Kargil Victory Day: द्रास सेक्टर में कारगिल विजय दिवस का जश्न शुरू, 22वें साल भारी संख्या में श्रद्धांजलि देने पहुंचे लोग
Kargil Victory Day: आम लोग और जवान आज भी वही जज्बा लिए ना सिर्फ जंग के लिए तैयार है बल्कि मौका मिलने पर पाकिस्तानी सेना को धूल चटाने के लिए भी तैयार हैं.
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Victory Day of Kargil: कारगिल जंग (Kargil War) के 22 साल पूरे होने जा रहे है. कारगिल (Kargil) और द्रास सेक्टर (Drass Sector) में जहां यह जंग लड़ी गयी थी एक बार फिर देशभक्त्ति (Patriotism) और वीरता की गाथाओं से गूंज रहा है. विजय दिवस समारोह (Victory Day Celebration) 24-26 जुलाई को मनाया जा रहा है लेकिन अभी से यहां पर जवानों और आम नागरिकों का आना शुरू हो चुका है, जो देश के लिए शहीद होने वाले जवानों को श्रद्धांजलि दे रहे है. श्रीनगर से 126KM दूर बर्फीले रेगिस्तान लद्दाख का द्रास जहां पर बने वीर स्मारक में एक बार फिर शहीदों का मेला लगा है.
कारगिल युद्ध को 22 साल पूरे होने वाले हैं. आपको बता दें कि कारगिल की जंग ही वो जंग है जिसमें देश के 700 से भी ज्यादा जवानों ने अपने प्राणों की आहुति दी थी. इस युद्ध में पाकिस्तानी घुसपैठियों और सैनियों को भारतीय जवानों ने अपनी बहादुरी और युद्ध कौशल के दम पर बाहर खदेड़ दिया था. आज एक बार फिर इस जंग में शामिल हुए जवान और अफसर यहां पर पहुंच कर अपने शहीद साथियों की कुर्बानी को याद कर उनको श्रद्धांजलि अर्पित करेंगे.
समारोह शुरू होने से पहले भारी संख्या में पर्यटक पहुंचे
ऑर्मी के अफसर आने वाले दिनों में होने वाले बड़े समारोह की तयारी में हैं. आम लोग और जवान आज भी वही जज्बा लिए ना सिर्फ जंग के लिए तैयार है बल्कि मौका मिलने पर पाकिस्तानी सेना को धूल चटाने के लिए भी तैयार हैं. वहीं समारोह शुरू होने से पहले ही बड़ी संख्या में आम नागरिक यहां पहुंच कर वीरों को श्रदांजलि दे रहे हैं. वहीं दूर दक्षिण से आये टूरिस्ट पूरे देश के लिए संदेश दे रहे हैं.
सेना के वरिष्ठ अधिकारी रहेंगे मौजूद
सेना के वरिष्ठ अधिकारी (Senior Officers of Army) भी कारगिल (Kargil) और द्रास (Drass) में मौजूद रहेंगे और इस बार कारगिल जंग (Kargil War) के 22 साल पूरा होने और देश की आजादी की स्वर्णिम जयंती (Goldent Jublie of Independence) के उपलक्ष्य में होने वाले समारोह की तैयारियों की खुद देख रेख कर रहे हैं. कारगिल जंग को भले ही दो दशक से ज्यादा समय हो गया हो लेकिन आज भी देश उस जंग को नहीं भूल सका है. इस जंग के समारोह के तौर पर मनाने के पीछे भी यही धारणा है कि न तो देश उस जंग को ही भूला है और न ही दोबारा ऐसा कोई मौका दुश्मन को देने के लिए तयार है.
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