Udaipur Murder Case: उदयपुर के टेलर कन्हैया लाल साहू (Kanhaiya Lal Sahu) की मर्डर केस की जांच की कमान राष्ट्रीय जांच एजेंसी ( National Investigation Agency- NIA) संभाल रही है. एजेंसी ने दोनों आरोपियों मोहम्मद रियाज (Mohammed Riyaz Attari) और मोहम्मद गौस (Ghaus Muhammad) के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां (UAPA) के तहत केस दर्ज कर लिया है. इस मर्डर की एजेंसी आंतकवादी संगठन के एंगल से भी जांच कर रही है. ऐसे में सवाल उठता है कि यूएपीए के तहत आरोपियों पर क्या-क्या कार्रवाई कर सकती है.
क्या है यूएपीए
केंद्र सरकार ने उदयपुर (Udaipur) में टेलर के मर्डर को एक आतंकवादी कृत्य माना है और इसी के तहत हमंत्रालय के निर्देश पर ही एनआईए ने ये जांच अपने हाथ में ली है. बुधवार 29 जून को ही एनआईए टीम जांच के लिए कन्हैया लाल की दुकान पर पहुंची. टेलर कन्हैया लाल दोनों आरोपियों मोहम्मद रियाज और मोहम्मद गौस के खिलाफ गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (Unlawful Activities Prevention Amendment Act -UAPA) के तहत केस दर्ज किया गया है. इसके तहत केस दर्ज होने पर किसी भी संगठन और अंतरराष्ट्रीय संलिप्तता की गहन जांच हो सकती है.
यूएपीए के अधिनियम के 1967 के संस्करण में भारत की संप्रभुता और अखंडता को क्षीण करने वाली गतिविधियों से निपटने के लिए केंद्र सरकार को कुछ शक्तियां प्रदान की है. साल 2004 के बाद इस अधिनियम में अंतिम संशोधन 2019 में किया गया था. इसके तहत न केवल कुछ समूहों को एक आतंकवादी संगठन के रूप में शामिल करने का फैसला लिया गया था, बल्कि कुछ व्यक्तियों को भी आतंकवादी के रूप में इसमें सम्मिलित करने का फैसला किया गया था. यूएपीए के सेक्शन 2(o) के तहत देश की क्षेत्रीय अखंडता पर सवाल करने को भी गैरकानूनी गतिविधियों में शामिल किया गया है.
कितनी हो सकती है सजा
अगर गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (UAPA) के तहत किसी भी आरोपी पर केस दर्ज किया जाता है तो उसे कम से कम 7 साल की सजा हो सकती है. इसी के साथ इस अधिनयम के तहत एनआईए के पास कार्रवाई करने के असीमित हक हैं. इस कानून के तहत एनआईए आतंकी गतिविधियों में शक के आधार पर लोगों को गिरफ्तार कर सकती है. इस कानून के तहत एनआईए को संगठनों को आंतकी घोषित कर उन पर कार्रवाई का अधिकार भी होता है. इसमें बगैर राज्य पुलिस की परमिशन के भी एनआईए एक्शन ले सकती है. शक मात्र से ही आतंकी घोषित किए जा सकने वाले इस कानून के दायरे में आने पर आतंकवादी का चस्पा हटाने के लिए सरकार की बनाई रिव्यू कमेटी के समक्ष पेश होना होता है. हालांकि इसके बाद अदालत में अपील हो सकती है.
यूएपीए में इन धाराओं के तहत दर्ज होता केस
गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम (यूएपीए) में धारा 18, 19,20, 38 और के तहत केस दर्ज किया जा सकता है. आंतकी संगठन से जुड़े होने पर धारा 38 तो आंतकी संगठन को मदद पहुंचाने पर धारा 39 लगाने का प्रावधान है. इस अधिनियम के सेक्शन 43 D (2) में आरोपी की पुलिस कस्टडी को बढ़ाने का प्रावधान है. इसके तहत पुलिस को 30 दिन की कस्टडी मिल सकती है तो न्यायायिक हिरासत 90 तक ली जा सकती है. गौरतलब है कि अन्य कानूनों में केवल 60 दिन की कस्टडी का ही प्रावधान है. इस अधिनियम की धारा16a के तहत यदि आतंकी गतिविधि के दौरान किसी भी वजह से कोई मौत हो जाए तो उसमें अधिकतम सजा फांसी या आजीवन कारावास होगी. इसमें जुर्माना लगाने का भी प्रावधान किया है.
जमानत मिलनी भी होती है मुश्किल
UAPA के तहत केस दर्ज होने पर आरोपी को अग्रिम जमानत भी नहीं मिलती. पुलिस के छोड़ देने पर भी यूएपीए के आरोपी को अग्रिम जमानत नसीब नहीं होती. इस कानून के सेक्शन 43D (5) के तहत प्रथम दृष्टि में आरोपी व्यक्ति पर केस बनने की सूरत में अदालत भी इस कानून के दायरे में आए व्यक्ति को जमानत नहीं दे सकता है.
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