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कॉलेजियम की सिफारिशों पर केंद्र की देरी पर जस्टिस संजय किशन कौल बोले- कुछ चीजों को अनकहा छोड़ देना बेहतर

Collegium: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल ने कॉलेजियम की सिफारिशों पर कदम उठाने में केंद्र सरकार की कथित देरी को लेकर टिप्पणी की.

Justice Sanjay Kishan Kaul On Collegium: सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस संजय किशन कौल ने मंगलवार (5 दिसंबर) को कहा कि कभी-कभी कुछ चीजों को अनकहा छोड़ देना ही बेहतर होता है. हाई कोर्ट के न्यायाधीशों की पदोन्नति और स्थानांतरण के विषय पर कॉलेजियम की सिफारिशों पर कदम उठाने में केंद्र सरकार की कथित देरी से संबंधित याचिकाओं को वाद सूची से अचानक हटाये जाने का कुछ वकीलों ने आरोप लगाया,

इसमें जस्टिस  कौल ने यह टिप्पणी की. सुप्रीम कोर्ट के विचारार्थ दो याचिकाएं हैं, जिनमें से एक में कॉलेजियम के अनुशंसित नामों को मंजूरी देने में सरकार पर देरी करने का आरोप लगाया गया है. जस्टिस कौल और जस्टिस सुधांशु धूलिया की पीठ ने विषय की सुनवाई की थी और इसे आगे की सुनवाई के लिए मंगलवार को सूचीबद्ध करने को कहा था. 

क्या दलीलें दी गई?
याचिकाकर्ताओं में से एक का प्रतिनिधित्व कर रहे एक वकील ने पीठ के समक्ष मुद्दे का उल्लेख किया और कहा कि याचिकाएं आज सुनवाई के लिए सूचीबद्ध की जानी थीं, लेकिन वाद सूची से हटा दी गईं.  जस्टिस कौल ने वकील से कहा, ‘‘मैंने इन्हें नहीं हटाया है. ’’

बाद में, एक अन्य याचिकाकर्ता की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता प्रशांत भूषण ने भी इस मुद्दे को उठाया. उन्होंने आश्चर्य व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘यह अजीब है कि इसे हटा दिया गया है.’’

जस्टिस कौल ने भूषण से कहा, “आपके मित्र ने सुबह (मुद्दे का) उल्लेख किया था. मैंने सिर्फ एक बात कही थी, मैंने वह विषय नहीं हटाया है. ” भूषण ने जब कहा कि अदालत को रजिस्ट्री से इस बारे में स्पष्टीकरण मांगना चाहिए तो जस्टिस कौल ने उनसे कहा, “मुझे यकीन है कि प्रधान न्यायाधीश को इसकी जानकारी है.”

भूषण ने कहा कि यह बहुत असामान्य है कि विषय को हटा दिया गया, जबकि इसे आज सूचीबद्ध करने का न्यायिक आदेश था.  जस्टिस कौल ने वरिष्ठ वकील से कहा, “कभी-कभी कुछ चीजों को अनकहा छोड़ देना ही बेहतर होता है.”

भूषण ने कहा कि यह मामला काफी समय से जस्टि कौल की अगुवाई वाली पीठ देख रही है. कौल ने कहा, “इसलिए मैं स्पष्ट करता हूं कि ऐसा नहीं है कि मैंने मामला हटा दिया है या मैं इस मामले को सुनने का इच्छुक नहीं हूं.”

सुप्रीम कोर्ट ने क्या कहा था?
सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर को मामले की सुनवाई करते हुए कॉलेजियम के स्थानांतरण के लिए अनुशंसित हाई कोर्ट के जजों को केंद्र के चुनने के मुद्दे को उठाते हुए कहा था कि इससे अच्छा संकेत नहीं जाएगा.  कॉलेजियम प्रणाली के माध्यम से जजों की नियुक्ति कोर्ट और केंद्र के बीच तनातनी का एक मुद्दा बन गया है. 

कोर्ट जिन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है, उनमें एडवोकेट्स एसोसिएशन, बेंगलुरु के दायर एक याचिका भी शामिल है, जिसमें अनुशंसित नामों को मंजूरी देने के लिए 2021 के फैसले में न्यायालय के होई कोर्ट के न्यायाधीशों की पदोन्नति और स्थानांतरण के लिए निर्धारित समय-सीमा का पालन नहीं करने को लेकर केंद्रीय कानून और न्याय मंत्रालय के खिलाफ अवमानना ​​कार्रवाई की मांग की गई है. 

एक याचिका में, जजों की समय पर नियुक्ति के लिए सुप्रीम कोर्ट के 20 अप्रैल, 2021 के आदेश में निर्धारित समय-सीमा की (केंद्र द्वारा) “जानबूझकर अवज्ञा” करने का आरोप लगाया गया है. उक्त आदेश में, अदालत ने कहा था कि अगर कॉलेजियम सर्वसम्मति से अपनी सिफारिशें दोहराती है तो केंद्र तीन-चार सप्ताह के भीतर न्यायाधीशों की नियुक्ति करेगा.

ये भी पढ़ें- अविवाहित महिलाओं को सरोगेसी की अनुमति वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र को भेजा नोटिस

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