कांग्रेस के बड़े नेताओं में से एक कपिल सिब्बल ने 16 मई को पार्टी को अलविदा कर दिया. उन्होंने समाजवादी पार्टी के समर्थन से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर राज्यसभा के लिए नामांकन दाखिल किया है. उन्होंने कहा कि मैंने बतौर निर्दलीय कैंडिडेट सपा की मदद से नॉमिनेशन फाइल किया है.
सिब्बल ने इंडिया टुडे चैनल से बात करते हुए यह बताया कि उन्होंने अखिलेश यादव से कहा था कि वे राज्यसभा जाना चाहते हैं और बतौर निर्दलीय उम्मीदवार उन्होंने सपा प्रमुख से मदद भी मांगी थी. उन्होंने आगे कहा था कि करीब 30 साल के बाद यह समय पार्टी छोड़ने का है और निर्दलीय काम करने की जरूरत है.
इसके साथ ही, उन्होंने कहा था कि वे कभी भी कांग्रेस के खिलाफ नहीं बोलेंगे. सिब्बल ने कहा कि मेरे कई विपक्षी नेताओं के साथ अच्छे संबंध हैं. मेरी पत्नी कहती है कि उत्तर प्रदेश के साथ हमारा अच्छा संबंध रहा है.
विरासत में मिली वकालत
कपिल सिब्बल पंजाब के जालंधर में एक हिन्दू परिवार में 8 अगस्त 1948 को पैदा हुए थे. उनके पिता का नाम हीरा लाल सिब्बल और माता का नाम रानी सिब्बल है. उन्हें वकालत अपने पिता से विरासत में मिली है.
कपिल सिब्बल के पिता जाने-माने वकील थे और भारत सरकार की तरफ से साल 2006 में उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था. कपिल सिब्बल के पिता हीरालाल सिब्बल आजादी से पहले लाहौर हाईकोर्ट में प्रैक्टिस किया करते थे.
लेकिन, बाद में वह भारत आ गए. एक वरिष्ठ वकील के अलावा हीरालाल सिब्बल को लॉ के क्षेत्र में लिविंग लिजेंड का ख़िताब हासिल है. वे एक जमाने में मशहूर और विवादित लेखक सआदत हसन मंटो और इस्मत चुगताई के खिलाफ मुक़दमे की पैरवी की थी.
उनके इस योगदान की वजह से नेशनल काउंसिल फॉर प्रमोशन ऑफ उर्दू लैंग्वेज और उर्दू आलमी ट्रस्ट ने उन्हें सम्मानित भी किया था. 98 साल की आयु में साल 2012 के दिसंबर में हीरालाल सिब्बल ने चंडीगढ़ में इस दुनिया को अलविदा कर दिया.
आईएएस की नौकरी को ठुकराया
कपिल सिब्बल स्कूली पढ़ाई के बाद दिल्ली यूनिवर्सिटी के सेंट स्टीफेंस कॉलेज से एलएलबी में स्नातक की डिग्री ली. उन्होंने 70 के दशक में लॉ की डिग्री हासिल करने के बाद वकालत शुरू की. सिब्बल ने साल 1973 में यूपीएससी का एग्जाम पास किया, लेकिन आईएएस की नौकरी को ठुकराते हुए वकालत जारी रखने का फैसला किया. इसके बाद वे एलएलएम की पढ़ाई करने के लिए हॉवर्ड चले गए और 1977 में वहां से वापस अपने मुल्क लौटे.
ऐसे मिली देश में पहचान
कपिल सिब्बल तीन बार 1995-96, 1997-98 और 20021-02 में सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन का अध्यक्ष रह चुके हैं. उन्हें 1989-90 के बीच भारत के एडिशन सॉलिसिटर जनरल पद पर रहते हुए उस वक्त सही मायने में पहचान मिली जब सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश वी. रामास्वामी के ऊपर महाभियोग का मामला पार्लियामेंट में चल रहा था. उस वक्त सिब्बल उनका बचान करने के लिए खुद कोर्ट में पहुंच गए थे. इस मामले में जिस तरीके से सिब्बल ने उनका बचाव किया, उसकी वजह से पूरे देश में उनको एक अलग पहचान मिली थी.
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