Karnataka Reservation Issue: गुजरात में ऐतिहासिक जीत दर्ज करने के बाद अब बीजेपी दक्षिण भारत में अपनी स्थिति मजबूत करने के मिशन में जुटी है. इसके लिए बीजेपी के पास कर्नाटक में सत्ता बरकरार रखने की चुनौती है.  लेकिन हाल फिलहाल में कर्नाटक में बीजेपी एक नए तरह के चक्रव्यूह में फंसते नजर आ रही है. ये चक्रव्यूह लिंगायत समुदाय के आरक्षण से जुड़ा है. अगर जल्द ही बीजेपी ने इस चक्रव्यूह को भेदने की रणनीति नहीं बनाई तो उसके लिए सत्ता में वापसी की राह कांटों भरी हो सकती है.  


कर्नाटक विधानसभा चुनाव में अब ज्यादा वक्त नहीं बचा है. कर्नाटक विधानसभा का कार्यकाल 24 मई 2023 को खत्म हो रहा है. ऐसे में अप्रैल-मई में यहां चुनाव हो सकते हैं. चुनाव को नजदीक देख कर्नाटक के अलग-अलग समुदायों से आरक्षण बढ़ाने की मांग तेज़ हो रही है. लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय की आरक्षण बढ़ाने की मांग का हल निकालना बीजेपी के लिए सबसे बड़ी चुनौती है. 


कर्नाटक सरकार पर बढ़ता दबाव


कर्नाटक में लिंगायत समुदाय के लोग आरक्षण को बढ़ाकर 15% करने की मांग कर रहे हैं. फिलहाल कर्नाटक में लिंगायत के लिए 5 फीसदी का आरक्षण है. ऐसे तो इनकी आरक्षण बढ़ाने की मांग पहले से ही है, लेकिन चुनाव को देखते हुए इस समुदाय से जुड़े संगठनों ने बीजेपी नेता और मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई पर दबाव बनाना शुरू कर दिया है.  लिंगायत समुदाय की मांग है कि उन्हें ओबीसी आरक्षण की श्रेणी 2 ए (2A) में शामिल किया जाए. इससे उनके लिए 15% आरक्षण का रास्ता साफ होगा. अभी लिंगायत को 3 बी (3B) की कैटेगरी में 5 प्रतिशत का आरक्षण मिलता है. 


पंचमसाली लिंगायत पीछे हटने को तैयार नहीं


सरकार और बीजेपी पर दबाव बनाने की कड़ी में ही 22 दिसंबर को एक लाख से ज्यादा पंचमसाली लिंगायतों (Panchamasali Lingayats) ने आरक्षण बढ़ाने की मांग को लेकर कर्नाटक के बेलगावी में प्रदर्शन किया. इस समुदाय से जुड़े संगठनों से साफ चेतावनी दे दी है कि अगर सरकार उनकी मांगों पर गौर नहीं करती है तो बीजेपी को चुनाव में नुकसान उठाने के लिए तैयार रहना होगा. ये प्रदर्शन तब किया गया जब बेलगावी में कर्नाटक विधानसभा का शीतकालीन सत्र चल रहा था. लिंगायत समुदाय से जुड़े संतों का कहना है कि मुख्यमंत्री ने 19 दिसंबर तक आरक्षण बढ़ाने को लेकर ऐलान करने का वादा किया था. ऐसा नहीं होने पर  इस समुदाय के लोग सड़कों पर उतर आए हैं. 


बीजेपी एमएलए बासन गौड़ा पाटिल का दबाव


पंचमसाली लिंगायतों के लिए आरक्षण बढ़ाने की मांग की अगुवाई कर्नाटक के बागलकोट जिले में स्थित कुदालसंगम पंचमसाली पीठ के संत बसव जया मृत्युंजय स्वामी  कर रहे हैं. बीजेपी के लिए चिंता इस बात से भी बढ़ जाती है कि  विजयपुर से उसके ही विधायक बासन गौड़ा पाटिल यतनाल लंबे वक्त से लिंगायतों के इस मुहिम को आगे बढ़ा रहे हैं.  ये पहले से ही पार्टी के कद्दारवर नेता बीएस येदियुरप्पा और मौजूदा मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के खिलाफ मुखर रहे हैं. लिंगायत समुदाय से जुड़े संगठनों का कहना है कि बीजेपी के लिए वे सिर्फ वोट बैंक बनकर रह गए हैं. नौकरियों में आबादी के हिसाब से लिंगायत समुदाय को प्रतिनिधित्व में बीजेपी सरकार आनाकानी कर रही है. 


कई विधायक और मंत्री भी मांग के समर्थन में


कर्नाटक में 18 फीसदी आबादी की वजह से लिंगायत समुदाय हर पार्टी के लिए बड़ा वोट बैंक है. परंपरागत तौर से लिंगायत समुदाय में बीजेपी का जनाधार काफी अच्छा माना जाता है. बीजेपी अगर चाहती है कि कर्नाटक उसके लिए गुजरात जैसा ही मजबूत सियासी किला बने, तो उसके लिए लिंगायत समुदाय के बीच अपनी पकड़ को और मजबूत करनी होगी.  पहले से ही कई मोर्चों पर जूझ रहे मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के लिए ये एक नई चुनौती है. लिंगायत समुदाय से आने वाले कई बीजेपी विधायक और मंत्री भी इस मांग के समर्थन में हैं.


लिंगायत समुदाय में येदियुरप्पा की पकड़ मजबूत


पंचमसाली लिंगायतों के इस रुख से बीजेपी के साथ ही मुख्यमंत्री बोम्मई के लिए संकट बढ़ गया है. बसवराज बोम्मई, पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी के दिग्गज नेता बीएस येदियुरप्पा के साथ मतभेद की चुनौती से पहले से ही परेशान हैं. लिंगायत समुदाय में येदियुरप्पा की पकड़ बेहद मजबूत माना जाता है. अब लिंगायत समुदाय के सबसे बड़े समूह के दबाव से निपटना बोम्मई के लिए पेचीदा होते जा रहा है. हालांकि  मुख्यमंत्री बोम्मई ने मामले को शांत करने के लिहाज से पंचमसाली समुदाय के संतों को भरोसा दिया है कि सरकार जल्द ही इस मसले पर कोई फैसला करेगी, जो सबके अनुकूल होगा.


कितना मुश्किल होगा आरक्षण बढ़ाना


बीजेपी के लिए चुनाव से पहले लिंगायत समुदाय की आरक्षण बढ़ाने की मांग को पूरा करना इतना आसान नहीं है. अगर मुख्यमंत्री बोम्मई ऐसा कोई फैसला करते हैं,  जिससे लिंगायत समुदाय के लोगों के लिए आरक्षण बढ़ जाता है, तो उनके सामने दूसरे समुदाय के वोटरों को साधने की नई चुनौती खड़ी हो सकती है. वोक्कालिगा समुदाय भी लंबे वक्त से आरक्षण को 4 से बढ़ाकर  12% करने की मांग कर रहा है. इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई के लिए लिंगायत समुदाय  के लिए आरक्षण को बढ़ाने से जुड़ा कोई भी फैसला करने से पहले वोक्कालिगा समुदाय की मांग पर भी गौर करना होगा. 


एससी और एसटी के लिए बढ़ चुका है आरक्षण


इस साल अक्टूबर में कर्नाटक सरकार ने सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में अनुसूचित जाति (SC)और अनुसूचित जनजातियों (ST) के लिए आरक्षण बढ़ाने का फैसला किया था. अध्यादेश के जरिए एससी के लिए आरक्षण को 15% से बढ़ाकर 17% कर दिया गया. वहीं एसटी के लिए आरक्षण को 3% से बढ़ाकर 7% कर दिया गया. 26 दिसंबर को इससे जुड़ा विधेयक कर्नाटक विधानसभा से सर्वसम्मति से पारित भी हो गया. कर्नाटक में ओबीसी के लिए पहले से ही 32% आरक्षण की व्यवस्था है. कर्नाटक सरकार ने  एससी और एसटी के लिए आरक्षण बढ़ाकर सुप्रीम कोर्ट की ओर से तय 50 प्रतिशत की सीमा को पार कर लिया है. ऐसे में लिंगायत और वोक्कालिगा समुदाय के लिए आरक्षण को बढ़ाना बोम्मई सरकार के लिए आसान नहीं होगा.


कर्नाटक में ओबीसी रिजर्वेशन का गणित


कर्नाटक में 32 फीसदी आरक्षण ओबीसी के लिए है. इसमें कई कैटेगरी बने हुए हैं. कैटेगरी 1 के तहत आने वाली पिछड़ी जातियों के लिए 4%, कैटेगरी 2 ए के तहत आने वाले ओबीसी के लिए 15% और मुसलमानों के लिए कैटेगरी 2 बी के तहत 4 % आरक्षण है. वहीं वोक्कालिगा के लिए कैटेगरी 3 ए के तहत 4% और लिंगायत के लिए कैटेगरी 3 बी के तहत 5% का आरक्षण है. लिंगायत खुद को कैटेगरी 2 ए में  शामिल करने की मांग कर रहे हैं.


पंचमसाली लिंगायतों का है दबदबा


लिंगायत कर्नाटक की आबादी में 18 फीसदी हैं. हिन्दू धर्म के अंतर्गत आने वाले इस समुदाय को वीरशैव लिंगायत भी कहते हैं. वे 12वीं शताब्दी के दार्शनिक और समाज सुधारक बसवन्ना के अनुयायी हैं. बसवन्ना ने जाति व्यवस्था की बेड़ियों को तोड़ने के लिए एक आंदोलन शुरू किया था.  राज्य के कई प्रभावशाली नेता लिंगायत समुदाय से हैं, जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा और मौजूदा मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई भी शामिल हैं. लिंगायत समुदाय में  100 से भी ज्यादा उप-समुदाय हैं. पंचमसाली लिंगायतों की आबादी इनमें सबसे ज्यादा है.  लिंगायत समुदाय  की कुल आबादी में पंचमसाली करीब 70 फीसदी हैं.  पंचमसाली लिंगायत की मांग है कि उन्हें कैटेगरी 2 ए के तहत आरक्षण दिया जाए. इसके तहत फिलहाल पिछड़े वर्ग को 15% का रिजर्वेशन दिया जा रहा है. इसके अलावा लिंगायत समुदाय केंद्र सरकार की ओबीसी की सूची में भी शामिल होने की मांग कर रहा है, जिससे उसे केंद्र की नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में ओबीसी के लिए मौजूद 27 फीसदी आरक्षण का भी लाभ मिल सके. हालांकि विधानसभा चुनाव को देखते हुए फिलहाल उनकी मांग कर्नाटक के लिए ज्यादा है.


लिंगायत बिगाड़ सकते हैं बीजेपी का खेल 


कर्नाटक विधानसभा की कुल 224 सीट में से करीब 100 पर इस समुदाय के वोट बेहद ही निर्णायक साबित होते हैं. इनमें से उत्तरी कर्नाटक की 62 सीटों पर उनका दबदबा है. पिछली बार इन 62 में से 40 सीटों पर बीजेपी की जीत हुई थी. बीजेपी को इन इलाकों में 2013 के मुकाबले 11 सीटें ज्यादा मिली थी.  लिंगायत समुदाय से होने के बावजूद मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई की पकड़ उतनी मजबूत नहीं है, जितनी बीएस येदियुरप्पा की मानी जाती है. अगर बीजेपी लिंगायत को साधने में कामयाब नहीं हुई तो इसका सीधा लाभ कांग्रेस को मिल सकता है. 1990 के आस-पास तक लिंगायत लोग कांग्रेस के ही समर्थक हुआ करते थे. कांग्रेस इस समुदाय के लोगों का विश्वास हासिल करने के लिए पिछले कई सालों से लगी हुई है. कांग्रेस के बड़े नेता और पूर्व मुख्यमंत्री सिद्दारमैया ने मार्च 2019 में इस समुदाय पर पार्टी की पकड़ मजबूत बनाने के लिए एक बड़ा दांव भी खेला था. उन्होंने लिंगायत समुदाय को अलग धर्म के तौर पर अल्पसंख्यक का दर्जा (minority status) देने के लिए केंद्र सरकार को चिट्ठी भी लिख दी थी. हालांकि केंद्र सरकार ने ऐसा करने से इंकार कर दिया.   


मुख्यमंत्री बोम्मई के लिए आगे की राह


22 दिसंबर को  पिछड़ा वर्ग को आरक्षण से संबंधित मामले पर कर्नाटक स्थायी पिछड़ा वर्ग आयोग के चेयरमैन जयप्रकाश हेगड़े ने मुख्यमंत्री बोम्मई को अंतरिम रिपोर्ट सौंप दी थी. इस रिपोर्ट का बेसब्री से इंतजार किया जा रहा था क्योंकि कर्नाटक में ओबीसी के तहत आने वाले कई समुदाय आरक्षण बढ़ाने की मांग कर रहे हैं. आयोग की रिपोर्ट उसी दिन आती है जब पंचमसाली लिंगायतों का बेलगावी में पदयात्रा निकलता है. चुनाव को देखते हुए इस समुदाय को शांत करने के लिए आयोग की रिपोर्ट बेहद महत्वपूर्ण है. इस रिपोर्ट के बाद ही उम्मीद जगी है कि मुख्यमंत्री बोम्मई बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व से बातचीत कर जल्द ही आरक्षण बढ़ाने की मांग पर कोई फैसला कर सकते हैं. हालांकि उनके लिए कई दूसरे समुदायों से उठ रही आवाजों को देखते हुए सिर्फ पंचमसाली लिंगायत के पक्ष में फैसला लेना इतना आसान नहीं होगा.


वोक्कालिगा को नाराज करना पड़ सकता है महंगा


कर्नाटक में लिंगायत के बाद वोक्कालिगा सबसे बड़ा समुदाय है. राज्य की आबादी  में ये 16 प्रतिशत हैं. ये जेडीएस के परंपरागत समर्थक माने जाते हैं.   वोक्कालिगा समुदाय के वोटरों का दक्षिण कर्नाटक के जिले जैसे मंड्या, हासन, मैसूरु, बेंगलुरु (ग्रामीण), टुमकुर, चिकबल्लापुर, कोलार और चिकमगलूर में दबदबा है. ये सारे इलाके पुराने मैसूर क्षेत्र में आते हैं. वोक्कालिगा समुदाय के लोगों ने भी आरक्षण बढ़ाने की मांग तेज कर दी है. उन्हें फिलहाल कैटेगरी 3 ए के तहत 4 फीसदी का आरक्षण हासिल है. वोक्कालिगा आरक्षण को 4 से बढ़ाकर 12% करने की मांग कर रहे हैं. इसके लिए सरकार के सामने 23 जनवरी 2023 का डेडलाइन रखा है. कर्नाटक कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष डीके शिवकुमार इस समुदाय से आते हैं और वे बार-बार अपने समुदाय के लिए आरक्षण बढ़ाने की मांग से जुड़े आंदोलन को तेज करने की चेतावनी दे रहे हैं. इस समुदाय के कई संत और विधायक राज्य सरकार को इससे जुड़े ज्ञापन सौंप चुके हैं. 


पुराने मैसूर क्षेत्र पर है बीजेपी की नज़र


पुराने मैसूर क्षेत्र की 89 सीटों के लिहाज से वोक्कालिगा समुदाय बेहद ख़ास हैं.  पिछली बार बीजेपी को इनमें  सिर्फ 22 सीटों पर ही जीत मिली थी. कांग्रेस को 32 और जेडीएस को 31 सीटों पर जीत मिली थी. बीजेपी चाहेगी कि 2023 के चुनाव में उसे इन इलाकों में और ज्यादा सीट आए. तभी बीजेपी आसानी से सरकार बनाने में सफल हो पाएगी. ऐसे में बीजेपी इस समुदाय की नाराजगी मोल नहीं ले सकती. 


आरक्षण बढ़ाने पर कोई भी फैसला करने से पहले बीजेपी को लिंगायत और वोक्कालिगा दोनों समुदायों के समीकरणों को साधना होगा. अगर बीजेपी ऐसा करने में कामयाब हो पाई तो उसके लिए कर्नाटक के सियासी जंग में विरोधियों को मात देना ज्यादा आसान हो जाएगा.  


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