नई दिल्लीः जेएनयू छात्र संघ के पूर्व अध्यक्ष के तौर पर चर्चित सीपीआई नेता कन्हैया कुमार आगामी बिहार विधानसभा चुनाव नहीं लड़ेंगे. एबीपी न्यूज से खास बातचीत में कन्हैया ने यह खुलासा करते हुए कहा कि चुनाव नहीं लड़ूंगा लेकिन पार्टी जो जिम्मेदारी तय करेगी वह जरूर करूंगा. कन्हैया ने यह भी साफ किया कि वामपंथी दलों का आरजेडी और कांग्रेस के साथ गठबंधन में चुनाव लड़ना तय है और सही समय पर सीटों का एलान हो जाएगा.
कन्हैया कुमार के चुनाव नहीं लड़ने की बात हैरान करती है क्योंकि लॉकडाउन के पहले के कुछ महीनों में कन्हैया ने नागरिकता संशोधन कानून और राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर के खिलाफ बिहार भर में कई सभाएं की थी जिसमें खूब भीड़ उमड़ रही थी. हालांकि कोरोना महामारी के फैलने और लॉकडाउन शुरू होने के बाद पिछले काफी समय से कन्हैया की सक्रियता नजर नहीं आ रही थी.
सीएए-एनआरसी के खिलाफ अपनी रैलियों की कामयाबी के बावजूद चुनाव से पीछे हटने के सवाल पर कन्हैया ने कहा कि वह आंदोलन किसी को विधायक, मुख्यमंत्री बनाने के लिए नहीं था. उसकी कामयाबी यह थी कि बिहार विधानसभा में एनआरसी के खिलाफ प्रस्ताव पारित किया गया जबकि बीजेपी वहां सरकार में शामिल है. 'गायब' हो जाने के सवाल पर कन्हैया ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान जरूरतमंदों की मदद में लगे थे. लेकिन इन बातों का सोशल मीडिया पर प्रचार करने से उन्होंने परहेज किया. बेगूसराय से पिछला लोकसभा चुनाव लड़ने वाले कन्हैया ने बताया, "इस बार पार्टी ने तय किया है कि मैं दूसरे लोगों को चुनाव लड़वाऊं".
कन्हैया भले ही पार्टी का हवाला दें लेकिन उनके करीबी सूत्र बताते हैं कि बिहार चुनाव में नीतीश कुमार और बीजेपी के सामने तेजस्वी यादव के नेतृत्व में विपक्ष की हालत जगजाहिर है. सूत्रों की मानें तो वैसे भी तेजस्वी कन्हैया की लोकप्रियता को लेकर असहज रहते हैं. इन्हीं वजहों से कन्हैया बिहार विधानसभा चुनाव में नहीं उतर रहे ताकि परिणाम के बाद हार के बहाने के तौर पर उन्हें ना निशाना बनाया जाए.
हालांकि कन्हैया कहते हैं कि पुरानी बातें भूलनी चाहिए. आरजेडी से संबंधों में कोई खटास नहीं है और परिस्थिति के मुताबिक यह समय चुनाव में एकता दिखाने का है. बीते लोकसभा चुनाव में आरजेडी ने कन्हैया के खिलाफ उम्मीदवार उतार कर उनका खेल खराब कर दिया था. हालांकि कन्हैया दूसरे स्थान पर रहे लेकिन बीजेपी के गिरिराज सिंह को पचास फीसदी से ज्यादा वोट मिले.
तेजस्वी यादव के मुख्यमंत्री उम्मीदवार के सवाल पर कन्हैया ने कहा कि स्वाभाविक है कि जो सबसे बड़ा दल होगा उसी का मुख्यमंत्री बनेगा लेकिन हम साझा न्यूनतम कार्यक्रम पर बात करते हैं किसी चेहरे पर नहीं.
बिहार चुनाव में इस बार के मुद्दों के सवाल पर कन्हैया कहते हैं कि हर कोई परेशान है. मजदूर से लेकर उद्यमी तक परेशान हैं. कृषि बिलों के खिलाफ किसान आंदोलन कर रहा है. हमारी जिम्मेदारी है कि इन मुद्दों को जनता के बीच लेकर जाएं ताकि लोग जाति-धर्म छोड़ कर बिहार के मुद्दों पर वोट करें. हम मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से पूछेंगे कि बिहार को विशेष राज्य का दर्जा क्यों नहीं मिला? प्रधानमंत्री ने जिस पैकेज की बात की थी उसका क्या हुआ!
क्या बिहार में सरकार बदलेगी? इस सवाल पर कन्हैया कहते हैं कि दूर से बैठ कर परिणाम का अंदाजा नहीं लगाया सकता. काफी वक्त से दिल्ली में जमे कन्हैया ने बताया कि जल्द ही वह बिहार लौटेंगे और चुनाव में अपनी भूमिका निभाएंगे.
पिछले बिहार विधानसभा चुनाव में छह वामपंथी दलों ने गठबंधन में चुनाव लड़ा था. सीपीआई और सीपीएम अपना खाता नहीं खोल पाई थी जबकि सीपीआई एम-एल को तीन सीटें मिली थी. सूत्रों के मुताबिक इस बार आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन में वामपंथी दलों को करीब 20 सीटें मिल सकती हैं. गठबंधन में सीटो के एलान में देरी पर कन्हैया ने कहा कि ऐसा हर चुनाव में होता है, समय पर सब कुछ साफ हो जाएगा.
आरजेडी-कांग्रेस गठबंधन में फिलहाल वाम दलों के अलावा आरएलएसपी और वीआईपी जैसी छोटी पार्टियां भी शामिल हैं. गठबंधन में सीटों पर बात अब तक नहीं बन पाई है. बिहार में विधानसभा में कुल 243 सीटें हैं.
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