विजय दिवसः पाकिस्तान की तरह LAC पर धोखाधड़ी की कोशिश कर रहा चीन, लेकिन दोनों दुश्मनों से भिड़ने को तैयार सेना
हर साल करगिल दिवस के एक हफ्ते पहले से ही द्रास, करगिल और बटालिक सेक्टर में स्थानीय लोगों की मदद से कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता था, लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ.
नई दिल्लीः देश को सुरक्षित रखने का कार्य अगर सीमा पर हमारे सैनिक कर रहे हैं, तो इसकी एकता, अखंडता और भाईचारे को बरकरार रखना हर देशवासी की जिम्मेदारी है. ये कहना है देश के रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह का जिन्होंने करगिल विजय दिवस की 21वीं वर्षगांठ पर देश के नाम संदेश जारी किया. करगिल युद्ध में विजय के 21 साल पूरे होने पर आज रक्षा मंत्री ने राजधानी दिल्ली स्थित नेशनल वॉर मेमोरियल (राष्ट्रीय समर स्मारक) पर देश के लिए शहादत देने वाले वीरे सैनिकों को श्रद्धांजलि अर्पित की.
उनके साथ रक्षा राज्यमंत्री श्रीपद नाइक, चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस), जनरल बिपिन रावत सहित तीनों सेना प्रमुख मौजूद थे. वहीं लद्दाख में द्रास स्थित करगिल वॉर मेमोरियल पर 14वीं कोर के कमांडर, लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह ने शहीदों को फूल माला अर्पित की. हालांकि इस बार LAC पर चीन के दुस्साहस की वजह से विजय दिवस की चमक फीकी रही.
दुर्गम पहाड़ियों पर हासिल की शानदार जीत
1999 में लद्दाख के द्रास, करगिल, बटालिक और तुरतुक सेक्टर में पाकिस्तानी सेना की घुसपैठ को भारतीय सेना ने नाकाम कर दिया था और अपने साहस, बहादुरी और सर्वोच्च बलिदान से अपनी एक एक इंच जमीन वापस ली थी. ये लड़ाई 12 हजार फीट से ज्यादा ऊंचाई पर लड़ी गई थी और कुछ पहाड़ तो 16 हजार फीट पर थे जिन्हें भारतीय सैनिकों ने लड़कर हासिल किया था.
सैन्य इतिहास में करगिल युद्ध को एक बेहद जोखिम भरे मिशन के तौर पर जाना जाता है, क्योंकि दुश्मन ना केवल ऊंचाई पर जमा हुआ था, जहां से एक पत्थर नीचे फेंकने भर से ही सैनिक हताहत हो सकते थे बल्कि उन्हें वहां से खदेड़कर वापस अपनी पोस्ट, बंकर और चौकियों पर फिर से अधिकार जमाना था.
करीब 70 दिन चले इस युद्ध (संघर्ष) में भारत के 527 सैनिक वीरगति को प्राप्त हुए थे. इस युद्ध में भारतीय सेना ने पाकिस्तान को करगिल से खदेड़ने के लिए बोफोर्स तोप का इस्तेमाल किया था.
पाकिस्तानी सेना को भी बड़ा नुकसान उठाना पड़ा था, लेकिन पाकिस्तान ने कभी भी ना तो अपने नुकसान और ना ही कभी सैनिकों की मौत का आंकड़ा जारी किया. यहां तक की पाकिस्तान ने अपने मरे हुए सैनिकों के शव तक लेने से मना कर दिया था. बाद में भारतीय सेना ने ही पाकिस्तान के सैनिकों का अंतिम संस्कार किया था.
करगिल युद्ध में वायुसेना की भी अहम भूमिका थी. इस युद्ध में वायुसेना करीब सात हफ्तों तक मैदान (आसमान) में रही. वायुसेना के लड़ाकू विमानों ने 1700 मिशन/उड़ान भरी थी, जबकि हेलीकॉप्टर्स ने 2200 उड़ान भरी थीं और ऊंची पहाड़ियों पर पाकिस्तान के बंकर और चौकियों को आसमान से गोलाबारी कर तबाह कर दिया था. वायुसेना ने इस ऑपरेशन को ‘ऑपरेशन सफेद सागर’ नाम दिया गया था.
चीनी हरकत के कारण फीकी रही विजय दिवस की धूम
हालांकि, इस बार करगिल विजय दिवस की धूमधाम थोड़ी फीकी रही. इसका कारण है पूर्वी लद्दाख में लाइन ऑफ एक्चुयल कंट्रोल यानि एलएसी पर चीनी सेना से चल रही तनातनी और टकराव. पिछले ढाई महीने से एलएसी पर भारत और चीन की सेनाएं आमने-सामने हैं. ऐसे में लेह स्थित पूरी 14वीं कोर एलएसी और एलओसी पर तैनात है (एलओसी इसलिए क्योंकि ऐसी खबरें आ रही हैं कि चीन की मदद के लिए पाकिस्तान भी भारत के खिलाफ मार्चो खोल सकता है).
हर साल करगिल दिवस के एक हफ्ते पहले से ही द्रास, करगिल और बटालिक सेक्टर में स्थानीय लोगों की मदद से कई कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता था. लेकिन इस बार ऐसा कुछ नहीं हुआ.
पूर्वी लद्दाख में पाकिस्तान जैसी हरकत करने की फिराक में था चीन
सामरिक जानकार मानते हैं कि मौजूदा चीन विवाद और करगिल युद्ध में कई समानताएं है. पहला है विश्वासघात- जिस तरह पाकिस्तान ने करगिल, द्रास की ऊंची पहाड़ियों पर सर्दी के मौसम में भारतीय चौकियों पर कब्जा कर लिया था, ठीक वैसा ही अभी चीन ने करने की कोशिश की.
दरअसल, करगिल-द्रास दुनिया के सबसे ठंडे इलाकों में से एक हैं जहां सर्दियों में जबरदस्त बर्फ पड़ती है और तापमान माइनस (-)55 डिग्री तक गिर जाता है. ऐसे में भारत और पाकिस्तान दोनों के ही सैनिक ही यहां की चौकियों को खाली कर नीचे आ जाते थे. लेकिन 1999 की सर्दियां खत्म होने से पहले पाकिस्तानी सेना ने भारत की चौकियों पर कब्जा कर लिया था. पाकिस्तानी सेना को इन चौकियों से खदेड़ने के लिए ही करगिल युद्ध लड़ा गया था.
हाल ही में चीन ने भी पूर्वी लद्दाख में ऐसा ही किया. जब पूरी दुनिया कोरोना महामारी से जूझ रही थी और पैट्रोलिंग भी लगभग बंद थी, तब चीनी सेना ने एलएसी के विवादित इलाकों में कब्जा कर एलएसी को भारत की तरफ धकेलने की कोशिश की. इसको लेकर दोनों देशों की सेनाओं में टकराव हुआ और गलवान घाटी में हिंसक संघर्ष हुआ. इसके बाद से दोनों देशों के बीच डिसइंगेजमेंट को लेकर बातचीत चल रही है, लेकिन चीन अभी भी अपने अड़ियल रवैए पर कायम है.
दो मोर्चों पर भिड़ने के लिए तैयार भारतीय सेना
जिस तरह 1999 में करगिल युद्ध के दौरान चीनी सेना ने पैंगोंग-त्सो लेक से सटे फिंगर एरिया में (5-8 के बीच) गुपचुप तरीके से सड़क बनाकर इलाके पर गैरकानूनी कब्जा कर लिया था, ठीक वैसे ही पाकिस्तान अब गिलगित-बालटिस्तान में अपनी सैन्य तैयारियां करने में जुट गया है. शनिवार को पाकिस्तानी वायुसेना प्रमुख ने स्कर्दू एयरबेस का दौरा किया था.
हालांकि, 1999 में और अब में सिर्फ इतना फर्क है कि उस वक्त भारत सिर्फ पाकिस्तान से लड़ने में सक्षम था और दूसरा फ्रंट (मोर्चा) यानी चीन से फिंगर-एरिया को लेकर नहीं उलझना चाहता था लेकिन अब भारतीय सेना चीन और पाकिस्तान दोनों से यानी टू-फ्रंट वॉर के लिए पूरी तरह तैयार है और अपनी एक इंच जमीन पर भी दुश्मन को कब्जा नहीं करने देगी.
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