JPC Meeting on Waqf Amendment Bill: वक्फ संशोधन बिल पर संसद की जॉइंट पार्लियामेंट्री कमिटी (JPC) की पहली बैठक गुरुवार को हुई. बैठक में काफी हंगामा हुआ. मीटिंग में बिल के समर्थन में बोलेत हुए बीजेपी के सांसद बृजलाल ने कुछ ऐसा कह दिया जिसे लेकर काफी बवाल मच रहा है.


दरअसल, बृजलाल ने कहा कि वक्फ के पास जितनी जमीन है उतने में ढाई कुवैत और डेढ़ बहरीन बन जाएंगे. वक्फ बोर्ड के पास देश में करीब 9 लाख एकड़ जमीन है. इन दोनों बयान को सुनकर मीटिंग में मौजूद विपक्षी दलों और अन्य संगठनों ने हंगामा शुरू कर दिया. विपक्ष ने कहा- गलत नैरेटिव गढ़ रहे हैं.


बीजेपी सांसद के बयान पर हंगामा


वहीं, बीजेपी सांसद मेधा कुलकर्णी ने विधेयक पर चर्चा के दौरान कहा कि देश में लैंड जिहाद हो रहा है. इस पर कांग्रेस सांसद नासिर हुसैन ने उन्हें टोका और कड़ी आपत्ति जताई. इसके बाद अन्य विपक्षी सांसदों ने नासिर का साथ देते हुए बीजेपी सांसद को घेरने का प्रयास किया.


ओवैसी को टोका तो शुरू किया बवाल


बैठक में असददुद्दीन ओवैसी जब अपना पक्ष रख रहे थे तब बीच बीच में बीजेपी सांसद अभिजीत गांगुली टिप्पणी करते रहे. उन्होंने कहा कि वक्फ की जमीन अगर नियमों के तहत सरकार को मिले तो क्या दिक्कत? इस पर ओवैसी ने हंगामा शुरू किया और विपक्ष ने भी अपना विरोध जताया.


विपक्ष को रास नहीं आई ये तुलना


वहीं बैठक में बीजेपी सांसद बृजलाल ने जब वक्फ की जमीन की तुलना कुवैत और बहरीन से की तो कांग्रेस के सांसद नासिर हुसैन ने पलट जवाब दिया. उन्होंने कहा कि आप लोग इस तरह के नैरेटिव गढ़ने की कोशिश न करें.


क्या है मौजूदा कानून का वो हिस्सा, जिसपर है विवाद?


दरअसल, वक्फ कानून के सेक्शन 40 पर सबसे ज्यादा विवाद है. इसके मुताबिक अगर वक्फ बोर्ड किसी संपत्ति को वक्फ संपत्ति समझता है तो वो उसे नोटिस देकर और फिर जांच करके ये तय कर सकता है कि वो वक्फ का हिस्सा है. वह यह भी तय कर सकता है कि ये शिया वक्फ है या फिर सुन्नी. वक्फ बोर्ड के इस फैसले के खिलाफ सिर्फ ट्रिब्यूनल में जाया जा सकता है. फरवरी 2023 में तत्कालीन अल्पसंख्यक मामलों की मंत्री स्मृति ईरानी ने संसद में जवाब देकर इस प्रावधान को स्पष्ट किया था. स्मृति ईरान के जवाब के मुताबिक सेक्शन 40 कहता है, "स्टेट वक्फ बोर्ड को किसी भी सवाल पर फैसला करने का अधिकार है कि क्या कोई संपत्ति वक्फ की है या नहीं या फिर ये सुन्नी वक्फ है या शिया. बोर्ड ऐसे कारण पर विधिवत विचार करने और अगर जरूरत पड़ती है तो जांच करने के बाद मामले पर निर्णय लेता है. इस सेक्शन के तहत किसी भी सवाल पर बोर्ड का फैसला अंतिम ही रहता है, जब तक कि ट्रिब्यूनल की ओर से उसे रद्द या संशोधित नहीं किया जाता है."


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