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क्या महाभियोग से हटने वाले पहले जज बनेंगे जस्टिस शेखर कुमार यादव, जानिए क्या कहता है पूरा नियम

Code of Conduct for Judges: कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा ने बुधवार को कहा था कि संसद के शीतकालीन सत्र में ही इसके लिए नोटिस दिया जाएगा. इस महाभियोग के लिए अब तक राज्यसभा के 30 सांसद साइन कर चुके हैं.

Code of Conduct for High Court and Supreme Court Judges: इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज शेखर कुमार यादव का मामला अब संसद तक पहुंच चुका है. विपक्षी दल जस्टिस शेखर कुमार यादव के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी में हैं, अगर महाभियोग की पूरी प्रक्रिया सफलतापूर्वक संपन्न हो जाती है तो उन्हें पद से हटाने का रास्ता साफ हो जाएगा.

इन सबके बीच बड़ा सवाल यही है कि कि क्या महाभियोग से जज को हटाया जा सकता है. यहां हम आपको जस्टिस शेखर कुमार यादव और महाभियोग से जुड़े हर सवाल का जवाब विस्तार से देंगे. हम जानेंगे महाभियोग लाने की प्रक्रिया और साथ ही ये भी समझेंगे कि क्या अभी तक किसी जज को इसके तहत हटाया गया है.

इसी सत्र में महाभियोग लाने की तैयारी

बता दें कि कांग्रेस सांसद विवेक तन्खा ने बुधवार (12 दिसंबर 2024) को कहा था कि संसद के वर्तमान शीतकालीन सत्र में ही इसके लिए नोटिस दिया जाएगा. इस महाभियोग के लिए अब तक राज्यसभा के 30 से अधिक सदस्यों के साइन हो चुके हैं. प्रस्ताव से जुड़ा नोटिस लोकसभा के 100 सदस्यों या राज्यसभा के 50 सदस्यों की ओर से पेश किया जाना चाहिए, लेकिन महाभियोग लाना इतना आसान भी नहीं है.

अब तक किसी भी जज के खिलाफ नहीं हुई ऐसी कार्रवाई

जजों के खिलाफ महाभियोग पर नजर डालें तो स्वतंत्र भारत के इतिहास में आज तक एक भी जज के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया पूरी नहीं की जा सकी है. नब्बे की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट के जज वी रामास्वामी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों पर महाभियोग लाया गया था लेकिन यह लोकसभा में पास नहीं हो सका. इसके बाद कोलकाता हाई कोर्ट के जज सौमित्र सेन के खिलाफ पैसों को लेकर ये प्रस्ताव आया, लेकिन उन्होंने पहले ही इस्तीफा दे दिया. फिर साल 2018 में तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा पर महाभियोग का प्रस्ताव लाया गया. उनपर विपक्षी दलों ने दुर्व्यवहार का आरोप लगाया. लेकिन तत्कालीन राज्यसभा सभापति ने उसे खारिज कर दिया.

क्या महाभियोग से जज को हटाया जा सकता है?

हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जज को महाभियोग के जरिये हटाया जा सकता है. संविधान के अनुच्छेद 124(4) और अनुच्छेद 217 में इस पर विस्तार से बात की गई है. यह प्रक्रिया बहुत कठोर है. केवल जज के दुराचार (misbehaviour) या कर्म-अक्षमता (incapacity) के आधार पर ही इसे शुरू कर सकते हैं. यहां बता दें कि  दुराचार संबंधी मामलों में भ्रष्टाचार, कदाचार से जुड़े मामले आते हैं, जबकि कर्म अक्षमता उस स्थिति को कहते हें जिसमें कोई मानसिक या शारीरिक स्तर की वजह से इस पद और कार्य के योग्य न हो. हालांकि उसके भाषण इस श्रेणी में नहीं आते लेकिन उसको ख्याल रखना होता है कि उसको किन बातों पर सार्वजनिक तौर पर टिप्पणी करनी चाहिए या नहीं और किस स्तर तक, क्योंकि वो जिस संस्था से संबंधित है वो न्याय से संबंधित है, जिसमें न्याय करना भी होता है और न्याय के अनुकूल आचरण करते हुए भी दिखना होता है.

महाभियोग की प्रक्रिया कैसे शुरू होती है?

संसद के किसी एक सदन (लोकसभा या राज्यसभा) में जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया जा सकता है. प्रस्ताव को पेश करने के लिए एक निश्चित संख्या में सांसदों का समर्थन आवश्यक है. इस कड़ी में लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों का समर्थन, जबकि राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों का समर्थन जरूरी है. इसके बाद प्रस्ताव को राज्यसभा के सभापति या लोकसभा स्पीकर के सामने पेश किया जाता है. सभापति या स्पीकर प्रस्ताव की प्रारंभिक जांच के लिए एक जांच समिति का गठन करते हैं. समिति में सुप्रीम कोर्ट के एक जज, हाईकोर्ट के एक चीफ जस्टिस और एक विशिष्ट विधि विशेषज्ञ शामिल होते हैं. समिति जज के खिलाफ लगाए गए आरोपों की जांच करती है और अपनी रिपोर्ट देती है. अगर समिति की रिपोर्ट में आरोप सही पाए जाते हैं तो संसद में महाभियोग प्रस्ताव पेश किया जाता है. प्रस्ताव को पारित करने के लिए सदन के दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है. यदि एक सदन में प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो इसे दूसरे सदन में भेजा जाता है. यदि दोनों सदनों में प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद संबंधित जज को उनके पद से हटा दिया जाता है.

क्या कहा था जस्टिस शेखर कुमार यादव ने?

दरअसल, 8 दिसंबर 2024 को इलाहाबाद हाईकोर्ट में विश्व हिंदू परिषद (VHP) की कानूनी इकाई और हाईकोर्ट इकाई का एक प्रांतीय सम्मेलन था. इसमें जस्टिस शेखर कुमार यादव ने कहा था कि समान नागरिक संहिता (UCC) का मुख्य उद्देश्य सामाजिक सद्भाव, लैंगिक समानता और धर्मनिर्पेक्षता को बढ़ावा देना है. उन्होंने आगे कहा था कि हिन्दुस्तान में रहने वाले बहुसंख्यक के अनुसार ही देश चलेगा. जस्टिस यादव ने अपने भाषण में आगे कहा, “एक से ज़्यादा पत्नी रखने, तीन तलाक़ और हलाला के लिए कोई बहाना नहीं है और अब ये प्रथाएं नहीं चलेंगी.” अगले दिन इस भाषण का वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया.

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