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Kamakhya Devi Temple: मां यहां होती हैं रजस्वला, कामख्या शक्ति पीठ असम के अनोखे हैं रहस्य, जानें सबकुछ

Kamakhya Devi Temple: असम की राजधानी दिसपुर से सात किलोमीटर दूर कामख्या देवी (kamakhya Devi) का शक्ति पीठ खुद में अनोखा है. यहां मां के रजस्वला (Menstruating) अवधि को पवित्र मानकर पूजा जाता है.

Kamakhya Devi Temple: भारत का उत्तर-पूर्वी राज्य असम मां के 51 शक्तिपीठों में से एक कामख्या शक्ति पीठ के लिए देश ही नहीं दुनिया भर में मशहूर है. इस मंदिर को यहां का प्रसाद और इससे जुड़ी मान्यताएं खास बनाती हैं. जहां महिलाओं के रजस्लवा अवधि को लेकर कई टैबू हैं, वहीं इस मंदिर में मां के रजस्वला होने का उत्सव मनाया जाता है. नीलांचल पर्वत पर स्थित इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं हैं, बल्कि एक कुंड है जो फूलों से ढंका रहता है. इस विशेष और रहस्यों से भरे मंदिर के बारे में ऐसी रोचक बातें यहां पढ़िए. 

क्या है कामख्या का इतिहास

असम गुवाहाटी (Guwahati) के नीलांचल (Nilanchal) पहाड़ियों में बसे कामख्या शक्ति पीठ मंदिर के उत्पत्ति का इतिहास भी अनोखा है. पुराणों के अनुसार जहां-जहां देवी सती के अंग, वस्त्र और गहने गिरे,उन्हें शक्ति पीठ कहा जाता है. देवी भागवत में 108, देवी गीता में 72 शक्तिपीठ तो देवी पुराण में 51 शक्तिपीठ बताए गए हैं. कामख्या को 108 शक्ति पीठों के अहम 18 महा शक्ति पीठों में से एक माना जाता है. इस मंदिर की उत्पति 8वीं शताब्दी की बताई जाती है. इस मंदिर का कई बार पुनर्निमाण किया गया है. इसे नीलाचल शैली में बनाने का श्रेय मलेच्छ राजवंश (Mlechchha Dynasty) कूच बिहार के राजा नर नारायण  (Nara-Narayana) और अहोम (Ahom Dynasty) राजवंश के शासकों को जाता है. 

क्यों होती है योनि की पूजा

पुराणों के अनुसार सती (Sati) माता के पिता प्रजापति दक्ष ने अपनी पुत्री का विवाह भगवान शिव (Shiv) से अनिच्छा से किया था. प्रजापति दक्ष  शिव जी को अपमानित करने का कोई मौका नहीं चूकते थे. एक बार उन्होंने यज्ञ का आयोजन किया और जानबूझ कर शिव को उसमें आमंत्रित नहीं किया. शिव जी के मना करने पर भी माता सती बगैर निमंत्रण के अपने पिता दक्ष के यज्ञ में चली जाती हैं. वहां अपने पति शिव का अपमान देख वह गुस्से से भर उठती हैं और यज्ञाग्नि में अपनी आहुति दे देती हैं. भगवान शिव इससे आहत होते हैं और अपने गण वीरभद्र को यज्ञ का विध्वंस करने भेजते हैं. दुख से भरे शिव जी माता सती के शव को गोद में लिए तांडव करने लगते हैं. इससे चिंतित सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं. भगवान विष्णु अपने सुदर्शन चक्र से सती माता के शव के टुकड़े कर डालते हैं. जहां-जहां सती माता के शव के अंग, उनके जेवर और कपड़े गिरे, वहीं वर्तमान में शक्तिपीठ है. कामख्या शक्ति पीठ में मां की योनि गिरी थी, इसलिए इसे कामख्या के नाम से जाना जाता है. 

लाल हो जाती है ब्रह्मपुत्र नदी

कामाख्या मंदिर के तीन भाग हैं. पहला भाग सबसे बड़ा है यहां हर कोई नहीं जा सकता. दूसरे भाग में मां के दर्शन होते है. यहां एक कुंड सरीखा पत्थर है, जिससे लगातार पानी बहता है. कामाख्या मंदिर खुद में कई रहस्यों को समेटे हुए है. माना जाता है कि जून (आषाढ़) के महीने में मां के रजस्वला होने से ही यहां बहती ब्रह्मपुत्र नदी लाल हो जाती है. तीन दिन बाद दोबारा मंदिर के कपाट खोले जाने पर अम्बूवाची योग पर्व मनाया जाता है. इसमें विश्व के सभी तांत्रिक,, मांत्रिक एवं सिद्ध-पुरुष उमड़ पड़ते हैं. कहा जाता है कि ये पर्व इनकी साधनाओं के लिए वरदान है. यह एक प्रचलित मान्यता है कि देवी कामाख्या मासिक धर्म तीन दिनों का होता है और इस दौरान कामाख्या मंदिर के कपाट श्रद्धालुओं के लिए बंद कर दिए जाते हैं. यहां भक्तों को प्रसाद के रूप में लाल रंग का गीला कपड़ा अम्बुवाची (Ambubachi) वस्त्र दिया जाता है. कहा जाता है कि जब मां तीन दिन के लिए रजस्वला होने के दौरान सफेद रंग का कपडा अंदर बिछाया जाता है. जब मंदिर के कपाट खोले जाते हैं तो यह कपड़ा लाल और भीगा रहता है. इसे ही अम्बुवाची वस्त्र कहा जाता है. 

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