20 Years of Kargil WAR: हौसले, बुलंद इरादे और जुनून से भर देगी शहीद परिवारों की कहानी, पढ़िए
Kargil Vijay Diwas: कारगिल युद्ध में शहीद हुए सैनिकों के परिवार वालों का जज्बा भी उन्ही सैनिकों की तरह है. परिवार के सदस्यों के खून में भी हिन्दुस्तान बहता है और इसी कारण वह भी देश की सेना ज्वाइन कर अपने वतन की सेवा कर रहे हैं.
Kargil Vijay Diwas: आज से ठीक 20 साल पहले हिन्दुस्तान के सपूतों ने पाकिस्तान को युद्ध के मैदान में परास्त किया था. 20 साल पहले भारतीय जांबाजों ने कारगिल में जीत दिलाई थी. इस युद्ध में भारतीय सेना के कई सैनिक शहीद हो गए थे. आज हम आपको देश के अलग-अलग शहरों और परिवारों के उन्हीं जांबाजों की कहानी बताने जा रहे हैं जिनकी बदौलत भारत कारगिल युद्ध जीता था. 20 साल पहले जो शौर्य का सफर शुरू हुआ था वह आज भी रुका नहीं है. अपनों को खोने का गम तो है लेकिन आज भी शहीदों के परिवार वालों में हिन्दुस्तान लहू बन कर बह रहा है.
मुजफ्फरनगर
कारगिल के युद्ध के वक्त मुजफ्फरनगर के रहने वाले लांस नायक बचन सिंह पहाड़ियों पर दुश्मन से लोहा ले रहे थे और इधर पत्नी और उनके दो बेटें उनकी सलामति की दुआ कर रहे थे. राजपूताना राइफल्स की दूसरी बटैलियन में बचन सिंह तैनात थे. 12 और 13 जून की रात को बचन सिंह के सिर में गोली लगी और वो शहीद हो गए.
उनकी पत्नी ने बताया कि उस दिन उनको फोन आया और बुलाया गया. जब उन्होंने पूछा कि कोई क्या बात है क्या तो सेना के अधिकारियों ने कुछ नहीं बताया. हालांकि उन्हें किसी अनहोनी का आभास हो गया था.
आज बचन सिंह के लहू का शौर्य उनके दोनों बेटों के लहू में बह रहा है. उनके एक बेटे हितेश ने पिता के ही बटैलियन राजपूताना राइफल्स ज्वाइन कर उनका मान-सम्मान और बढ़ा दिया है. हितेश फिलहाल जयपुर में पोस्टेड हैं. बचन सिंह के दूसरे बेटे हेमंत ने भी आर्मी ज्वाइन करने की तैयारी शुरू कर दी है.
20 साल पुरानी तस्वीर आज भी जब आंखों में उभरती है तो लांस नायक शहीद बचन सिंह की पत्नी की आंखें भर आती है. उनकी पत्नी कामेश बाला कहती हैं कि इससे अधिक मुझे कुछ भी नहीं चाहिए कि मेरा बेटा आज सेना में है. जब मैं हितेश के युनिट में गई थी तो देखा कि वह कमांड दे रहा है. यह देखकर मुझे बहुत गर्व हुआ. कमलेश बाला ने अपने दोनों बच्चों में वही जज्बा भरा जो उनके पति लांस नायक बचन सिंह में था.
टिहरी चंबा
उत्तराखंड के टिहरी चंबा में जन्में राजेंद्र सिंह रमोला कारगिल युद्ध में दुश्मन को धुला चटाने वाले सैनिकों में थे. दुर्भाग्यवस युद्ध के दो साल बाद ही वो शहीद हो गए. परिवार पर मुसिबतों का पहाड़ टूट गया लेकिन तमाम मुसिबतों को दरकिनार कर इस परिवार ने अपने एक और सपूत को देश की सेवा में लगा दिया. शहीद सूबेदार राजेंद्र चंद रमोला के सपूत सौरव रमोला सात गढ़वाल रेजिमैंट में लेफ्टिनेंट के पद पर तैनात हैं. रांजेंद्र सिंह की पत्नी बताताी हैं कि उनका बेटा अपनी मेहनत से वहां पहुंचा है. उसने कहा है कि पापा का और देश का नाम और ऊंचा करेगा. सौरव रमोला महज 18 साल की उम्र में सेना में भर्ति हो गए थे. जिस वक्त राजेंद्र रमोला शहीद हुए उस वक्त सौरव महज चार साल के थे.
राजस्थानआपरेशन विजय ' के दौरान हवलदार शीश राम गिल को अपनी टीम के साथ 1700 फ़ीट पर स्थिति दुश्मन की मजनू पोस्ट पर धावा बोलने का टास्क दिया गया. वह राजस्थान के झुंझुनू के रहने वाले थे. 11 जुलाई को वह पाकिस्तानी सेना की गोलीबारी में शहीद हो गए. अब शहीद शीशराम के बेटे कैलाश उसी जाट रेजिमेंट में हैं जिसमें उनके पिता हुआ करते थे. एक चिंतित मां की तरह शीशराम की पत्नी ने पहले बेटे को फौज में जाने से रोकने की कोशिश की लेकिन बाद में बेटे की इच्छा का सम्मान रखा. पूरा गांव शीशराम के बेटे कैलाश की तारीफ करता है और उस पर गर्व करता है. शहीद शीशराम के पिता भी फौज में रहे हैं और 1965 और 1971 के युद्ध का हिस्सा रह चुके हैं.
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