19 साल पहले की 'अटल कहानी' को याद करके टेंशन में होंगे येदुरप्पा
चलिए वक्त का पहिया 19 साले पीछे ले चलते हैं. फ्लोर टेस्ट की सबसे ऐतिहासिक कहानी है.
नई दिल्ली: कर्नाटक की राजनीति में पलपल बदलते घटनाक्रम के बीच मुख्यमंत्री बीएस येदुरप्पा कल शाम चार बजे 'फ्लोर टेस्ट' का सामना करेंगे. उन्हें सूबे में सरकार बनाने के लिए आठ सीटों की दरकार है. बीजेपी को पूरा भरोसा है कि वह कांग्रेस और जनता दल सेक्युलर (जेडीएस) के विधायकों को अपने पाले में करने में सफल रहेगी. सियासत में अंकों का खेल हर वैचारिक समीकरण पर भारी है. कर्नाटक का खेल देखकर यह मुहावरा आपको याद आएगा-इतिहास खुद को अक्सर दोहराता है.सुप्रीम कोर्ट ने कहा- कल होगा बहुमत परीक्षण, पढ़ें...कर्नाटक में अब तक क्या हुआ और आगे क्या होगा
चलिए वक्त का पहिया 19 साले पीछे ले चलते हैं. फ्लोर टेस्ट की सबसे ऐतिहासिक कहानी है. 1998 में लोकसभा चुनाव एनडीए के साथ गठजोड़ करके जयललिता केंद्र सरकार में शामिल हो गईं थीं. सियासी जानकारों और बीजेपी अक्सर यह आरोप लगाती है कि उस वक्त जयललिता की इच्छा थी कि भ्रष्टाचार का आरोप लगाकार करूणानिधि की सरकार को गिरा दिया जाए. फिर से विधानसभा चुनाव कराए जाएं जिससे उनकी पार्टी सत्ता में आ सके. इसके लिए अटल सरकार तैयार नहीं थी. 17 अप्रैल, 1999 का दिन आपको याद होगा, क्योंकि इसी दिन 13 माह से केंद्र में चल रही अटल बिहारी वाजपेयी सरकार सिर्फ एक वोट से गिर गई थी. सियासी गलियारे में कहा जाता है कि जयललिता तब तक सोनिया के करीब नहीं थीं. मार्च के महीने में एक चाय पार्टी में सोनिया और जयललिता की मुलाकत हुई और वह वाजपेयी सरकार से समर्थन वापस लेने के लिए राजी हो गईं. इसके बाद महज एक वोट से वाजपेई सरकार गिर गई, यह घटना ऐतिहासिक बन गया.कर्नाटक में गुजरात का इतिहास दोहराया जा रहा है, बस खेल पलट गया है
एक और सियासी कहानी यूपी की पढें अगर किसी भी स्थिति में बीजेपी बहुमत साबित करने में असफल रहती है तो येदुरप्पा का हाल भी कांग्रेस के 'अभूतपू्र्व सीएम' जगदंबिका पाल जैसा हो सकता है. आइए आपको बताते हैं कि क्या है जगदंबिका पाल के 'अभूतपूर्व सीएम' बनने की कहानी.DETAIL: कर्नाटक में इस ट्रिक से बहुमत जुटा लेगी बीजेपी
पद से हटे किसी भी शख्स के लिए पूर्व या भूतपू्र्व का इस्तेमाल आम है, लेकिन जगदंबिका पाल के लिए 'भूतपू्र्व सीएम' नहीं बल्कि 'अभूतपूर्व सीएम' की उपमा उछाली गई थी. पाल के 'अभूतपूर्व सीएम' बनने की कहानी बड़ी दिलचस्प है. आपको बता दें कि 67 साल के पाल ने अपनी राजनीति का सबसे लंबा वक्त कांग्रेस में बिताया है. वो पार्टी के लिए विधायक से लेकर सांसद और एक दिन के सीएम भी रहे हैं. लेकिन बाद में पाला बदलकर पाल बीजेपी में शामिल हो गए. फिलहाल वो यूपी के डुमरियागंज से बीजेपी के सांसद हैं.
एक दिन के लिए राज्य के सीएम बने थे पाल
पाल के जीवन में अभूतपू्र्व का तमगा साल 1998 में लगा. दरअसल, पाल एक दिन के लिए यूपी के सीएम बने थे. 21 फरवरी से 22 फरवरी 1998 तक पाल राज्य के सीएम थे. तब कल्याण सिंह की सरकार को राज्य के राज्यपाल रोमेश भंडारी ने बर्खास्त कर दिया था जिसके बाद पाल को वहां का सीएम बनाया गया था.
21 से 22 फरवरी 1998 के बीच दल-बदल की वजह से बहुमत साबित करने के दौरान यूपी विधानसभा में जमकर मारपीट हुई. इसे देखते हुए तत्कालीन गवर्नर रोमेश भंडारी ने यूपी में राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर दी. लेकिन केंद्र ने इससे इंकार कर दिया. इससे उत्साहित होकर कल्याण सिंह ने बाहर से आए विधायकों को मंत्री बना कर देश के इतिहास में यूपी का सबसे बड़ा मंत्रिमंडल बना दिया. इसमें 93 मंत्री रखे गए. वहीं, इससे नाराज दूसरे राजनीतिक दलों ने कल्याण सरकार का तख्ता पलट करने की योजना बना ली.
कल्याण सिंह को उस समय झटका लगा जब बीएसपी से आए विधायकों के सपोर्ट को गवर्नर रोमेश भंडारी ने मान्यता देने से इंकार कर दिया. इसके बाद उन्होंने रातों-रात कल्याण सिंह सरकार को बर्खास्त कर दिया. इतना ही नहीं उन्होंने जगदंबिका पाल को सीएम पद की शपथ दिलवा दी. इस दौरान यूपी विधानसभा में जैसा घटनाक्रम हुआ था वैसा देश की विधानसभाओं के इतिहास में कभी नहीं हुआ.
कल्याण सिंह और जगदंबिका पाल विधानसभा में स्पीकर के दायीं और बायीं तरफ बैठे हुए थे. इस दौरान विधायक अपनी पसंद के सीएम के लिए वोट कर रहे थे. कल्याण सिंह को आसानी से बहुमत हासिल हो गया जिसके बाद 23 फरवरी को हाई कोर्ट ने कल्याण सिंह सरकार को वापस से राज्य की जिम्मेदारी सौंप दी.