नई दिल्ली: कर्नाटक में बीजेपी की सरकार गिर गई है. बहुमत परीक्षण के बजाए आज मुख्यमंत्री बीएस येदुरप्पा ने इस्तीफा दिया, इसी के साथ बीजेपी की सरकार दो दिनों में ही गिर गई. इसके साथ ये भी साफ हो गया है कि चुनाव में तीसरे नंबर पर रही जेडीएस के कुमारस्वामी कांग्रेस के समर्थन से मुख्यमंत्री बनेंगे. इस्तीफे से पहले बीएस येदुरप्पा ने भावुक भाषण दिया. येदुरप्पा ने कहा कि कांग्रेस-जेडीएस ने जनता के साथ धोखा किया, चुनाव में एक दूसरे के खिलाफ प्रचार किया और बाद एक दूसरे के साथ आ गए.


राहुल गांधी के कांग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद पहली बार किसी राज्य में पार्टी सत्ता में भागीदार बन रही है. जिस जेडीएस के खिलाफ कांग्रेस चुनाव लड़ी अब उसके साथ सरकार बनाएगी. राहुल गांधी ने कहा, 'बेहतर होगा कि राज्यपाल वजुभाई वाला इस्तीफा दे, लेकिन मुद्दा उनके इस्तीफे से बड़ा है. आज बीजेपी और आरएसएस हर संस्था पर आक्रमण कर रहे हैं. प्रधानमंत्री मोदी, अमित शाह और आरएसएस को किसी संस्था की परवाह नहीं है. हम देश की संवैधानिक संस्थाओं को बीजेपी और आरएसएस के हमले से बचाने और बीजेपी को पराजित करने के लिए विपक्षी दलों के साथ मिलकर काम करेंगे.'


बीजेपी कह रही है कि एक आदमी से दुश्मनी निकालना कांग्रेस को महंगा पड़ रहा है और पड़ेगा. वहीं मायावती ने आज जब प्रेस कॉन्फ्रेंस की तो राहुल का नाम नहीं लिया. कांग्रेस का जिक्र तक नहीं किया लेकिन जेडीएस को बधाई जरूर दी. तो अब सियासत की गलियारे में यह सवाल उठ रहा है कि चंद मिनट बाद ही ऐसे हालात हैं तो क्या 2019 में मोदी के मुकाबले के लिए ऐसे साझा विपक्ष बनेगा.


जहां तक हार जीत के आंकड़ों का सवाल है तो राहुल गांधी के अध्यक्ष बनने के बाद अप्रत्यक्ष रूप से ही सही कांग्रेस सरकार बनाने जा रही है. कर्नाटक चुनाव के नतीजों के बाद जिस तेजी से कांग्रेस ने जेडीएस के कुमारस्वामी को मुख्यमंत्री का ऑफर दिया. उसने एक बात साफ कर दी है कि वो बीजेपी को हराने के लिए किसी भी हद तक जा सकती है. इसकी शुरुआत कर्नाटक से कांग्रेस ने कर दी है. जिसके अच्छे नतीजों ने राहुल गांधी को सीधे प्रधानमंत्री पर तीखा हमला करने का मौका भी दे दिया है.


जानकारों को लगता है कि मोदी को हराने के लिए कांग्रेस 2019 में छोटी पार्टियों के साथ लड़ सकती है. वो यूपी में समाजवादी पार्टी, बहुजन समाजवादी पार्टी और आरएलडी के साथ आ सकती है. इसी तरह महाराष्ट्र में एनसीपी, तमिलनाडु में डीएमके, बिहार में लालू यादव, झारखंड में जेएमएम के साथ मिलकर मोदी की घेराबंदी कर सकती है.


हालांकि जानकारों को लगता है कि कर्नाटक मॉडल से बाकी जगह कांग्रेस की बार्गेनिंग पावर में कमी आ सकती है. इसका संकेत मायावती की आज की इस प्रेस कॉन्फ्रेंस से मिलता है. जिन्होंने कर्नाटक में बीजेपी सरकार गिरने पर अपनी सहयोगी जेडीएस को तो बधाई दी लेकिन कांग्रेस का नाम तक नहीं लिया.


मायावती के तेवर बताते हैं कि कांग्रेस के लिए गठबंधन की राह इतनी आसान नहीं होगी. सवाल ये भी है कि मोदी को हराने के लिए विपक्ष का नेतृत्व कौन करेगा. क्या राहुल गांधी उसके नेता होंगे. अगर हां तो क्या बाकी दल उनके नेतृत्व को स्वीकार करेंगे. जहां तक राहुल गांधी की बात है तो वो कर्नाटक चुनाव में राहुल गांधी इस पर खुलकर बोल चुके हैं.


राहुल गांधी की दावेदारी को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अहंकार बताते हुए चुनावी रैलियों में उन पर जमकर निशाना साधा. राजनीतिक जानकारों को लगता है कि अगर 2019 का चुनाव नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी हुआ तो उसके नतीजे 2014 जैसे ही होंगे. शायद ये बात कांग्रेस पार्टी को भी समझ में आ चुकी है. इसीलिए 2019 में सबसे ज्यादा सीट जीतने पर प्रधानमंत्री पद पर बनने की बात कहने वाले राहुल गांधी विपक्ष से गठबंधन की बात कह रहे हैं.


सियासी विश्लेषकों का भी मानना है कि 2019 के नतीजे इस बात से तय होंगे कि विपक्ष मोदी की कैसी घेराबंदी करता है. लेकिन फिलहाल राहुल के लिए राहत की बात ये है कि कर्नाटक ने एक बार फिर आड़े वक्त में गांधी परिवार का साथ दिया है.


1975 में आपातकाल लगाने के बाद इंदिरा गांधी 1977 में रायबरेली से चुनाव हार गईं. जिसने पूरी कांग्रेस को निराशा में डुबो दिया. लेकिन 1978 में कर्नाटक के चिकमंगलूर से लोकसभा चुनाव जीतकर इंदिरा गांधी ने जोरदार वापसी की. इसी तरह जब सोनिया गांधी ने मुश्किल वक्त में कांग्रेस की बागडोर संभाली. तो 1999 के चुनाव में कांग्रेस को अमेठी की तरह एक और महफूज सीट की तलाश थी. जो कर्नाटक के बेल्लारी में जाकर पूरी हुई. सोनिया को हराने के लिए बीजेपी ने सुषमा स्वराज को उतारा. जिन्होंने पूरे चुनाव को भारतीय बेटी बनाम विदेशी बहू कर दिया. लेकिन कर्नाटक की जनता ने सोनिया को निराश नहीं किया. अब राहुल गांधी को विपक्ष की तरह कर्नाटक से भी ऐसी ही उम्मीद है.