Karnataka Assembly Election 2023: गली करुणाकर रेड्डी, गली जनार्दन रेड्डी और गली सोमशेखर रेड्डी. कहने के लिए तीन अलग-अलग नाम और तीन अलग-अलग शख्सियतें है, लेकिन कर्नाटक राजनीति से लेकर बेल्लारी के खनन कारोबार तक में जब इन तीनों नामों का जिक्र होता है तो कभी इन्हें इनके नाम से नहीं बुलाया जाता. बल्कि तब ये तीनों समेकित होकर एक नाम से जाने जाते हैं. रेड्डी ब्रदर्स. वो तीन भाई जिनके कांधों पर सवार भारतीय जनता पार्टी(BJP) ने कर्नाटक के जरिए दक्षिण भारत की राजनीति में अपने पांव पसारे और जिनकी वजह से बीजेपी और खास तौर से बीजेपी की दिवंगत नेता सुषमा स्वराज को कई आरोप-प्रत्यारोप झेलना पड़ा. 


अब वही रेड्डी ब्रदर्स बीजेपी से अलग होकर अपनी नई राजनीतिक पार्टी बना रहे हैं कल्याण राज्य प्रगति पार्टी. ये पार्टी उस वक्त में बन रही है, जब कर्नाटक में अगले कुछ महीनों में चुनाव हैं और सत्ता में काबिज बीजेपी को एंटी इन्कम्बेंसी के साथ ही कांग्रेस और जेडीएस से भी सियासी चुनौती मिल रही है. क्या कभी दक्षिण भारत में बीजेपी के लिए एंट्री गेट बने रेड्डी ब्रदर्स अब बीजेपी के लिए कांग्रेस और जेडीएस से भी बड़ी चुनौती बनेंगे और क्या नई पार्टी के साथ रेड्डी ब्रदर्स कर्नाटक की राजनीति में एक चौथे ध्रुव के तौर पर स्थापित हो पाएंगे, आज बात इसी मुद्दे पर.


कहां से शुरुआत हुई?


वो 1999 का साल था. देश में लोकसभा के चुनाव होने थे. कांग्रेस के लिहाज से वो चुनाव बेहद अहम था, क्योंकि गांधी परिवार की बहू और दिवंगत प्रधानमंत्री राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी पहली बार लोकसभा का चुनाव लड़ने जा रही थीं.  तब कांग्रेस ने सोनिया की जीत को सुनिश्चित करने के लिए सोनिया गांधी को दो जगह से चुनाव लड़वाया. पहली सीट थी उत्तर प्रदेश की अमेठी और दूसरी सीट थी कर्नाटक का बेल्लारी. अमेठी सीट पर बीजेपी के उम्मीदवार थे डॉक्टर संजय सिंह, जबकि बेल्लारी सीट से बीजेपी ने दांव लगाया था सुषमा स्वराज पर.


 बेल्लारी में सुषमा स्वराज की मदद के लिए सबसे पहले जो आगे आए, वो थे रेड्डी ब्रदर्स. आंध्र प्रदेश के अनंतपुर जिले के एक पुलिस कॉन्सटेबल चेंगा रेड्डी के तीन बेटे, जिन्होंने आंध्र प्रदेश से कर्नाटक के बेल्लारी में आकर खनन का एक बड़ा कारोबार स्थापित कर लिया था. हालांकि जब चेंगा रेड्डी अनंतपुर से बेल्लारी आए थे तो आंध्र प्रदेश और कर्नाटक दोनों एक ही राज्य मद्रास प्रेसिडेंसी का हिस्सा थे, लेकिन बेल्लारी आने के बाद चेंगा रेड्डी बेल्लारी के ही होकर रह गए. यह ही पर उनके तीन बेटों करुणाकर, जनार्दन और सोमशेखर का जन्म हुआ. तीनों में सबसे तेज थे जनार्दन रेड्डी, जिन्होंने पढ़ाई के साथ ही बेल्लारी में ही कलकत्ता की एक बीमा कंपनी के साथ काम शुरू कर दिया. फिर साल 1989 में एक चिटफंड कंपनी बनाई. नाम रखा इनोवल इंडिया सेविंग्स एंड इन्वेस्टमेंट कंपनी लिमिटेड. और फिर खनन ठेकेदारी में उतर गए.


रेड्डी ब्रदर्स खनन के बादशाह कैसे बने?  


ये 90 के दशक की बात है, जब बेल्लारी के खनन कारोबार पर संतोष लाड और अनिल लाड के नाम का सिक्का चलता था, लेकिन तब एक खनन कंपनी के साथ लौह अयस्क को लेकर संतोष और अनिल का झगड़ा हो गया. लौह अयस्क करीब दो लाख टन का था, जिसका झगड़ा था. तो लाड भाइयों ने रेड्डी ब्रदर्स से संपर्क किया. रेड्डी ब्रदर्स ने इस मामले को सुलझा दिया. बदले में रेड्डी ब्रदर्स को इतना पैसा मिला कि उन्होंने साल 2001 में आंध्रप्रदेश के ओबालापुरम में एक खनन कंपनी ही खरीद ली.


इसके बाद रेड्डी ब्रदर्स ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा. आंध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वाईएस राजशेखर रेड्डी की दोस्ती ने रेड्डी ब्रदर्स को आंध्रप्रदेश में खनन का बादशाह बना दिया, लेकिन तब तक सुषमा स्वराज के साथ जुड़े रेड्डी ब्रदर्स का बीजेपी में भी कद बढ़ गया था. 2004 के लोकसभा चुनाव में तो रेड्डी ब्रदर्स में से एक गली करुणाकर रेड्डी सांसद भी बन गए. 2008 में जब कर्नाटक में पहली बार बीजेपी की सरकार बनी थी तो उस विधानसभा चुनाव में बीजेपी को बहुमत से तीन कम विधायक मिले थे.


ऑपरेशन लोटस क्यों शुरू किया? 


तब सरकार बनाने के लिए बीजेपी को 113 विधायकों की जरूरत थी, लेकिन उसके पास महज 110 विधायक थे. ऐसे में रेड्डी ब्रदर्स ने पांच निर्दलीय विधायकों को बीजेपी के पक्ष में खड़ा कर दिया. इस तरह से बीएस येदियुरप्पा पहली बार बीजेपी के मुख्यमंत्री बने. इस सरकार में जनार्दन रेड्डी और उनके बड़े भाई जी करुणाकर रेड्डी को मंत्री बनाया गया. जनार्दन रेड्डी एमएलसी थे, जबकि करुणाकर रेड्डी ने सांसदी से इस्तीफा दिया था और हरपनहाली विधानसभा सीट से विधायक बने थे. इसी दौरान बीजेपी येदियुरप्पा सरकार को स्थिरता देने के लिए ऑपरेशन लोटस चलाकर कांग्रेस के तीन और जेडीएस के चार विधायक तोड़ लिए. और उपचुनाव के बाद बीजेपी के अपने दम पर कुल 115 विधायक हो गए.


 2009 में कर्नाटक में अवैध खनन के मामले ने इतना तूल पकड़ा कि सीबीआई की भी एंट्री हो गई. लोकायुक्त की भी जांच शुरू हो गई. नतीजा ये हुआ कि 2011 में अवैध खनन के मामले में जनार्दन रेड्डी गिरफ्तार हो गए. बीएस येदियुरप्पा को भी इस्तीफा देना पड़ा. फिर येदियुरप्पा ने बीजेपी से अलग होकर नई पार्टी बनाई. नाम रखा कर्नाटक जनता पक्ष. वहीं रेड्डी ब्रदर्स के एक और करीबी, बचपन के दोस्त और रेड्डी ब्रदर्स के मुंहबोले भाई बी श्रीरामुलु ने भी बीजेपी छोड़ दी और अपनी नई पार्टी बनाई बीएसआर कांग्रेस. सबने मिलकर 2013 के विधानसभा चुनाव में बीजेपी को मात दे दी और सरकार बन गई कांग्रेस की. मुख्यमंत्री बने सिद्धारमैया.


रेड्डी ब्रदर्स को जमानत कैसे मिली? 


अब 2014 के विधानसभा चुनाव करीब आ रहे थे. बीजेपी को भी पता चल गया था कि दक्षिण भारत और खास तौर से कर्नाटक में जीत के लिए रेड्डी ब्रदर्स की जरूरत है. रेड्डी ब्रदर्स को भी पता था कि जेल से निकलना है तो उसी के साथ जाना पड़ेगा, जिसकी केंद्र में सरकार होगी.  फिर 2014 का लोकसभा चुनाव आते-आते सबने घरवापसी कर ली. बीएस येदियुरप्पा ने अपनी पार्टी का विलय कर लिया और शिवमोगा से 2014 में सांसद बन गए. श्रीरामुलु बेल्लारी से सांसद बन गए. मोदी सरकार बनने के एक साल के अंदर ही रेड्डी ब्रदर्स को जमानत भी मिल गई और उनके खिलाफ चल रही सीबीआई जांच भी ठंडे बस्ते में चली गई.


2018 में रेड्डी ब्रदर्स के रसूख का बीजेपी को फायदा मिला. जनार्दन रेड्डी पर गंभीर आरोप थे तो वो पार्टी में शामिल नहीं हुए. लेकिन जनार्दन रेड्डी के दोनों भाइयों यानी कि करुणाकर रेड्डी और सोमशेखर रेड्डी को कर्नाटक में 22 विधानसभा सीटों का इंचार्ज बनाया गया. सात सीटों के टिकट इन्हीं दो भाइयों के कहने पर बांटे गए. और उस चुनाव में बीजेपी ने रेड्डी ब्रदर्स के इलाके में फतह हासिल की. क


क्या रेड्डी ब्रदर्स कामयाब हो पाएंगे?


अब पांच साल बाद स्थितियां बदल गई हैं. अब फिर से कर्नाटक में विधानसभा के चुनाव है, लेकिन अब रेड्डी ब्रदर्स बीजेपी के साथ नहीं हैं. उन्होंने अपनी नई पार्टी बनाई है और नाम दिया है कल्याण राज्य प्रगति पार्टी. कभी जिस रेड्डी ब्रदर्स पर खनन के जरिए घोटाले करके सरकार को अरबों रुपये की चपत लगाने के आरोप लगे थे, अब वही रेड्डी ब्रदर्स अपनी नई पार्टी बनाकर और 2023 के विधानसभा चुनावों में सभी 224 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारकर राज्य का कल्याण करना चाहते हैं, लेकिन क्या रेड्डी ब्रदर्स कामयाब हो पाएंगे या फिर कर्नाटक की राजनीति में पहले से मौजूद तीन राजनीतिक प्लेयर बीजेपी, कांग्रेस और जेडीएस के बीच ये चौथे प्लेयर बनेंगे जिनका वोट बैंक बीजेपी के वोट बैंक से मिलता जुलता है और क्या रेड्डी ब्रदर्स भी बीजेपी के लिए ठीक उसी तरह की मुसीबत बनेंगे जैसी मुसीबत अरविंद केजरीवाल ने कांग्रेस के लिए खड़ी कर रखी है. इन सबका लेखा-जोखा सामने आने में अभी थोड़ा वक्त है. 


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