादा छेड़छाड़ की गुंजाइश नहीं है.
क्या तपोवन-विष्णुगढ़ जल विद्युत परियोजना बनी जोशीमठ के दरकने की वजह?
उत्तराखंड में धौलीगंगा नदी पर तपोवन जल विद्युत परियोजना का निर्माण किया गया है. वहीं, विष्णुगढ़ जल विद्युत परियोजना के लिए जोशीमठ की पहाड़ी के नीचे से एक सुरंग का निर्माण कर धौलीगंगा का पानी पहुंचाने की कोशिश की गई है. 2021 में ऋषिगंगा नदी में आई बाढ़ ने तपोवन परियोजना को काफी नुकसान पहुंचाया था. इसके साथ ही विष्णुगढ़ परियोजना को लेकर बनाई जा रही सुरंग में भी बाढ़ का पानी भर गया था. उस दौरान सुरंग का काम पूरा नहीं हुआ था और बाढ़ का पानी भरने से जोशीमठ की पहाड़ी की मिट्टी ने वो पानी सोख लिया.
पर्यावरणविदों का कहना है कि जोशीमठ पहाड़ी के पानी सोखने की वजह से ही बीते साल घरों के दरकने की घटनाएं सामने आई थीं. इनके अनुसार, जोशीमठ की पहाड़ी की मिट्टी गीली होने की वजह से चट्टानों की पकड़ ढीली हुई और जमीन धंसने लगी. बता दें कि विष्णुगढ़ जल विद्युत परियोजना के लिए बनाई जा रही सुरंग कई बार पहाड़ी के नीचे प्राकृतिक झरने निकलने की वजह से मोड़ी भी गई है.
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