कांवड यात्रा के रूट पर पड़ने वाली दुकानों पर नेमप्लेट लगाने के फैसले पर सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार (22 जुलाई, 2024) को अंतरिम रोक लगा दी. जस्टिस एसवीएन भट्टी और जस्टिस ऋषिकेश रॉय की बेंच ने फैसला सुनाते हुए उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और मध्य प्रदेश सरकार को नोटिस भी जारी कर दिया है. सुनवाई के दौरान जस्टिस रॉय और जस्टिस भट्टी ने अहम टिप्पणी में कहा कि किसी को खाने के लिए मांसाहारी या शाकाहारी बताए जाने को कहा जा सकता है, लेकिन नेमप्लेट लगाने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है.


जस्टिस ऋषिकेश रॉय मुख्य न्यायाधीश डी. वाई. चंद्रचूड़ के दोस्त हैं. दोनों ने कानून की पढ़ाई साथ की है. दोनों एलएलबी में साल 1982 बेच के स्टूडेंट रहे हैं. जस्टिस ऋषिकेश रॉय का जन्म 1 फरवरी, 1960 को हुआ था और फिर दिल्ली यूनिवर्सिटीके कैंपस में उन्होंने लॉ की पढ़ाई की. इसके बाद साल 1982 में एलएलबी की पढ़ाई की.


जस्टिस रॉय केरल हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रह चुके हैं. उन्होंने लॉ की पढ़ाई खत्म करने के बाद लीगल प्रैक्टिस शुरू की और वह गुवाहाटी और दिल्ली हाईकोर्ट में काफी समय तक वकालत की प्रैक्टिस करते रहे. साल 2006 में उन्हें गुवाहाटी हाईकोर्ट का एडशिनल जज बनाया गया और फिर यहीं परमानेंट जज के तौर पर नियुक्त हो गए. यहां से उनका तबादला केरल हाईकोर्ट में हुआ. यहां पहले उन्हें एक्टिंग चीफ जस्टिस के तौर पर नियुक्ति मिली और यहीं पर वह 35वें चीफ जस्टिस बने. साल 2019 से वह सुप्रीम कोर्ट के जज हैं.


कौन हैं जस्टिस एसवीएन भट्टी?
बेंच के दूसरे जज जस्टिस एसवीएन भट्टी आंध्र प्रदेश के चित्तूर से हैं. वह भी केरल हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस रह चुके हैं. पिछले साल उनका तबादला हुआ और वह सुप्रीम कोर्ट के जज बन गए. जस्टिस भट्टी का जन्म  6 मई, 1962 को हुआ था और फिर उन्होंने बेंगलुरु के जगतगुरु रणेुकाचार्य कॉलेज से लॉ की डिग्री ली. इसके बाद साल 1987 में वह बार काउंसिल ऑफ आंध्र प्रदेश में शामिल हो गए और वकालत की प्रैक्टिस शुरू कर दी. साल 2000 से 2003 के बीच सरकार की तरफ से स्पेशल लीडर रहे और साल 2013 में उन्हें आंध्र प्रदेश हाईकोर्ट में एडिशनल जज के तौर पर नियुक्त किया. इसके बाद उन्हें केरल हाईकोर्ट शिफ्ट किया गया और 24 फरवरी 2023 को वह हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस बनाए गए. इसके चार महीने बाद ही जस्टिस भट्टी तबादला सुप्रीम कोर्ट हो गया.


कांवड़ यात्रा में नेमप्लेट विवाद पर कोर्ट ने क्या कहा?
सोमवार को बेंच ने राज्य सरकारों को नोटिस जारी करने के साथ ही कहा कि भोजनालयों के लिए यह प्रदर्शित करना आवश्यक किया जा सकता है कि वे किस प्रकार का भोजन परोस रहे हैं, जैसे कि वे शाकाहारी हैं या मांसाहारी. पीठ ने कहा, 'हम राज्य सरकारों के निर्देशों को लागू करने पर रोक लगाने के लिए अंतरिम आदेश पारित करना उचित समझते हैं. दूसरे शब्दों में, खाद्य विक्रेताओं को यह प्रदर्शित करने के लिए कहा जा सकता है कि उसके पास कौन से खाद्य पदार्थ हैं लेकिन उन्हें मालिकों, स्टाफ कर्मचारियों के नाम प्रदर्शित करने के लिए मजबूर नहीं किया जाना चाहिए.'


शुरू हो गई कांवड़ यात्रा
सोमवार से सावन की शुरुआत हो गई है और  कांवड़ यात्रा भी शुरू हो गई है. इस दौरान कांवडिए विभिन्न राज्यों से हरिद्वार जाते हैं और गंगा का पवित्र जल अपने घरों को ले जाते हैं. रास्ते में शिव मंदिरों में भक्त यह जल चढ़ाते हैं. कई लोग सावन में मांस का सेवन नहीं करते हैं. कांवड़ यात्रा को लेकर यूपी, एमपी और उत्तराखंड़ सरकार ने दुकानदारों को नेमप्लेट लगाने का निर्देश दिया था, जिसके खिलाफ एसोसिएशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ सिविल राइट्स नाम के एनजीओ और टीएमसी की सांसद महुआ मोइत्रा ने याचिका दाखिल की थी, इन याचिकाओं पर ही सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी.


यह भी पढ़ें:-
नीट के पेपर में एक सवाल के दो सही उत्तर, सुप्रीम कोर्ट ने अब किससे मांगी राय, जानें क्या है पूरा मामला