एक महत्वपूर्ण फैसले में सुप्रीम कोर्ट के नौ जजों की बेंच ने मंगलवार (5 नवंबर, 2024) को 7:2 अनुपात के बहुमत से फैसला दिया कि सभी निजी संपत्तियां समुदाय के भौतिक संसाधन का हिस्सा नहीं हो सकती हैं, जिससे सरकारों को संविधान के तहत सार्वजनिक हित में वितरण के लिए उन्हें अपने अधिकार में लेने की इजाजत मिल जाती है. बहुमत का फैसला 1978 के रंगनाथ रेड्डी मामले में जस्टिस कृष्णा अय्यर द्वारा व्यक्त विचार से सहमत नहीं था जिसमें यह माना गया था कि निजी संपत्तियों को सामुदायिक संसाधन माना जा सकता है. इसे लेकर बेंच के दो जजों ने सीजेआई की टिप्पणी को कठोर और अनुचित बताया.


नौ जजों की बेंच में सीजेआई चंद्रचूड़ के अलावा जस्टिस ऋषिकेश रॉय, जस्टिस जे बी पारदीवाला, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस राजेश बिंदल, जस्टिस सतीश चंद्र शर्मा, जस्टिस ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह, जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस सुधांशू धूलिया थे. जस्टिस नागरत्ना आंशिक रूप से बहुमत के फैसले से सहमत थीं, जबकि जस्टिस धूलिया ने असहमति जताई. हालांकि, रंगनाथ रेड्डी मामले में जस्टिस कृष्णा अय्यर के फैसले पर सीजेआई चंद्रचूड़ की टिप्पणी से दोनों असहमत थे.


सीजीआई ने कहा, 'इस पीठ को भेजा गया सीधा सवाल यह है कि क्या अनुच्छेद 39 (बी) में इस्तेमाल किए गए वाक्यांश 'समुदाय के भौतिक संसाधन' में निजी स्वामित्व वाले संसाधन शामिल हैं. सैद्धांतिक रूप से इसका उत्तर हां है, यानी इस वाक्यांश के तहत निजी स्वामित्व वाले संसाधन शामिल हो सकते हैं.'


लेकिन सीजेआई चंद्रचूड़ ने लिखा, 'रंगनाथ रेड्डी मामले में बहुमत के फैसले ने अनुच्छेद 39 (बी) की व्याख्या पर न्यायमूर्ति कृष्णा अय्यर (अल्पमत न्यायाधीशों की ओर से) द्वारा की गई टिप्पणियों से खुद को स्पष्ट रूप से अलग कर लिया था. इस प्रकार, संजीव कोक मामले में इस अदालत की एक पीठ ने अल्पमत की राय पर भरोसा करके गलती की.'


लाइव लॉ की रिपोर्ट के अनुसार जस्टिस नागरत्ना ने सीजेआई चंद्रचूड़ की टिप्पणी को अनुचित बताया और आपत्ति जताते हुए कहा कि  बताते हुए कहा कि जस्टिस कृष्णा अय्यर और जस्टिस चिन्नप्पा रेड्डी ने अपने विचारों को आगे बढ़ाने के आधार के रूप में संविधान के निर्माताओं के दृष्टिकोण का उल्लेख किया है. सीजेआई चंद्रचूड़ ने दोनों जजों के फैसले का जिक्र करते हुए कहा था कि वह विशेष आर्थिक विचारधारा से प्रभावित थे. 


जस्टिस बीवी नागरत्ना ने कहा, 'यह चिंता का विषय है कि भावी पीढ़ी के न्यायिक भाई अतीत के जजों के फैसले को कैसे देखते हैं. मैं कहूंगी कि ऐसा न हो कि भावी जज भी इसी प्रैक्टिस का पालन करें. मेरा मानना है कि सुप्रीम कोर्ट हर जज से बड़ा है, जो कि सिर्फ अलग-अलग समय पर इसका हिस्सा बनते हैं इसलिए मैं मुख्य न्यायाधीश के फैसले से सहमत नहीं हूं.'


जस्टिस सुधांशू धूलिया ने सीजेआई चंद्रचूड़ की टिप्पणी को कठोर बताते हुए कहा कि इससे बचा जा सकता था. उन्होंने कहा कि कृष्णा अय्यर सिद्धांत और चिन्नप्पा रेड्डी सिद्धांत उन सभी से परिचित है, जिनका जीवन या कानून से कोई लेना-देना है. यह निष्पक्षता और समानता के मजबूत मानवतावादी सिद्धांतों पर आधारित है, जिसने कई बार हमें अंधेरे में रोशनी दिखाई है. उनका जजमेंट न सिर्फ उनकी बुद्धिमता को दिखाता है, बल्कि उससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण ये है कि यह लोगों के लिए उनकी सहानुभूति है क्योंकि उनके न्यायिक दर्शन के केंद्र में मनुष्य था.'


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