'कोई व्यापारी होता तो ED, इनकम टैक्स पहुंच जाते और जज के घर कैश मिला तो आपने...', जस्टिस वर्मा के खिलाफ FIR की मांग वाली याचिका सुनेगा SC
Justice Yashwant Varma Case: याचिका में दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के साथ केंद्र सरकार, दिल्ली पुलिस, दिल्ली फायर डिपार्टमेंट, ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स विभाग को भी पार्टी बनाया गया है.

Justice Yashwant Varma Cash Recovery Case: सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने जस्टिस यशवंत वर्मा के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई का आश्वासन दिया है. याचिकाकर्ताओं ने तुरंत सुनवाई की मांग की थी. इस पर चीफ जस्टिस संजीव खन्ना ने कहा कि रजिस्ट्री ने सुनवाई की तारीख तय कर दी है. आप वहां संपर्क करें.
मुंबई के रहने वाले 4 वकीलों की याचिका में कहा गया है कि जज के घर पर बड़ी मात्रा में पैसा मिलना एक आपराधिक मामला है. इसके लिए 3 जजों की जांच कमेटी बनाने की बजाय पुलिस समेत दूसरी एजेंसियों को जांच के लिए कहना चाहिए था. याचिकाकर्ताओं ने जल्द सुनवाई का अनुरोध करते हुए कहा, 'अगर इतने पैसे किसी व्यापारी के घर पर मिले होते, तो अब तक ईडी, इनकम टैक्स सब वहां पहुंच चुके होते.'
वकील मैथ्यूज नेदुंपरा, हेमाली कुर्ने, राजेश आद्रेकर और मनीषा मेहता की याचिका में 1991 में के वीरास्वामी मामले में आए सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ के फैसले का भी विरोध किया गया है. उस फैसले में कहा गया था कि हाई कोर्ट या सुप्रीम कोर्ट के जज के खिलाफ एफआईआर से पहले चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया की सहमति जरूरी है. याचिकाकर्ताओं ने कहा है कि संविधान में सिर्फ राष्ट्रपति और राज्यपालों को मुकदमे से छूट दी गई है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले से जजों को आम नागरिकों से अलग विशेष दर्जा दे दिया.
याचिका में सुप्रीम कोर्ट, दिल्ली हाई कोर्ट के चीफ जस्टिस के साथ केंद्र सरकार, दिल्ली पुलिस, दिल्ली फायर डिपार्टमेंट, ईडी, सीबीआई और इनकम टैक्स विभाग को भी पार्टी बनाया गया है. इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस की तरफ से गठित 3 सदस्यीय जांच कमेटी के सदस्यों जस्टिस शील नागू, जस्टिस जी एस संधावालिया और जस्टिस अनु शिवरामन को भी पक्ष बनाया गया है.
याचिका में यह कहा गया है कि 14 मार्च को जज के घर में जली हुई नकदी मिलने के तुरंत बाद एफआईआर दर्ज होनी चाहिए थी और गिरफ्तारी भी होनी चाहिए थी, लेकिन अब जजों की जांच कमेटी को मामला सौंप दिया गया है, जो कि सही नहीं है. जिस तरह आम नागरिकों के खिलाफ आपराधिक मामले में एफआईआर दर्ज होती है, वैसा ही इस मामले में भी होना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट 1991 के वीरास्वामी फैसले में की गई टिप्पणी को निरस्त करे और जांच एजेंसियों को केस दर्ज कर जांच के लिए कहे.
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