Nameplate Controversy In UP: कावड़ यात्रा नेम प्लेट विवाद में सुप्रीम कोर्ट का अंतरिम आदेश फिलहाल जारी रहेगा. खाने-पीने की दुकानों के सामने दुकानदारों का नाम लिखने की कोई अनिवार्यता नहीं होगी. हालांकि, कोर्ट ने साफ किया है कि जो दुकानदार अपना नाम लिखना चाहते हैं, वह लिख सकते हैं. कोर्ट ने सभी पक्षों यानी राज्यों और याचिकाकर्ताओं को जवाब देने के लिए 1 सप्ताह का समय दिया है. इस मामले में अगली सुनवाई 5 अगस्त को होगी.


क्या है मामला?


कांवड़ यात्रा मार्ग में खाने-पीने का सामान बेचने वाले दुकानदारों का नाम दुकान के बाहर लिखने का आदेश उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड के कई जिलों के प्रशासन ने जारी किया था. उनका कहना था शुद्ध और सात्विक आहार खाने वाले कांवड़ यात्रियों को भ्रम से बचाने के लिए यह आदेश जारी किया गया है, ताकि वह गलती से भी गलत भोजन न खा लें.


3 याचिकाकर्ता पहुंचे सुप्रीम कोर्ट


प्रशासन के आदेश खिलाफ NGO एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा और दिल्ली यूनिर्सिटी के प्रोफेसर अपूर्वानंद सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे. उनकी दलील थी कि इस तरह के आदेश जारी कर मुसलमानों का आर्थिक बहिष्कार करने की कोशिश की जा रही है. छुआछूत को भी बढ़ावा दिया जा रहा है.


कोर्ट ने लगाई अंतरिम रोक


सुप्रीम कोर्ट ने 22 जुलाई को हुई पिछली सुनवाई में प्रशासन की तरफ से जारी निर्देश के अमल पर अंतरिम रोक लगा दी थी. कोर्ट ने कहा था कि दुकानदार सिर्फ यह लिखें कि वह किस तरह का खाना बेचते हैं. उन्हें अपना नाम लिखने की ज़रूरत नहीं है. कोर्ट ने इस मामले में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया था. हालांकि, सुनवाई से पहले सिर्फ यूपी सरकार ने जवाब दाखिल किया. ऐसे में कोर्ट ने सभी पक्षों को जवाब का समय देते हुए सुनवाई टाल दी.


सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के दौरान आज क्या हुआ?


सुनवाई के दौरान कोर्ट में उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार के वकीलों ने कहा कि वह लिखित जवाब दाखिल करना चाहते हैं. यूपी सरकार के लिए पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि 2006 से केंद्र सरकार का कानून है कि दुकानदार को अपने नाम और लाइसेंस नंबर की जानकारी प्रदर्शित करनी चाहिए. कोर्ट ने बिना इस पर ध्यान दिए एकतरफा रोक लगा दी. अगर जल्द यह रोक नहीं हटी, तो इस साल की कांवड़ यात्रा खत्म हो जाएगी. प्रशासन ने किसी के व्यापार करने पर रोक नहीं लगाई, सिर्फ नाम लिखने को कहा है.


इस पर याचिकाकर्ता पक्ष के वकील अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा, "60 साल से यह आदेश नहीं आया था, इस साल लागू नहीं हो पाया तो कुछ नहीं बिगड़ जाएगा. कोर्ट विस्तार से सुन कर तय करे." कोर्ट में आज कुछ कांवड़ियों के भी वकील पेश हुए थे. उन्होंने कहा, "हमें सात्विक खाना चाहिए, जो बिना प्याज-लहसुन के हो. मान लीजिए कि हम माता दुर्गा ढाबा नाम पढ़ कर घुस जाते हैं और पता चलता है कि वहां मालिक और स्टाफ अलग लोग हैं, तो समस्या होती है. अगर उन दुकानदारों के अधिकार हैं तो हमारे भी धार्मिक अधिकार हैं."


जज की टिप्पणी


इस पर जस्टिस ऋषिकेश रॉय और एस वी एन भट्टी की बेंच ने कहा, "हमने सिर्फ कहा था कि दुकानदार को नाम लिखने के लिए बाध्य न किया जाए. अगर कोई दुकानदार अपना नाम लिखना चाहता है, तो उस पर कोई रोक नहीं है, जो कांवड़ यात्री नाम पढ़ कर दुकान में जाना चाहता है, वह उसे पढ़ कर जाए." कोर्ट ने यह भी कहा कि यूपी और उत्तराखंड के वकील जिन कानूनों का हवाला देकर अपने आदेश को सही ठहरा रहे हैं, उन पर सुनवाई की जरूरत है.


यूपी सरकार का जवाब


यूपी सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल जवाब में कहा है कि उसने अधिक पारदर्शिता के लिए निर्देश जारी किया, ताकि कांवड़ यात्री गलती से भी कुछ ऐसा न खा लें जो वह नहीं खाना चाहते. अतीत में गलत खाने से विवाद की घटनाएं हो चुकी हैं. सरकार का आदेश किसी विशेष धर्म के लोगों से भेदभाव नहीं करता निर्देश. यह सब पर लागू था


यूपी सरकार ने तस्वीरों के साथ मुजफ्फरनगर के कुछ ढाबों के उदाहरण भी दिए. जैसे-



  • 'राजा राम भोज फैमिली टूरिस्ट ढाबा' चलाने वाले दुकानदार का नाम वसीम है

  • 'राजस्थानी खालसा ढाबा' का मालिक फुरकान है

  • 'पंडित जी वैष्णो ढाबा' का मालिक सनव्वर है


सरकार ने कहा कि वह चाहती है कि नंगे पैर पवित्र जल ले जा रहे कांवड़ियों की धार्मिक भावना गलती से भी आहत न हो, इसलिए दुकान के बाहर नाम लिखने का निर्देश दिया गया था. कावंड़ मार्ग पर खाने-पीने को लेकर गलतफहमी पहले भी झगड़े और तनाव की वजह बनती रही है.


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