Joshimath Sinking: उत्तराखंड के जोशीमठ में भू-धंसाव की घटनाएं मुसीबत बन गई हैं. जोशीमठ हिमालयी क्षेत्र के अंतर्गत उत्तराखंड के 'गढ़वाल हिमालय' में 1890 मीटर की ऊंचाई पर है. यह एक छोटा सा शहर है. यहां की अबादी 20,000 से ज्यादा है. शहर एक नाजुक पहाड़ी ढलान पर बना हुआ है जो कथित तौर पर अनियोजित और अंधाधुंध विकास परियोजनाओं के चलते संकट से घिर गया है. यहां हाल के वर्षों में निर्माण और जनसंख्या दोनों में तेजी से बढ़ोतरी हुई है. हाल में यहां जमीन धंसने का सिलसिला शुरू हुआ और अब स्थिति डरा रही है. इलाके के 500 से ज्यादा घरों में दरारें आ गई हैं, जमीन फटने लगी है और सड़कें धंस रही हैं.


उत्तराखंड सरकार ने गुरुवार को जोशीमठ में और उसके आसपास के इलाकों में जमीन धंसने के कारण निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी. कथित तौर पर निर्माण कार्यों के कारण इलाके के 561 घरों में दरारें आ गईं, जिससे घबराए स्थानीय लोगों ने विरोध किया. स्थानीय लोगों का आरोप है कि एनटीपीसी के हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की वजह से ही यह मुसीबत पैदा हुई है. जोशीमठ में होटल और ऑफिस, सब ढह से रहे हैं. यहां लोगों के पास दो ही विकल्प हैं- या तो अपना घर छोड़ दें या फिर अपनी जान खतरे में डालकर इलाके में रहें. आइए जानते हैं आखिर उत्तराखंड का यह इलाका क्यों धंस रहा है? साइंस क्या कहती है? 


1. लोकेशन, टोपोग्राफी और मौसम 
जोशीमठ वेस्ट और ईस्ट में कर्मनाशा और ढकनाला धाराओं और साउथ और नॉर्थ में धौलीगंगा और अलकनंदा नदियों से घिरी एक पहाड़ी के मिडिल स्लोप में बसा हुआ है. उत्तराखंड स्टेट डिजास्टर मैनेजमेंट अथॉरिटी (USDMA) के एक अध्ययन के अनुसार, शहर लैंडस्लाइड की संभावना वाले क्षेत्र में है और इसमें धंसने की पहली घटना 1976 में मिश्रा आयोग की रिपोर्ट में दर्ज की गई थी. जोशीमठ शहर के आसपास का क्षेत्र ओवरबर्डन मटेरियल की मोटी लेयर से ढका हुआ है. यूएसडीएमए के कार्यकारी निदेशक पीयूष रौतेला ने कहा, ''यह शहर को डूबने के लिए अत्यधिक संवेदनशील बनाता है.'' 


अध्ययन में कहा गया है, ''जून 2013 और फरवरी 2021 की बाढ़ की घटनाओं का लैंडस्लाइड क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है, जिसमें 7 फरवरी, 2021 से ऋषि गंगा की बाढ़ के बाद रविग्राम नाला और नौ गंगा नाला के साथ कटाव और फिसलन बढ़ गई है." इसका संदर्भ ग्लेशियर झील के फटने से है, जिसके कारण बाढ़ आई, जिसके परिणामस्वरूप 204 लोगों की जान चली गई थी, जिनमें ज्यादातर हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट पर काम करने वाले प्रवासी थे.


अध्ययन में बताया गया कि 17 अक्टूबर, 2021 को जोशीमठ में 24 घंटे में 190 मिमी बारिश दर्ज होने पर लैंडस्लाइड क्षेत्र और कमजोर हो गया था. पिछली बाढ़ की घटना (फरवरी 2021) के दौरान धौलीगंगा से आए मलबे में भरे पानी की भारी मात्रा ने विष्णुप्रयाग में धौलीगंगा नदी के साथ इसके संगम के नीचे, अलकनंदा के बाएं किनारे के साथ-साथ कटाव को भी बढ़ा दिया है. यूएसडीएमए की रिपोर्ट में कहा गया है कि जोशीमठ शहर जिस ढलान पर है, उसकी स्टेबिलिटी पर इसका प्रतिकूल प्रभाव पड़ा.




2. अनियोजित निर्माण
जोशीमठ के स्थानीय लोगों का मानना है कि एनटीपीसी के हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट की वजह से ही यह मुसीबत पैदा हुई है. चार धाम प्रोजेक्ट पर पर्यावरण और सुप्रीम कोर्ट से नियुक्त उच्चाधिकार प्राप्त समिति (HPC) के सदस्य हेमंत ध्यानी ने कहा कि क्षेत्र की जियोलॉजिकल वनरेबिलिटी से पूरी तरह अवगत होने के बावजूद, जोशीमठ और तपोवन के आसपास हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट को मंजूरी दी गई है, जिसमें विष्णुगढ़ एचई परियोजना भी शामिल है. उन्होंने बताया कि एक दशक पहले, विशेषज्ञों ने चेतावनी दी थी कि अचानक और बड़े पैमाने पर सतह से पानी निकालने से क्षेत्र में जमीन धंसने की शुरुआत हो सकती है, लेकिन फिर भी कोई सुधारात्मक उपाय नहीं किए गए, इसलिए यह आश्चर्य की बात नहीं है कि शहर डूब रहा है. बता दें कि इस योजना के तहत पहाड़ों को काटकर लंबी सुरंग बनाई जा रही है. 2 साल पहले शुरू हुए पावर प्रोजेक्ट के बाद से ही यहां जमीन पर दरारें पड़ने का सिलसिला शुरू हुआ था. सरकारी परियोजनाओं के चलते पूरे शहर में टनल बनाने के लिए ब्लास्ट किए जा रहे हैं, जो खतरे की घंटी है.


3. इंप्रोपर वाटर ड्रेनेज
विशेषज्ञों और यूएसडीएमए ने सतह से पानी के रिसाव में वृद्धि के कारणों की ओर इशारा किया, जो धंसने का एक संभावित कारण है. सबसे पहले, सतह पर मानवजनित गतिविधियों ने प्राकृतिक जल निकासी प्रणालियों को ब्लॉक कर दिया है, जिससे पानी को नए जल निकासी मार्गों को खोजने के लिए मजबूर होना पड़ा है. दूसरा, जोशीमठ शहर में सीवेज और वेस्टवॉटर डिस्पोजल सिस्टम नहीं हैं. हेमंत ध्यानी ने कहा कि सीवेज ओवरबर्डन मिट्टी की कतरनी ताकत को कम कर देता है. यह जोशीमठ के सुनील गांव के आसपास दिखाई दे रहा है, जहां पानी के पाइपों पर धंसने का असर दिखाई दे रहा है.


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