त्रिपुरा-गुजरात-उत्तराखंड में BJP के इस 'अमोघ अस्त्र' ने दिलाई जीत, क्या कर्नाटक में भी आएगा काम?
BJP Formula For Election: बीजेपी ने विधानसभा चुनावों में जीत के लिए एक फॉर्मूला लगातार अपनाया है जो तीन राज्यों में हिट भी साबित हुआ है. अब कर्नाटक विधानसभा चुनाव में इसका फूलप्रूफ टेस्ट होने वाला है.
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BJP Formula To Win Election: दूसरी पार्टियों में मुख्यमंत्री बदलने को लेकर खूब घमासान होता है. शायद ही बीजेपी की ओर से मुख्यमंत्री बदलने पर कभी कोई खींचतान सामने आई हो. ऐसे फैसलों की तो लोगों को कानोंकान खबर भी नहीं लगती. बीते एक साल में बीजेपी चार राज्यों में सीएम बदल चुकी है. इसके पीछे बीजेपी की रणनीति है जो उसे चुनाव जीतने में मदद करती है. सबसे ताजा उदाहरण त्रिपुरा का है, जहां पर कुछ महीने पहले ही सीएम बदलने का फायदा मिला और पार्टी ने सत्ता विरोधी लहर को किनारे करते हुए दोबारा सत्ता में वापसी की.
त्रिपुरा पहला राज्य नहीं है. इसके पहले बीजेपी गुजरात में भी इसी फॉर्मूले को अपनाकर राज्य में वापसी कर चुकी है, लेकिन इसका सबसे पहला सफल प्रयोग उत्तराखंड में किया था. यहां तो भाजपा ने एक नहीं, बल्कि दो-दो बार मुख्यमंत्री बदले थे.
उत्तराखंड में कैसे बीजेपी ने पलटा पासा
उत्तराखंड राज्य के गठन के बाद कभी किसी पार्टी ने लगातार दोबारा सरकार नहीं बनाई थी, लेकिन 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने ऐसा कर दिखाया. बीजेपी के जीत के फॉर्मूले को समझने के लिए पीछे चलना होगा. 2017 में उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव हुए थे जिसमें बीजेपी की जीत हुई. बीजेपी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को मुख्यमंत्री बनाया. चुनाव के पहले कांग्रेस के बागियों का एक खेमा भी भाजपा में शामिल हुआ था. उस खेमे के विधायकों का असंतोष त्रिवेंद्र सिंह रावत के खिलाफ बढ़ने लगा था. बात बिगड़ न जाए, इसलिए चार साल बाद 2021 में बीजेपी ने मुख्यमंत्री बदला और तीरथ सिंह रावत को गद्दी सौंपी.
तीरथ सिंह रावत के मुख्यमंत्री बने 4 महीने भी नहीं बीते थे कि एक बार फिर से राज्य में फिर से सीएम बदलने की नौबत आ गई. 4 जुलाई, 2021 को बीजेपी ने पुष्कर सिंह धामी को मुख्यमंत्री बनाया. 2022 में बीजेपी पुष्कर सिंह धामी के नेतृत्व में चुनाव में उतरी और फिर से राज्य में सरकार बनाई.
गुजरात में भी सफल हुआ फॉर्मूला
गुजरात को बीजेपी की प्रयोगशाला कहा जाता है. गुजरात ही था जिसने नरेंद्र मोदी को देश में ब्रांड के रूप में स्थापित किया. यही वजह है कि बीजेपी गुजरात को जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ती. 2017 में चुनाव के बाद गुजरात में बीजेपी ने विजय रुपानी को सीएम बनाया. चार साल बाद बीजेपी ने भांप लिया कि रूपानी को लेकर राज्य में माहौल ठीक नहीं है. सितम्बर 2021 में बीजेपी ने राज्य में प्रभावशाली पटेल समुदाय के भूपेंद्र पटेल को सीएम बनाया. बीजेपी की ये रणनीति काम की रही और 2022 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने अब तक की सबसे ज्यादा सीट जीतकर इतिहास रच दिया.
त्रिपुरा में माणिक साहा ने दिलाई जीत
सीएम बदलकर चुनाव जीतने का बीजेपी का सबसे ताजा उदाहरण त्रिपुरा का है. 2018 में बीजेपी ने त्रिपुरा में लेफ्ट के गढ़ ध्वस्त कर दिया. तब बीजेपी ने राज्य में पार्टी के अध्यक्ष बिप्लब देव को सीएम बनाने का फैसला किया था. तेज तर्रार बिप्लब देव ने कमान संभाली और काम शुरू किया. चार साल आते-आते बिप्लब देव के खिलाफ विधायकों की नाराजगी की खबरें आने लगी. कई विधायकों ने पार्टी छोड़ दी. चुनाव से कुछ महीने पहले बीजेपी ने बिप्लब देव की जगह माणिक साहा को राज्य की सत्ता पर बिठाया. 2 मार्च को आए त्रिपुरा विधानसभा चुनाव के नतीजों ने इस बात को साबित कर दिया है कि बीजेपी का दांव सही बैठा है.
कर्नाटक में क्या हिट होगा फॉर्मूला?
कर्नाटक में अप्रैल-मई के दौरान चुनाव होने की संभावना है. कर्नाटक दक्षिण में बीजेपी का इकलौता दुर्ग है. बीजेपी इसे बचाने की पूरी कोशिश कर रही है. यही वजह है कि 2021 में बीजेपी ने राज्य के दिग्गज नेता बीएस येदियुरप्पा को मुख्यमंत्री की कुर्सी से हटाकर बसवराज बोम्मई को पद पर बिठाया. अब देखना है कि बसवराज बोम्मई राज्य में सत्ता विरोधी लहर की काट ढूढ़ने में सफल हो पाते हैं या नहीं.
इन राज्यों में सीएम न बदलने का हुआ था नुकसान
यहां ये बाद ध्यान रखने की है कि गुजरात के साथ ही हिमाचल प्रदेश में भी विधानसभा के चुनाव हुए थे. यहां बीजेपी ने सीएम की कुर्सी पर बदलाव नहीं किया था और जयराम ठाकुर पर भरोसा बनाए रखा था. चुनाव परिणामों में बीजेपी को हार मिली और हिमाचल में कांग्रेस ने सरकार बनाई.
इसके पहले झारखंड में भी बीजेपी ने रघुवर दार के नेतृत्व में ही चुनाव लड़ा था. यहां भी पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा. झारखंड मुक्ति मोर्चा ने कांग्रेस के साथ मिलकर यहां सरकार बनाई और हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री बने.
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