नई दिल्ली: (हमारे दर्शक सुमित कुमार, परमा यदुवंशी, विराट चाक, कृष्ण अरोड़ा, विनय वार्ष्णेय, मुकेश कुमार, अमित, हीरालाल मौर्य, सौरभ मणि, राज किशोर छपरा, शिवानंद पंत, नीतू सिंह, विशाल, मुस्कान पटेल के पूछे गए सवालों के आधार पर ये लेख लिखा गया है.)
सवाल- ताजा जज नियुक्ति विवाद क्या है? सरकार और सुप्रीम कोर्ट के बीच क्या विवाद है?
इस साल 11 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट के पांच वरिष्ठतम जजों के कॉलेजियम ने वरिष्ठ वकील इंदु मल्होत्रा और उत्तराखंड हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस केएम जोसफ को सुप्रीम कोर्ट का जज बनाने के लिए केंद्र सरकार को सिफारिश भेजी थी. लेकिन सरकार ने सुप्रीम कोर्ट के कॉलेजियम की सिफारिश को तीन महीने तक लंबित रखा.
इस तरह सिफारिश लंबित रखे जाने पर सुप्रीम कोर्ट के जजों में नाराजगी थी. सुप्रीम कोर्ट के जज कुरियन जोसफ ने चीफ जस्टिस को चिट्ठी लिख कर चिंता भी जताई थी. आखिरकार, 27 अप्रैल को सरकार ने सिर्फ इंदु मल्होत्रा को जज बनाने की अधिसूचना जारी कर दी जबकि केएम जोसफ के नाम की सिफारिश कॉलेजियम के पास वापस भेज दी.
सवाल- सरकार ने कॉलेजियम की सिफारिश वापस क्यों भेजी?
अदालत के गलियारों में आम चर्चा है कि केंद्र सरकार जस्टिस केएम जोसेफ को लेकर सहज नहीं है. ऐसा इसलिए क्योंकि 2016 में उन्होंने ही उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन हटाकर कांग्रेस की हरीश रावत सरकार को बहाल करने का आदेश दिया था. हालांकि, मोदी सरकार इससे इंकार कर रही है.
सरकार ने केएम जोसेफ के नाम की सिफारिश कॉलेजियम के पास वापस भेजते हुए एक चिट्ठी लिखी है. सरकार ने नाम वापस भेजने की वजह बताते हुए कहा है:-
हाई कोर्ट के जजों में वरिष्ठता सूची में जोसफ का नंबर 42वां हैं. उन्हें दरकिनार कर ये सिफारिश भेजी गई. इस समय 11 हाई कोर्ट चीफ जस्टिस उनसे वरिष्ठ हैं. उन्हें भी दरकिनार किया गया. केरल हाई कोर्ट से आने वाले एक जज पहले से सुप्रीम कोर्ट में हैं. कलकत्ता, राजस्थान, गुजरात, झारखंड जैसे कई हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट में कोई जज नहीं. मूल रूप से केरल हाई कोर्ट के जज रहे कई लोग देश भर में कई जज हैं. अभी 4 हाई कोर्ट चीफ जस्टिस हैं, जो केरल से हैं. सुप्रीम कोर्ट में फिलहाल कोई भी अनुसूचित जाति/जनजाति का जज नहीं.
सवाल- सरकार सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम की सुनती है या नहीं?
जवाब- जब भी सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम केंद्र सरकार को जजों की नियुक्ति की सिफारिश भेजती है तो सरकार सोच-विचार और जांच-परख के बाद उस नियुक्ति को हरी झंडी देती है. अगर सरकार को किसी जज की नियुक्ति पर एतराज है या कोई सवाल है तो वो उस नाम को कॉलेजियम के पास पुनर्विचार के लिए वापस भेज देती है.
मौजूदा नियमों के तहत सरकार एक बार कॉलेजियम की किसी सिफारिश को फिर से विचार के लिए लौटा सकती है. लेकिन अगर कॉलेजियम दोबारा उस नाम की सिफारिश कर देता है तो उसे जज बनाना सरकार के लिए अनिवार्य होता है.
सवाल- सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में अगड़ी और पिछड़ी जातियों के कितने जज हैं?
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट में एक भी दलित जज नहीं है. पिछले 8 साल से किसी भी दलित जज को सुप्रीम कोर्ट नहीं भेजा गया है. सुप्रीम कोर्ट में आखिरी दलित जज केजी बालकृष्णन थे जो 2010 में रिटायर हुए थे.
देश की 24 हाईकोर्टों में भी दलित समुदाय से जज तो हैं लेकिन कोई भी चीफ जस्टिस नहीं है. इस साल मार्च में लोकसभा सांसद रविंद्र बाबू ने ये मुद्दा संसद में उठाया था. उन्होंने राष्ट्रीय अनुसूचित जाति आयोग की 2011 की रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा था कि देश की हाईकोर्टों में अनुसूचित जाति-जनजाति के सिर्फ 21 जज हैं. उन्होंने ये भी बताया कि देश की 24 में से 14 हाईकोर्ट्स में एक भी जज इन समुदायों से नहीं है.
इस पर सरकार का कहना था कि हाईकोर्ट में जजों की नियुक्ति संविधान के अनुच्छेद 217 के हिसाब से की जाती है. जिसके तहत आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं है. इसलिए हाईकोर्ट जजों का कोई जातिगत डेटा मौजूद नहीं है.