पश्चिम बंगाल के दार्जिलिंग में रेल हादसा हुआ. त्रिपुरा से अगरतला जा रही कंचनजंगा एक्सप्रेस जिस पटरी पर थी, उसी पर एक मालगाड़ी भी आ गई. मालगाड़ी ने कंचनजंगा को टक्कर मारी, जिसमें 15 लोगों की मौत हो गई. जिसकी जान गई वो तो चली गई, जो घायल हुए वो अस्पताल में मौत से जंग लड़ रहे हैं. विपक्ष रेलमंत्री का इस्तीफा मांग रहा है. सत्ता पक्ष जांच का आदेश दे चुका है. मुआवजे का ऐलान कर चुका है.


हादसे वाली जगह से डैमेज बोगियां हट चुकी हैं. ट्रैफिक भी शुरू हो चुका है, लेकिन एक सवाल अपनी जगह पर कायम है कि हादसा हुआ ही क्यों. और इस क्यों का जो उत्तर है, वो एक लाइन का है कि उस ट्रैक पर कवच नहीं था. तो आखिर ये कवच है क्या, आखिर उस ट्रैक पर कवच क्यों नहीं था और आखिर कब तक इस कवच के बिना ऐसे रेल हादसे होते ही रहेंगे और रेलवे सिर्फ हाथ पर हाथ धरे बैठा रहेगा?

कवच को तकनीकी भाषा में कहते हैं ट्रेन कोलिजन अवॉइडेंस सिस्टम. इसपर 2012 में ही काम शुरू हो गया था. 4 मार्च, 2022 को खुद रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने इसका परीक्षण भी किया था. एक ट्रेन में वो खुद सवार थे. दूसरी ट्रेन में रेलवे बोर्ड के चेयरमैन थे. दो ट्रेनों को एक पटरी पर डाला भी गया, लेकिन टक्कर नहीं हुई. 380 मीटर की दूरी पर दोनों ट्रेनें रुक गईं, क्योंकि कवच ने वक्त रहते ट्रेन की टक्कर रोक दी. और ये रुकी कैसे, जरा इसको भी समझ लीजिए, जिसे तब खुद रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने समझाया था.

इस कवच को लेकर तब बड़े-बड़े दावे भी किए गए थे और सबसे बड़ा दावा था कि हर साल चार से पांच हजार किलोमीटर के रूट पर ये कवच लगा दिया जाएगा. इस दावे के कुछ ही दिनों के बाद बालासोर रेल हादसा हुआ. 2 जून 2023 को हुए इस हादसे में 293 लोगों की मौत हुई और तब पता चला कि एक साल से ज्यादा का वक्त गुजरने के बावजूद 2000 किमी ट्रैक पर भी कवच नहीं लग पाया है. बालासोर रेल हादसे की वजह भी यही थी कि कवच नहीं था और ये तब था जब उस साल के बजट में उस रूट पर कवच लगाने के लिए प्रावधान किया गया था. कवच लगा नहीं और 293 लोग एक झटके में रेल हादसे में मर गए.

अब फिर से 17 जून को रेल हादसा हुआ है. फिर से 15 लोगों की मौत हुई है और फिर से वही कहानी निकलकर सामने आई है कि कवच नहीं था. हालांकि, मई महीने में ही इस रूट पर कवच लगाने की बात शुरू हुई थी. ये भी तय हुआ था कि माल्दा टाउन से लेकर डिब्रूगढ़ तक के 1966 किमी लंबे रूट पर कवच लगेगा. अभी कवच लगता, उससे पहले ही ये हादसा हो गया और 15 लोगों की मौत हो गई. जब हादसा हुआ, तब रेलवे बोर्ड की चेयरपर्सन जया वर्मा सिन्हा ने कहा कि हम इस ट्रैक पर कवच लगाने का काम कर रहे हैं.


ये कब तक लगेगा, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि जब 2022 में इस कवच को रेल मंत्री ने पूरी दुनिया को दिखाया तो कहा कि हर साल चार से पांच हजार किलोमीटर के ट्रैक पर कवच सिस्टम लगेगा. दो साल से ज्यादा का वक्त बीतने के बावजूद महज 1500 किमी के ट्रैक पर ही ये कवच सिस्टम लग पाया है. अब रेलवे बोर्ड की चेयरपर्सन जया वर्मा सिन्हा कह रही हैं कि वह पश्चिम बंगाल के तीन हजार किलोमीटर के ट्रैक पर इस साल के अंत तक कवच लगा देंगी.


अब रेलवे बोर्ड की चेयरमैन के इस दावे पर कितना यकीन किया जाए, इसका अंदाजा तो आसानी से लगाया जा सकता कि वादे के मुताबिक जो कवच 10 हजार किलोमीटर से ज्यादा के ट्रैक पर लग जाना चाहिए था वो महज 1500 किमी के ट्रैक पर ही क्यों लग पाया. आखिर किसकी लापरवाही की वजह से ये काम पूरा नहीं हुआ. यकीन के साथ ये कहा जा सकता है कि रेलमंत्री अश्विनी वैष्णव रेलवे से जुड़े इन सवालों के जवाब नहीं दे पाएंगे. न अब जब ये हादसा हुआ है और न तब जब लोग इस हादसे को भूल जाएंगे. हां अगर आपको नई वंदे भारत के बारे में कुछ जानना हो, बुलेट ट्रेन, रैपिड रेल जैसी एडवांस ट्रेनों के बारे में जानना हो, आधुनिक सुविधाओं से लैस मेट्रो ट्रेन के बारे में जानना हो तो फिर रेल मंत्री क्या, किसी भी केंद्रीय मंत्री से पूछिए, उनके पास जवाब होगा. बाकी दार्जिलिंग में कंचनजंगा एक्सप्रेस का मालगाड़ी से टकराना तो एक हादसा है.


देश में हुए तमाम रेल हादसों में से एक हादसा. जिसकी जांच भी होगी. रिपोर्ट भी आएगी. शायद इस हादसे के गुनहगार बख्शे भी न जाएं, लेकिन कोई इस बात को यकीन से नहीं कह पाएगा कि अब कवच न लगने की वजह से देश में कोई रेल हादसा नहीं होगा.


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