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Karnataka Election: PFI बैन लेकिन उससे जुड़ी पार्टी कर्नाटक में मजबूत कर रही जमीन, 100 सीटों पर मेगा प्लान

Karnataka Election: पीएफआई पर पिछले साल केंद्र सरकार ने बैन लगा दिया था. हालांकि उसकी राजनीतिक शाखा एसडीपीआई सक्रिय है और कर्नाटक विधानसभा चुनाव में उतरने की तैयारी में है.

Karnataka Assembly Election: सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ इंडिया (SDPI) कर्नाटक में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव में 100 उम्मीदवार उतारने की तैयारी कर रही है. कर्नाटक में पार्टी के चुनाव प्रभारी बनाए गए अफसर कोडलीपेट ने बताया कि 7 जनवरी को पहली लिस्ट जारी की जाएगी. 

पीपल्स फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) को केंद्र सरकार ने कट्टरपंथी संगठन की लिस्ट में डाल रखा है। इसकी ही राजनीतिक शाखा है एसडीपीआई. पिछले साल ही पीएफआई से संबंध सभी इकाइयों पर प्रतिबंध लगा दिया था, एसडीपीआई की गतिविधियों पर रोक नहीं लगाई गई थी. अब एसडीपीआई कर्नाटक विधानसभा चुनाव में ताल ठोंकने की तैयारी कर रहीहै. 

पहले भी लड़ चुकी है चुनाव
हालांकि यह पहली बार नहीं है जब एसडीपीआई चुनावी लड़ने जा रही है. हालांकि पार्टी राज्य में अभी तक खाता भी नहीं खोल पाई है, इस तथ्य के बावजूद पार्टी इस बार हिजाब मामले पर बीजेपी के खिलाफ राज्य भर में किए गए आंदोलन के चलते राजनीतिक लाभ मिलने की महत्वाकांक्षा रख रही है.

पार्टी के प्रदेश प्रभारी कोडलीपेट एसडीपीआई की शुरुआत से ही इसके साथ जुड़े हुए हैं और पार्टी के महासचिव भी हैं. इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत में उन्होंने बताया कि चुनाव से पहले ही वह राज्य के 54 विधानसभा क्षेत्रों का दौरा कर चुके हैं और जल्द ही अभियान शुरू करेगी.

पार्टी का राजनीतिक सफर
कर्नाटक में एसडीपीआई के राजनीतिक सफर पर नजर डालें तो पार्टी 2013 के विधानसभा चुनाव में पहली बार मैदान में उतरी थी. तब पार्टी ने बहुजन समाज पार्टी के साथ हाथ मिलाया था.  पार्टी को उन सभी सीटों पर हार मिली थी, जहां पर उसने उम्मीदवार उतारे थे. 

2018 में एसडीपीआई अकेले चुनाव में उतरी और 4 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे. इस बार भी उसका खाता नहीं खुला. पार्टी के सभी उम्मीदवार चुनाव हार गए.

सिर्फ मुसलमानों पर फोकस नहीं
कोडलीपेट के मुताबिक इस बार के विधानसभा चुनाव में पार्टी पुराने मैसूर, कर्नाटक के तटीय इलाके और कल्याण कर्नाटक पर फोकस कर रही है. उन्होंने बताया पार्टी का फोकस केवल मुसलमानों पर नहीं है. पार्टी 100 उम्मीदवार उतार रही है, इसमें केवल मुसलमान ही नहीं बल्कि दलित, ईसाई और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) समुदाय के लोग भी होंगे."

कोडलीपेट अपने राजनीति में आने की वजह ही दलितों के साथ होने वाले भेदभाव को बताते हैं, जो उन्होंने अपने गांव में देखा था. साथ ही वे इसमें भ्रष्टाचार को भी वजह बताते हैं. इससे ये साफ पता चलता है कि पार्टी दलित वोटरों पर नजर बनाए हुए है. वो कहते हैं कि मैने अधिकारियों को विधवा पेंशन और बीपीएल कार्ड बनाने के लिए रिश्वत की मांग करते देखा है. गांव में दलितों के साथ भेदभाव देखा है. अगर हमें सिस्टम में बदलाव करना है तो हमें इसका हिस्सा होना होगा. एसडीपीआई ने मुझे मौका दिया है."

2012 में हुई थी गिरफ्तारी
साल 2012 में कोडलीपेट ने दक्षिणपंथी संगठन श्रीराम सेना के खिलाफ प्रदर्शन करने को लेकर गिरफ्तार किया था. श्रीराम सेना ने उन पर सरकारी बिल्डिंग पर पाकिस्तान का झंडा लगाने का आरोप लगाया था. हालांकि बाद में उन्हें बरी कर दिया गया था.

राज्य में हिजाब विवाद को लेकर भी कोडलीपेट ने मुखरता से आवाज उठाई. हालांकि वे इस मामले को धार्मिक नहीं कहते. उनका कहना है कि स्कूल में हिजाब पहनने की छात्राओं की मांग का इसलिए समर्थन किया क्योंकि यह उनका संवैधानिक अधिकार है. उनके मुताबिक यह समर्थन इसलिए नहीं था कि यह मुस्लिम समुदाय से जुड़ा मुद्दा था.

पार्टी के 40% सदस्य गैर मुस्लिम
मुस्लिम पार्टी का ठप्पा लगने के सवाल पर एसडीपीआई महासचिव ने कहा यह सही है कि पार्टी की शुरुआत मुसलमानों ने की थी लेकिन इसका उद्देश्य हमेशा समाज के लिए रहा है न किसी समुदाय विशेष के लिए. बड़ा दावा करते हुए कहा पार्टी के 40 प्रतिशत सदस्य गैर मुस्लिम हैं. उन्होंने यह भी बताया कि 5 सालों में पार्टी तेजी से बढ़ी है. 5 साल पहले पार्टी में 65 ग्राम पंचायत सदस्य और एक ग्राम पंचायत अध्यक्ष थे. वर्तमान में पार्टी के पास 285 ग्राम पंचायत सदस्य है जबकि ग्राम पंचायतों के मुखिया की संख्या 5 हो चुकी है.

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