कुछ भी बोल पड़ते हैं जज, आखिर इनके लिए क्या है कोड ऑफ कंडक्ट, जानिए इन्हें पद से हटाने का प्रोसेस
Code of Conduct for Judges: संसद के किसी एक सदन (लोकसभा या राज्यसभा) में जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया जा सकता है. प्रस्ताव पेश करने के लिए एक निश्चित संख्या में सांसदों का समर्थन आवश्यक है.
Code of Conduct for High Court and Supreme Court Judges: इलाहाबाद हाईकोर्ट के जज शेखर कुमार यादव के विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम में दिए गए भाषण को लेकर उठा विवाद काफी बढ़ गया है. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इलाहाबाद हाईकोर्ट से पूरी डिटेल मांगी है. इस बयान की काफी आलोचना भी हो रही है.
वहीं, दूसरी ओर इसे लेकर राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने कहा है कि जस्टिस शेखर कुमार यादव के खिलाफ महाभियोग चलाना चाहिए. वह इसके लिए पूरी कोशिश करेंगे. अब लोग जानना चाहते हैं कि आखिर यह महाभियोग क्या है, क्या जजों के खिलाफ महाभियोग लाया जा सकता है और इसकी प्रक्रिया क्या होती है. इसके अलावा हम बताएंगे कि जजों को लेकर कोड ऑफ कंडक्ट क्या है.
इस स्थिति में चलता है महाभियोग
भारत में हाईकोर्ट के जज के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया संविधान के अनुच्छेद 124(4) और न्यायपालिका अधिनियम के तहत निर्धारित है. यह प्रक्रिया बहुत कठोर है. केवल जज के दुराचार (misbehaviour) या कर्म-अक्षमता (incapacity) के आधार पर ही इसे शुरू कर सकते हैं. यहां बता दें कि दुराचार संबंधी मामलों में भ्रष्टाचार, कदाचार से जुड़े मामले आते हैं, जबकि कर्म अक्षमता उस स्थिति को कहते हें जिसमें कोई मानसिक या शारीरिक स्तर की वजह से इस पद और कार्य के योग्य न हो. हालांकि उसके भाषण इस श्रेणी में नहीं आते लेकिन उसको ख्याल रखना होता है कि उसको किन बातों पर सार्वजनिक तौर पर टिप्पणी करनी चाहिए या नहीं और किस स्तर तक, क्योंकि वो जिस संस्था से संबंधित है वो न्याय से संबंधित है, जिसमें न्याय करना भी होता है और न्याय के अनुकूल आचरण करते हुए भी दिखना होता है.
महाभियोग की प्रक्रिया कैसे शुरू होती है?
संसद के किसी एक सदन (लोकसभा या राज्यसभा) में जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव पेश किया जा सकता है. प्रस्ताव को पेश करने के लिए एक निश्चित संख्या में सांसदों का समर्थन आवश्यक है. इस कड़ी में लोकसभा में कम से कम 100 सांसदों का समर्थन, जबकि राज्यसभा में कम से कम 50 सांसदों का समर्थन जरूरी है. इसके बाद प्रस्ताव को राज्यसभा के सभापति या लोकसभा स्पीकर के सामने पेश किया जाता है. सभापति या स्पीकर प्रस्ताव की प्रारंभिक जांच के लिए एक जांच समिति का गठन करते हैं. समिति में सुप्रीम कोर्ट के एक जज, हाईकोर्ट के एक चीफ जस्टिस और एक विशिष्ट विधि विशेषज्ञ शामिल होते हैं. समिति जज के खिलाफ लगाए गए आरोपों की जांच करती है और अपनी रिपोर्ट देती है. अगर समिति की रिपोर्ट में आरोप सही पाए जाते हैं तो संसद में महाभियोग प्रस्ताव पेश किया जाता है. प्रस्ताव को पारित करने के लिए सदन के दो-तिहाई बहुमत की आवश्यकता होती है. यदि एक सदन में प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो इसे दूसरे सदन में भेजा जाता है. यदि दोनों सदनों में प्रस्ताव पारित हो जाता है, तो इसे राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है. राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद संबंधित जज को उनके पद से हटा दिया जाता है.
कौन ला सकता है महाभियोग?
महाभियोग प्रस्ताव सांसदों की ओर से लाया जाता है. यह कार्यकारी शाखा (सरकार) का हिस्सा नहीं है, बल्कि विधायी शाखा का विशेषाधिकार है. वैसे भारत में अब तक किसी भी हाईकोर्ट जज को महाभियोग प्रक्रिया के तहत पद से नहीं हटाया गया है. राज्यसभा सदस्य और सीनियर वकील कपिल सिब्बल का कहना है कि वो सांसदों से चर्चा करके जल्दी ही जज के खिलाफ महाभियोग प्रस्ताव लाएंगे.
क्या है कोड ऑफ कंडक्ट?
दरअसल, सुप्रीम कोर्ट या हाई कोर्ट के जजों के भाषण के लिए वैसे तो कोई लिखित आचार संहिता नहीं है. इलाहाबाद हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज शाहजीत यादव कहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के जजों को खुद को मालूम होता है कि उन्हें कैसे और कहां सेल्फ अनुशासित होना चाहिए और समझना चाहिए कि कहां क्या बोलना है और कहां क्या नहीं बोलना है. जिस पद पर वो हैं, वो ऐसा पद है जिसकी अपनी गरिमा और छवि है. उन्होंने बताया कि यद्यपि सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट के जजों के लिए कोई लिखित आचार संहिता बेशक नहीं है लेकिन समय समय पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले और टिप्पणियां ये जाहिर करती हैं कि जजों का आचरण और वक्तव्य कैसा और क्या होना चाहिए.
जस्टिस यादव पर किस तरह हो सकती है कार्रवाई
पहले तो सुप्रीम कोर्ट इस पूरे मामले को समझेगा. वह इस मामले पर अपने दो-तीन जजों की जांच बिठा सकता है. जांच के बाद यद्यपि सुप्रीम कोर्ट खुद कोई कार्रवाई इस मामले पर नहीं कर सकता लेकिन अपनी रिपोर्ट संसद को भेज सकता है, फिर ये संसद का दायित्व हो जाता है कि वो इस पर क्या करती है. यहां बता दें कि कि हाईकोर्ट सुप्रीम कोर्ट के अंडर नहीं आता. यह स्वतंत्र होता है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट केवल जांच कर सकता है और महाभियोग चलाने के लिए मामले को संसद भेज सकता है.
क्या संविधान जजों के बोलने पर कुछ कहता है?
भारतीय संविधान अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है, लेकिन अनुच्छेद 19(2) इस अधिकार पर उचित प्रतिबंध लगाने की अनुमति देता है, जिसमें न्यायालय की अवमानना को रोकने के लिए सीमाएं भी शामिल हैं. इसका मतलब ये है कि एक बार जब कोई मामला अदालत में पहुंच जाता है, तो सार्वजनिक टिप्पणियां, जो न्यायाधीश के निर्णय को प्रभावित कर सकती हैं, वो नहीं कहनी चाहिए. उसे धर्म, जाति या अन्य संरक्षित विशेषताओं के आधार पर विशिष्ट समूहों के खिलाफ घृणा या हिंसा को बढ़ावा देने वाले भाषण नहीं देने चाहिए. ये बातें हर भारतीय नागरिक पर भी लागू होती है.
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