नई दिल्ली: 'रंजन' का मतलब होता है 'रंगना'. इसका इस्तेमाल मन प्रसन्न करने के अर्थ में भी होता है. हालांकि, नए चीफ जस्टिस रंजन गोगोई अपनी कोर्ट में आए किसी व्यक्ति को खुश करने की नीयत नहीं दिखाते. कम बोलते हैं और सिर्फ काम की बात सुनते हैं. उनकी कोर्ट में बड़े से बड़े वकील को बात लंबी खींचने की इजाज़त नहीं मिलती.
पहले दिन ही नज़र आया बदलाव
अपने कार्यकाल के पहले दिन उन्होंने कोर्ट को अलग रंग में रंगने के संकेत ज़रूर दे दिए. याचिकाओं पर जल्द सुनवाई की मांग लेकर आए वकीलों से कहा, "अगर आज ही जान जाने वाली हो, फांसी लग रही हो या मकान से बाहर निकाला जा रहा हो, तो जल्द सुनवाई की दरख्वास्त करें." उनके तेवर देखते ही वकीलों की एक बड़ी संख्या बाहर निकल गयी.
दरअसल, ज़्यादातर चीफ जस्टिस जल्द सुनवाई की मांग करने सुबह पेश होने वालों को लेकर उदार रहे हैं. निवर्तमान चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के दौर में ऐसे वकीलों की लंबी कतार लगती थी. 10.30 पर बैठने वाली चीफ जस्टिस की बेंच इस वजह से अक्सर 11 बजे तक ही नियमित काम शुरू कर पाती थी.
'सिर्फ काम की बात करें'
अपनी तारीफ में कसीदे पढ़ने की कोशिश कर रहे एक वकील को भी उन्होंने चुप करा दिया. कहा, "ये काम का वक्त है. मैं इसी के लिए यहां बैठा हूं." ज़्यादातर बॉम्बे हाई कोर्ट में प्रैक्टिस करने वाले वकील ने कहा, "मैं बहुत दूर से आया हूं." जस्टिस गोगोई का जवाब था, "आप कहीं से भी आए हों, काम की बात कीजिए."
बेहद सख्त छवि
आमतौर पर बड़े वकीलों को कोर्ट में बोलने को ज़्यादा मिलता है. वो विस्तार से दलील रखने के दौरान कई बार अपनी बातों को दोहराते हैं. जस्टिस गोगोई की कोर्ट में किसी के लिए भी ऐसा करना मुमकिन नहीं होता. अगर बात लंबी खिंच रही हो तो गोगोई बड़े वकील को रोकने में गुरेज नहीं करते. मुकदमे से जुड़ा सीधा सवाल कर देते हैं.
उनकी सख्त छवि उस वक्त और उभरकर सामने आई, जब उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस मार्कंडेय काटजू को कोर्ट में तलब कर लिया. काटजू ने केरल के सौम्या बलात्कार कांड में सुप्रीम कोर्ट के फैसले की बेहद तल्ख लहज़े में आलोचना की थी. उन्होंने जजों की समझ पर सवाल उठाए थे.
जस्टिस गोगोई ने इसे अदालत की अवमानना की तरह लिया और काटजू को पेश होने का नोटिस जारी कर दिया. पहली बार सुप्रीम कोर्ट का कोई पूर्व जज इस तरह कोर्ट में पेश हुआ. हालांकि, बाद में वकीलों की दरख्वास्त पर जस्टिस गोगोई ने काटजू को चेतावनी देकर जाने दिया.
गरीब तक न्याय पहुंचाने की चिंता
मूलतः असम के रहने वाले जस्टिस रंजन गोगोई अगले साल 17 नवंबर तक पद पर रहेंगे. पिछले हफ्ते एक कार्यक्रम में उन्होंने कहा था, "मैं देश की अदालतों में लंबित मुकदमों की बड़ी संख्या से चिंतित हूं. इसे कम करने को लेकर मेरे मन में एक योजना है. मेरी कोशिश रहेगी कि समाज के सबसे कमज़ोर वर्ग तक न्याय पहुंच सके."
जस्टिस गोगोई की गंभीर छवि को देखते हुए उनकी इस बात को सिर्फ भाषण की तरह नहीं लिया जा सकता. सबको इस बात का इंतज़ार रहेगा कि न्यायपालिका के लिए लंबे वक्त से चुनौती बने इन मुद्दों पर वो क्या कदम उठाते हैं.