SC Verdict on Demonetisation: केंद्र नहीं RBI को लेना चाहिए था नोटबंदी पर फैसला, अलग राय रखने वाली जस्टिस नागरत्ना ने और क्या-क्या कहा, जानें
SC Verdict on Demonetisation: सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना ने बेंच के इस फैसले पर आरबीआई एक्ट के सेक्शन 26(2) के अंतर्गत केंद्र सरकार की शक्तियों को लेकर अपनी असहमति जताई है.
SC on Demonetisation: नोटबंदी के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाओं पर सोमवार (2 जनवरी 2023) को फैसला आ गया है. सुप्रीम कोर्ट ने मोदी सरकार के नोटबंदी के तहत 1000-500 के नोटों को अमान्य घोषित किए जाने के फैसले को सही ठहराया है. सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले के साथ ही नोटबंदी के खिलाफ दाखिल हुईं 58 याचिकाएं खारिज हो गईं. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट की बेंच के एक जज ने इस फैसले पर अपनी असहमति जताई है.
सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना ने बेंच के इस फैसले पर आरबीआई एक्ट के सेक्शन 26(2) के अंतर्गत केंद्र सरकार की शक्तियों को लेकर अपनी असहमति जताई है. पांच जजों की खंडपीठ नोटबंदी के खिलाफ लगी याचिकाओं की सुनवाई कर रही थी. जिस पर 7 दिसंबर 2022 को फैसला सुरक्षित रख लिया गया था.
जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कही ये बातें
वेबसाइट लाइव लॉ के अनुसार, सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस बीवी नागरत्ना ने जस्टिस गवई जे के फैसले पर कहा कि उनका फैसला यह नहीं मानता है कि एक्ट में केंद्र सरकार की ओर से नोटबंदी की पहल की कल्पना नहीं की गई है. उन्होंने कहा कि अगर नोटबंदी केंद्र सरकार की ओर से की जानी है, तो ऐसी शक्ति सूची I की 36वीं एंट्री से ली जा सकती है, जो मुद्रा, सिक्कों और वैध नोट और फॉरेन एक्सचेंज की बात करती है.
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि मेरे विचार हर सवालों पर अलग हैं. उन्होंने कहा कि जब नोटबंदी का प्रस्ताव केंद्र सरकार की ओर से आता है, ये आरबीआई एक्ट की धारा 26(2) के अंतर्गत नहीं आता है. उन्होंने कहा कि यह एक कानून के रूप में है और अगर गोपनीयता की जरूरत है, तो एक अध्यादेश के जरिये लागू होता.
आरबीआई को लेना था फैसला- जस्टिस नागरत्ना
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि आरबीआई एक्ट की धारा 26(2) के तहत नोटबंदी का प्रस्ताव आरबीआई के राष्ट्रीय बोर्ड की ओर से आना चाहिए. उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार का सभी सीरीज के नोटों की नोटबंदी का मामला आरबीआई की ओर से निश्चित सीरीज की नोटबंदी से भी ज्यादा गंभीर मामला है.
कानून के जरिये होनी चाहिए थी नोटबंदी
जस्टिस नागरत्ना ने फैसले पर अपनी असहमति जताते हुए कहा कि नोटबंदी का फैसला कानून लाकर ही होना चाहिए था, एक गजट नोटिफिकेशन लाकर नहीं. उन्होंने अपने फैसले में कहा कि संसद देश की परछाई है. लोकतंत्र के केंद्र संसद को इतने गंभीर मुद्दे पर दूर नहीं रखा जा सकता है.
उन्होंने कहा कि आरबीआई की ओर से दाखिल किए गए दस्तावेजों में लिखा है, 'केंद्र सरकार चाहती थी' से साफ पता चलता है, ये आरबीआई की ओर से लिया गया स्वतंत्र फैसला नहीं था. पूरा फैसला केवल 24 घंटे में ले लिया गया. उन्होंने कहा कि आरबीआई के विचार को सिफारिश नहीं माना जा सकता है.
जस्टिस नागरत्ना ने कहा कि मान लिया जाए कि आरबीआई के पास ऐसी ताकत है, लेकिन कुछ सिफारिशें अवैध हैं. उन्होंने कहा कि आरबीआई एक्ट की धारा 26(2) के तहत सिर्फ कुछ सीरीज के नोटों पर पाबंदी लगाई जा सकती है. सभी सीरीज के नोटों पर नहीं.
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