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Kargil Victory: 'जब भारत ने कारगिल युद्ध तो जीत लिया लेकिन POK वापस लेने का मौका खो दिया', कर्नल एससी त्यागी का दावा

Kargil Victory: 1999 में कारगिल युद्ध के दौरान भारत के पास मौका था जब वो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को वापस ला सकता था. ऐसा दावा कर्नल एससी त्यागी ने एक ब्लॉग में किया है.

Kargil War: देश को आजादी मिलने के बाद से भारत और पाकिस्तान के रिश्ते कभी भी अच्छे नहीं रहे. खासतौर पर कश्मीर को लेकर दोनों देशों के बीच कई युद्ध भी हो चुके हैं. इसमें कारगिल युद्ध का नाम प्रमुखता के साथ लिया जाता है. 1999 में जब सादे कपड़ों में पाकिस्तानी सैनिक ऊंचाइयों पर बैठे तो एक चरवाहे ने सबसे पहले देखा था. इसके बाद पाकिस्तान ने कई चोटियों पर गुपचुप तरीके से कब्जा कर लिया.

ये घटना तब घटी जब कुछ महीने पहले ही उस वक्त के प्रधानमंत्री अटल विहारी वाजपेयी और नवाज शरीफ के बीच लाहौर में मुलाकात हुई. जिसके बाद एक समझौता हुआ और सौहार्दपूर्ण माहौल बना. इसको लेकर हाल ही में नवीज शरीफ पहली बार सार्वजनिक रूप से दुख जताया और बताया कि किस तरह पाकिस्तान ने भारत के साथ विश्वासघात किया. कारगिल में हुई घुसपैठ ने सभी वादों को तोड़ दिया और सीधे भारत की संप्रभुता पर वार किया.

कैसे गंवा दिया पीओके लेने का मौका?

टाइम्स ऑफ इंडिया में छपे एक ब्लॉग के मुताबिक, इस युद्ध के दौरान भारतीय सेना दो महीने तक मोर्चा संभाले रही. एलओसी को बहाल किया. इससे पहले 527 बहादुर जवान शहीद हुए. साथ ही भारतीय सैनिकों ने ये सुनिश्चित किया कि बटालिक में पीओके की ओर जा रहे पाकिस्तानी सैनिकों के वापसी के रास्ते को रोकने का फायदा मिले. यही वो सटीक पल था जब कारगिल विजय के बाद कम से कम नुकसान और के साथ पीओके को पार करने और दोबारा उसे हासिल करने का एक छिपा हुआ मौका बन सकता था.

जब नवाज शरीफ ने की अमेरिका से हस्तक्षेप की मांग

4 जुलाई का दिन था. उस साल अमेरिका का स्वतंत्रता दिवस था, जब पाकिस्तानी सेना की हार और बांग्लादेश जैसी स्थिति का सामना करने के डर से, पाकिस्तान के तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज शरीफ अमेरिकी राष्ट्रपति से मिलने के लिए गए और हस्तक्षेप की गुहार लगाई. नतीजतन, पाकिस्तान और भारतीय सेना दोनों के DGMO ने पहले हॉटलाइन पर बात की और बाद में 11 जुलाई को अटारी सीमा पर मिले और उसके तुरंत बाद युद्ध विराम की तारीख घोषित की गई.

भारतीय सेना धीरे-धीरे पीओके की तरफ बढ़ने लगी

कर्नल एससी त्यागी के लिखे इस ब्लॉग में बताया गया कि जब द्रास में लड़ाई चल रही थी और पाकिस्तानियों को एलओसी की ओर पीछे धकेलने पर ध्यान दिया जा रहा था, उस वक्त बटालिक को प्रथामिकती नहीं दी गई. इसके पीछे कारण ये था कि वो गहराई में था और नेशनल हाईवे पर नहीं था. हालांकि सैनिक धीरे-धीरे एलओसी की तरफ आगे बढ़ रहे थे. वो कहते हैं कि गोल टेकरी, खालूबार, स्टांग बा और पद्मा गो में लड़ाई के बारे में भी नहीं बताया गया. हमारे सैनिक जुलाई के पहले सप्ताह में एलओसी पर पहुंच गए थे?

पीओके में गुलटारी, शाकमा या स्कार्दू में ज्यादातर लोकेशन्स सामरिक पहुंच के भीतर थीं. थल सेना पहले ही नियंत्रण रेखा पर पहुंच चुकी थी. ऐसे में न केवल पाक अधिकृत कश्मीर में महत्वपूर्ण संचार मार्गों पर फिर से कब्जा कर लेती, बल्कि बीच में फंसी पाकिस्तानी सेना को भी आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर कर देती, जैसा 1971 में बांग्लादेश में हुआ था.

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