'क्या हमें कानून के शासन का जश्न मनाना चाहिए या...', नरोदा गाम मामले के फैसले पर बोले कपिल सिब्बल
Naroda Gam Case: 28 फरवरी 2002 को अहमदाबाद के नरोदा गाम इलाके में हिंसा हुई थी. इस सांप्रदायिक हिंसा में 11 लोग मारे गए थे. मामले में 86 आरोपियों के खिलाफ केस दर्ज किया गया था.
Kapil Sibal Criticism On Court: राज्यसभा सांसद और सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल ने नरोदा गाम दंगा मामले में सभी 67 आरोपियों को बरी करने के गुजरात की अदालत के फैसले की आलोचना की है. सिब्बल ने सवाल उठाया कि क्या हमें कानून के शासन का स्वागत करना चाहिए या इसके खत्म होने पर निराश होना चाहिए.
गुजरात की एक विशेष अदालत ने गुरुवार को 2002 नरोदा गाम दंगे मामले में फैसला सुनाया. इस फैसले में गुजरात की पूर्व मंत्री माया कोडनानी और बजरंग दल के पूर्व नेता बाबू बजरंगी सहित सभी 67 आरोपियों को बरी कर दिया था. गोधरा मामले के बाद भड़के दंगों में भारी संख्या में लोग मारे गए थे. इसी दौरान अहमदाबाद के नरोदा गाम में मुस्लिम समुदाय के 11 सदस्यों के मारे दिया गया था. इस घटना के दो दशक बाद इस घटना का फैसला हाल ही में आया है.
कोर्ट के फैसले पर क्या बोले सिब्बल
कपिल सिब्बल ने कहा, नरोदा गाम में 12 साल की बच्ची सहित हमारे 11 नागरिक मारे गए थे. 21 साल बाद 67 आरोपियों को बरी कर दिया गया. क्या हमें कानून के शासन का स्वागत करना चाहिए या इसके खत्म होने पर निराश होना चाहिए. यह पता लगाना जांच एजेंसी का काम है कि यह (हत्याएं) किसने की. जांच एजेंसियों ने पता लगाया. क्या यह जांच एजेंसियों की विफलता नहीं है कि वे उन्हें न्याय के दायरे में नहीं ला पाईं.
उन्होंने कहा, मुझे यकीन है कि जांच एजेंसी अपील दायर नहीं करेगी. मुझे आश्चर्य है कि क्या अदालतें सुनवाई के दौरान सामने आ रही अन्याय की कहानियों को लेकर मूक दर्शक बनी रहेंगी.
अहमदाबाद स्थित विशेष जांच दल (एसआईटी) मामलों के विशेष न्यायाधीश एस. के. बक्शी की अदालत ने नरोदा गाम दंगों से जुड़े 67 आरोपियों को बरी कर दिया है.
घटना क्या थी?
गोधरा में 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस की बोगी में आग लगाए जाने के बाद राज्यभर में दंगे भड़क गए थे. इस मामले की जांच उच्चतम न्यायालय द्वारा नियुक्त विशेष जांच दल ने की थी जिसके बाद नरोदा गाम में दंगे हुए थे. इस मामले में कुल 86 आरोपी थे जिनमें से 18 की सुनवाई के दौरान मौत हो गई थी. जबकि एक को अदालत ने दंड प्रक्रिया संहिता (सीआरपीसी) की धारा 169 के तहत साक्ष्य के आभाव में पहले ही आरोपमुक्त कर दिया था.