Kargil Vijay Divas: शहीद सैनिकों को दी गई श्रद्धांजलि, 1971 युद्ध की स्वर्णिम विजय मशाल द्रास वॉर मेमोरियल पहुंची
खराब मौसम के कारण राष्ट्रपति कोविंद का हेलीकॉप्टर श्रीनगर से द्रास के लिए उड़ान नहीं भर सका. इसलिए सशस्त्र सेनाओं के सुप्रीम कमांडर ने कश्मीर के बारामूला में वॉर मेमोरियल पर श्रद्धांजलि अर्पित की.
नई दिल्ली: देश ने सोमवार को 22वां करगिल विजय दिवस बेहद धूमधाम से मनाया. इस मौके पर द्रास स्थित करगिल युद्ध स्मारक और राजधानी दिल्ली स्थित नेशनल वॉर मेमोरियल में वीरगति को प्राप्त सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई. राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद खराब मौसम के चलते द्रास नहीं पहुंच सके. उन्होनें बारामूला में देश के शूरवीरों को नमन किया.
राष्ट्रपति की गैर-मौजूदगी में लद्दाख के उप-राज्यपाल आरके माथुर ने द्रास स्थित करगिल वॉर मेमोरियल पर वीरगति को प्राप्त सैनिकों को श्रद्धा-सुमन अर्पित की. इस दौरान चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, जनरल बिपिन रावत, सेना की उत्तरी कमान के कमांडर, लेफ्टिनेंट जनरल वाई के जोशी और लेह स्थित 14वीं कोर के कमांडर, लेफ्टिनेंट जनरल पीजीके मेनन भी मौजूद रहे.
विजय मशाल द्रास वॉर मेमोरियल पहुंची
करगिल वॉर मेमोरियल पर वीरगति को प्राप्त हुए सैनिकों के परिवार सहित युद्ध में दुश्मन के छक्के छुड़ाने वाले परमवीर चक्र विजेता, नेतागढ़ योगेंद्र यादव और संजय कुमार भी उपस्थित थे. कार्यक्रम के दौरान 1971 युद्ध की स्वर्णिम विजय मशाल भी द्रास वॉर मेमोरियल पहुंची. इसकी आगवानी खुद वहां मौजूद सीडीस और अन्य सैन्य कमांडर्स ने की.
खराब मौसम के कारण राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद का हेलीकॉप्टर श्रीनगर से द्रास के लिए उड़ान नहीं भर सका. इसलिए सशस्त्र सेनाओं के सुप्रीम कमांडर ने उत्तरी कश्मीर के बारामूला में वॉर मेमोरियल पर श्रद्धांजलि अर्पित की. राजधानी दिल्ली में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह, रक्षा राज्य मंत्री अजय भट्ट और तीनों सेनाओं (थलसेना, वायुसेना और नौसेना) के प्रमुखों ने श्रद्धा-सुमन अर्पित कर वीर सैनिकों के बलिदान को याद किया.
आपको बता दें कि 1999 में करगिल की ऊंची चोटियों पर भारत और पाकिस्तान के बीच जंग हुई थी, जिसमें भारत की विजय हुई थी. उस युद्ध की विजय के उपलक्ष्य में हर साल करगिल के द्रास स्थित वॉर मेमोरियल पर करगिल विजय दिवस मनाया जाता है. 1999 में पाकिस्तानी सेना ने भारत की इन चोटियों पर कब्जा कर लिया था. 14 से 18 हजार फीट की उंचाई पर स्थित इन चोटियों से भारतीय सेना ने बेहद ही बहादुरी के साथ पाकिस्तानी घुसपैठियों को मार भगाया था. इस युद्ध में भारत के 500 से ज्यादा सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए थे. ये युद्ध मिलिट्री-हिस्ट्री में एक बेहद ही मुश्किल और जोखिम-भरे युद्ध के तौर पर जाना जाता है.
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