(Source: ECI/ABP News/ABP Majha)
20 Years of Kargil WAR: केवल युद्ध नहीं भारतीय सेना के शौर्य, बलिदान और समर्पण की कहानी है 'ऑपरेशन विजय'
कारगिल युद्ध को बीते 20 साल हो गए. फिर भी युद्ध के दौरान भारतीय सेना द्वारा प्रदर्शित किए गए शौर्य और पराक्रम की गाथाएं आज भी हर भारतीय के दिलों में जिंदा है. यह युद्ध हिंदुस्तानी फौज की शौर्य, बलिदान और समर्पण की कहानी है.
26 जुलाई 1999 के दिन भारतीय सेना ने कारगिल युद्ध के दौरान चलाए गए ‘ऑपरेशन विजय’ को सफलतापूर्वक अंजाम देकर भारत भूमि को घुसपैठियों के चंगुल से मुक्त कराया था. इसी की याद में ‘26 जुलाई’ अब हर वर्ष कारगिल दिवस के रूप में मनाया जाता है.
कारगिल युद्ध की शौर्य गाथा
शौर्य की कहानी साल 1999 की है. उसवक्त कारगिल के बटालिक सेक्टर के पास गारकॉन गांव में रहने वाले ताशि नामग्याल अपने घर से थोड़ी दूर गुम हो गई याक को ढूंढने निकले थे तभी उन्हें छह बंदूकधारी दिखे. सभी ने काले रंग के कपड़े पहने हुए थे. वह सभी वहां रहने की जगह बना रहे थे. ताशि नामग्याल तुरंत स्थानीय पुलिस के पास गए और उनको खबर दी. पुलिस ने एक दल को जांच के लिए भेजा और इस तरह करगिल में घुसपैठ का पता चला.
जो भारतीय सीमा में घुसपैठ कर रहे थे वह महज चरमपंथी नहीं थे बल्कि जल्द भारतीय सेना को समझ आ गया कि उनका मुकाबला पाकिस्तानी सेना से है. पाकिस्तान ने इस युद्ध की शुरूआत 3 मई 1999 को ही कर दी थी जब उसने कारगिल की ऊंची पहाडि़यों पर 5,000 सैनिकों के साथ घुसपैठ कर कब्जा जमा लिया था. इस बात की जानकारी जब भारत सरकार को मिली तो सेना ने पाक सैनिकों को खदेड़ने के लिए ऑपरेशन विजय चलाया.
फिर दोनों देशों के बीच युद्ध शुरू हो गया. गोलियों की गडग़ड़ाहट और बमों और मोटार्रो के बारूदी धमाकों के दरम्यान हिंदुस्तानी हौसले बुलंद थे. सबसे पहले भारतीय सेना ने 13 जून को तोलोलिंग पहाड़ी पर तिरंगा फहराया. हालांकि इस विजय गाथा को लिखने में भारत के 17 सैनिक शहीद हो गए थे.
इस जीत के बाद भारतीय सेना का मनोबल बढ़ा और वह लगातार पाकिस्तानी सेना को खदड़ने में लग गए.इसके बाद सामरिक महत्व की एक अन्य चोटी टाइगर हिल से दुश्मन को मार भगाने की जिम्मेदारी 18 ग्रेनेडियर को दी गई. इसने पूर्वी और पश्चिमी तरफ से आगे बढ़ने का फैसला किया. यह देखकर दुश्मन चकरा गया और उसने चार जुलाई को टाइगर हिल को भी खाली कर दिया. बता दें कि टाइगर हिल समुद्र तल से 5062 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है. इस वक्त वायुसेना द्वारा किए गए हवाई हमले की निगरानी तत्कालीन वायुसेना प्रमुख अनिल यशवंत टिपनिस ने खुद एक विमान में बैठकर किया था. इस हमले में मिराज 2000 विमानों का प्रयोग कर दुश्मनों के ठिकानों पर लेजर गाइडेड बम गिराए गए.
देश की रक्षा के लिए थलसेना के साथ-साथ वायुसेना भी आगे आई. 26 मई को भारतीय वायुसेना ने 'ऑपरेशन सफेद सागर' लाया. कई वायुसेना के विमानों ने उड़ाने भरी और घायल जवानों को युद्घ क्षेत्र से अस्पताल तक लाने का कार्य किया. थलसेना और वायुसेना के साथ मां भारती की रक्षा के लिए नौसेना ने भी'ऑपरेशन तलवार' के तहत अपने युद्धपोत को अरब सागर में तैनात करके पाकिस्तान पर सामरिक दबाव बनाया.
इस बीच भारतीय सेना ने एक के बाद एक पहाड़ियों को पाकिस्तानी सेना के कब्जे से मुक्त कराया.जल्द पूरी दुनिया को पता चल गया कि घुसपैठिए महज आतंकी नहीं बल्कि पाकिस्तानी सेना ही थी. वह पाकिस्तान के नॉर्दन लाइट इंफैंट्री के जवान थे. अब तक यह साफ हो चुका था कि यह घुसपैठ एक सुनियोजित पाकिस्तान की आर्मी का प्लान था.
भारतीय वायुसेना ने पाकिस्तान के खिलाफ मिग-27 और मिग-29 का भी इस्तेमाल किया. इसके बाद जहां भी पाकिस्तान ने कब्जा किया था वहां बम गिराए गए. इसके अलावा मिग-29 की सहायता से पाकिस्तान के कई ठिकानों पर आर-77 मिसाइलों से हमला किया गया. यह युद्ध कोई आम युद्ध नहीं था. इस युद्ध में बड़ी संख्या में रॉकेट और बमों का इस्तेमाल किया गया. इस दौरान करीब दो लाख पचास हजार गोले दागे गए. वहीं 5,000 बम फायर करने के लिए 300 से ज्यादा मोर्टार, तोपों और रॉकेटों का इस्तेमाल किया गया. बताया जाता है कि द्वितीय विश्व युद्ध के बाद यही एक ऐसा युद्ध था जिसमें दुश्मन देश की सेना पर इतनी बड़ी संख्या में बमबारी की गई थी.
14 जुलाई 1999 को तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी बाजपेयी ने कारगिल को घुसपैठियों से मुक्त कराने के लिए चलाए गए ऑपरेशन विजय को सफल घोषित किया. करीब दो महीने तक चला कारगिल युद्ध भारतीय सेना के साहस और जांबाजी का ऐसा उदाहरण है जिस पर हर देशवासी को गर्व होना चाहिए. सरकारी आंकड़े के अनुसार कारगिल युद्ध में कुल 527 सैनिक शहीद हुए. 1363 लोग घायल हुए और एक सैनिक युदधबंदी हुआ. भारतीय सेना का एक लड़ाकू विमान गिराया गया. एक लड़ाकू विमान क्रैश हुआ.जबकि पाकिस्तान की ओर से जारी आंकड़े के मुताबिक पाकिस्तान के 357-453 सैनिक मारे गए. वहां 665 से अधिक घायल हुए और आठ फौजी बंदी बने.