नई दिल्ली: एम नागेश्वर राव को सीबीआई का अंतरिम निदेशक बनाए जाने के खिलाफ दायर याचिका पर सुनवाई से जस्टिस ए के सीकरी ने खुद को अलग किया. जस्टिस सीकरी पिछले निदेशक आलोक वर्मा का ट्रांसफर करने वाली कमिटी के हिस्सा थे. इससे पहले चीफ जस्टिस रंजन गोगोई भी ये कहते हुए सुनवाई से अलग हो चुके हैं कि वो नए निदेशक की चयन प्रक्रिया का हिस्सा हैं. अब एक अलग बेंच में मामला कल सुना जाएगा.


एनजीओ कॉमन कॉज़ ने वकील प्रशांत भूषण के ज़रिए दाखिल याचिका में कहा है कि बिना चयन समिति की मंजूरी के राव की नियुक्ति गलत है. नागेश्वर के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप होने की दलील भी दी गई है.

आलोक वर्मा के बाद नागेश्वर राव की हुई है नियुक्ति
आपको बता दें कि पिछले साल 23 अक्टूबर को सरकार ने भ्रष्टाचार के आरोप लगने के बाद आलोक वर्मा को जबरन छुट्टी पर भेज दिया था. उनकी जगह नागेश्वर राव को अंतरिम निदेशक नियुक्त किया गया. बाद में आलोक वर्मा को सुप्रीम कोर्ट से राहत मिली. आलोक वर्मा ने दोबारा कार्यभार संभाला लेकिन उसके ठीक बाद उच्चस्तरीय समिति ने उन्हें सीबीआई निदेशक पद से हटा दिया. नागेश्वर राव को दोबारा अंतिरम निदेशक नियुक्त किया गया. इस नियुक्ति के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दाखिल की गई है.

एनजीओ का तर्क
एनजीओ ने तर्क दिया कि सीबीआई निदेशक की नियुक्ति के लिए उच्चस्तरीय चयन समिति को केंद्र सरकार द्वारा पूर्ण रूप से किनारे कर 10 जनवरी को राव की अंतरिम निदेशक के रूप में नियुक्ति कर दी गई, जो कि मनमाना और उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर है.

संगठन ने कहा, "नागेश्वर राव की अंतरिम सीबीआई निदेशक के रूप में नियुक्ति उच्चस्तरीय चयन समिति की सिफारिशों के आधार पर नहीं हुई है. 10 जनवरी, 2019 की तारीख वाले आदेश में कहा गया है कि कैबिनेट की नियुक्ति समिति ने पहले की व्यवस्थाओं के अनुसार नागेश्वर राव की नियुक्ति को मंजूरी दी है."