नई दिल्ली: नेता जी सुभाष चंद्र बोस का जीवन उनके जीवित रहते जितना रहस्यमय रहा उतना ही अब भी है. अयोध्या के रामभवन में लंबे समय तक रहे गुमनामी बाबा को लेकर दावा किया जाता था कि वे सुभाष चंद्र बोस थे. अब इस मामले में जस्टिस विष्णु सहाय कमीशन ने अपनी रिपोर्ट यूपी कैबिनेट में पेश कर दी है. रिपोर्ट में कहा गया है कि यह पता लगाना मुश्किल है कि गुमनामी बाबा ही नेता जी सुभाष चंद्र बोस थे, जैसा कि दावा किया जाता है.


साल 2016 में अखिलेश सरकार के दौरान बने कमीशन ने अपनी रिपोर्ट में बताया है कि बाबा और नेता जी के बीच कथित तौर पर कुछ समानताएं थीं. नेता जी की तरह ही गुमनामी बाबा भी इंग्लिश, हिंदी और बंगाली पर बेहतरीन पकड़ रखते थे. उनके आवास से इन भाषाओं में किताबें भी मिली थीं. अब इस रिपोर्ट को उत्तर प्रदेश विधानसभा के पटल पर रखा जाएगा.


एक अंग्रेजी अखबार में छपी खबर के मुताबिक रिपोर्ट में कहा गया है कि गुमनामी बाबा तब तक फैजाबाद में रहे जब तक उनके नेता जी सुभाष चंद्र होने की खबरें नहीं फैलने लगीं. रिपोर्ट में गुमनामी बाबा के सिगार और संगीत के प्रति लगाव को भी उल्लेख किया गया है.


दरअसल साल 2016 में इलाहबाद हाईकोर्ट में दायर याचिका में इस पूरे मामले की जांच की मांग की गई थी. याचिका में गुमनामी बाबा के नेता जी सुभाष चंद्र होने संभावना जताई गई थी. इस याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने अखिलेश यादव सरकार को आयोग गठन कर जांच के आदेश दिए थे. इसी के बाद अखिलेश सरकार ने जस्टिस विष्णु सहाय की अगुवाई में एक कमीशन का गठन किया था.