Defence News: एक हफ्ते में पूरी कर सकेंगे कैलाश मानसरोवर यात्रा, चीन सीमा पर बीआरओ बना रहा सड़क
कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जाने वाले लोग आने वाले दिनों में केवल एक हफ्ते में कैलाश मानसरोवर पहुंच सकेंगे. बीआरओ धारचूला से चीन सीमा के लिपूलेख तक सड़क बना रहा है.
Defence News: वर्ष 2024 में कैलाश मानसरोवर यात्रा मात्र एक हफ्ते में पूरी की जा सकेगी. इसका कारण ये है कि उत्तराखंड के पिथौरागढ़ से लिपूलेख तक ये सड़क बनकर तैयार हो जाएगी. बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन यानि बीआरओ दिन-रात इस सड़क के निर्माण में जुटा है.
बीआरओ इस सड़क को पिथौरागढ़ के धारचूला से चीन सीमा के लिपूलेख तक बना रहा है. इस सड़क को बॉर्डर रोड ऑर्गेनाइजेशन (बीआरओ) ने करीब 17 हजार फीट की ऊंचाई पर तैयार किया है. ये सड़क भारत-चीन और नेपाल के ट्राई जंक्शन के पास से गुजरती है.
क्यों चल रहा है विवाद?
इस ट्राई जंक्शन के काला-पानी एरिया को लेकर तीनों देशों में विवाद चल रहा है. यही वजह है कि भारत के लिए इस जगह तक एक पक्की सड़क बनाने की बेहद जरूरत थी, ताकि जरूरत पड़ने पर सैनिकों की मूवमेंट तेजी से बढ़ाई जा सके. हाल ही में नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री ने भी कालापानी को लेकर विवादित बयान दिया था.
आपको बता दें कि डोकलाम विवाद के दौरान जब चीन को पाँव पीछे खींचने पड़े थे तब चीन ने जिन ट्राई-जंक्शन को लेकर भारत से विवाद चल रहा है उन पर आंखें तिरछी करने की कोशिश की थी. यही वजह है कि ये सड़क बेहद महत्वपूर्ण है.
मानसरोवर यात्रा में अभी कितना समय लगता है?
वर्ष 2020 में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इस सड़क के एक हिस्से का उद्घाटन वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिए किया था. करीब 200 किलोमीटर लंबी इस सड़क के उदघाटन पर बीआरओ को बधाई देते हुए रक्षा मंत्री राजनाथ ने इसे 'ऐतिहासिक' बताया था. क्योंकि अभी सिक्किम के नाथू ला और नेपाल से कैलाश मानसरोवर की यात्रा में 2-3 हफ्ते लग जाते हैं.
यात्रा के दौरान 80 प्रतिशत सफर चीन (तिब्बत) में करना पड़ता है और बाकी 20 प्रतिशत भारत में था. लेकिन पिथौरागढ़ की सड़क बनने से अब ये सफर उल्टा हो जाएगा. यानि अब 84 प्रतिशत भारत में होगा और मात्र 16 प्रतिशत तिब्बत में होगा. अभी कुछ तीर्थ-यात्री लिपूलेख के जरिए भी कैलाश मानसरोवर की यात्रा पर जाते हैं. लेकिन ये कच्चा ट्रैक है और जानने में लंबा वक्त लगता है.
क्या बोली बीआरओ?
बीआरओ के मुताबिक, इस सड़क को बनाना एक बड़ी चुनौती है. क्योंकि यहां पर चट्टानों को तोड़ना और काटना बेहद मुश्किल काम है. साथ ही भारी बर्फबारी और बादलों के फटने की कारण मजदूर और मशीनरी कई बार करीब में बहती काली नदी में बह गई. इसके बावजूद सड़क को बनाकर तैयार किया गया. मशीनरी को इतनी ऊंचाई पर पहुंचाने के लिए हाल ही में अमेरिकी से लिए गए चिनूक हेलीकॉप्टर की मदद भी ली गई.
कितनी देर में पहुंच जाएंगे लिपुलेख?
सड़क बनने के पहले दिन धारचूला से गाड़ियों के एक काफिले को भी सीमा पर स्थित गांवों के लिए रवाना किया गया. इस सड़क के बनने से पहले पिथौरागढ़ से लिपूलेख तक पहुंचने में कई दिन का समय लगता था. लेकिन अब यहां कुछ घंटों तक में पहुंचा जा सकता है. ये सड़क प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के उस विजन के अनुरूप है जिसमें सीमावर्ती इलाकों के विकास पर खासा जोर दिया गया है.