Karnataka Assembly Elections 2023: कर्नाटक विधानसभा चुनाव: क्या बीजेपी और कांग्रेस के लिए खतरा बनेगी जेडीएस या अस्तित्व बचाने की लड़ाई लड़ेंगे कुमारस्वामी?
HD Kumaraswamy: जेडीएस की पुराने मैसूर क्षेत्र में अच्छी-खासी पकड़ है और राज्य का दूसरा सबसे बड़ा वोटबैंक वोक्कालिंगा समुदाय पार्टी के पारंपरिक वोटर के तौर पर जाना जाता है.
Karnataka Assembly Elections 2023: कर्नाटक विधानसभा चुनावों में चार से भी कम महीनों का समय बचा हुआ है. राज्य के दो बड़े दलों बीजेपी और कांग्रेस के ने सत्ता पाने को लेकर सियासी बिसात बिछानी शुरू कर दी है. वहीं, क्षेत्रीय दल जेडीएस एक बार फिर से 'किंगमेकर' बनने की तैयारी में जुट गया है. बीजेपी और कांग्रेस के मुकाबले इस बार जेडीएस ने पहले ही 224 विधानसभा सीटों वाले राज्य में 93 प्रत्याशियों के नामों का ऐलान कर दिया है. वहीं, संभावना जताई जा रही है कि कुछ दिनों में और नामों की भी घोषणा हो सकती है.
कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी अपनी जीत को लेकर आश्वस्त होने का दावा कर रहे हैं. उनका कहना है कि कर्नाटक विधानसभा चुनाव में जेडीएस सभी 'मिशन 123' पर काम कर रही है और पार्टी इस बार बहुमत से सरकार बनाएगी. कमोबेश सत्तारुढ़ दल बीजेपी भी अपनी वापसी को लेकर इसी तरह के दावे कर रही है. वहीं, कांग्रेस भी अकेले ही सरकार बनाने का दंभ भर रही है.
राज्य के चुनावी इतिहास पर नजर डाली जाए, तो जेडीएस के दावों में कोई खास दम नजर नहीं आता है. उलटा उसकी सीटें पिछले चार विधानसभा चुनावों में लगातार कम ही हुई हैं. इस साल होने वाला कर्नाटक विधानसभा चुनाव सीधे तौर पर जेडीएस के लिए सियासी अस्तित्व बचाए रखने की लड़ाई होने वाला है. हालांकि, ये भी संभव है कि 2018 की तरह जेडीएस फिर से 'किंगमेकर' बनकर अपना सीएम बना ले. वैसे, देखना दिलचस्प होगा कि एचडी कुमारस्वामी अपनी पार्टी को 'ऑपरेशन लोटस' से कैसे सुरक्षित रख पाएंगे?
कुमारस्वामी का दावा और पार्टी की सियासी स्थिति
224 सदस्यीय कर्नाटक विधानसभा में बहुमत का आंकड़ा 112 है. वहीं, कर्नाटक विधानसभा चुनाव 2023 के लिए जेडीएस नेता एचडी कुमारस्वामी ने 123 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है. हालांकि, पार्टी ने 2004 के विधानसभा चुनाव में 58 सीट जीती थीं और इसके बाद से ही लगातार उसकी सीचों में कमी आई है. 2008 के विधानसभा चुनाव में 28 सीटों पर जीत हासिल की थी. 2013 में जेडीएस की सीटें बढ़कर 40 हो गई थीं, लेकिन 2018 में 37 सीटों पर ही जीत दर्ज कर सकी थी. सियासी पंडितों का कहना है कि जेडीएस का मिशन 123 सिर्फ एक मजबूत प्रतिद्वंदी के तौर पर खुद को प्रदर्शित करने की कोशिश भर है.
वोक्कालिंगा समुदाय के बीच जेडीएस की मजबूत पकड़
जेडीएस की पुराने मैसूर क्षेत्र में अच्छी-खासी पकड़ है और राज्य का दूसरा सबसे बड़ा वोटबैंक वोक्कालिंगा समुदाय पार्टी के पारंपरिक वोटर के तौर पर जाना जाता है. लंबे समय से जेडीएस का वोट शेयर 20 फीसदी के आसपास रहा है. वहीं, सियासी गलियारों में चर्चा है कि इस बार दलित मतदाताओं को अपने खेमे में लाने के लिए कुमारस्वामी बसपा के साथ गठबंधन भी कर सकते हैं. जो कर्नाटक की 36 आरक्षित विधानसभा सीटों पर जेडीएस के लिए बेहतर मौका बना सकती है, क्योंकि राज्य का दलित मतदाता हर चुनाव में अपना रुख बदलता रहता है.
कन्नड़ गौरव के नाम पर जुटेंगे कितने वोट?
कर्नाटक विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने लिंगायत और वोक्कालिंगा समुदाय को अपने पक्ष में लाने के लिए पहले ही आरक्षण का कोटा बढ़ाने का दांव चल दिया है. जिसके खिलाफ जेडीएस क्षेत्रीय गौरव का मुद्दा उठाकर खुद को इकलौती कन्नड़ पार्टी बताने में जुटी हुई है. हालांकि, क्षेत्रीय गौरव के नाम पर जेडीएस को कितने वोट मिलेंगे, ये चुनाव के बाद ही पता चलेगा. वहीं, कुमाररस्वामी की 'पंचरत्न रथ यात्रा' किए जा रहे वादे जेडीएस को मजबूत स्थिति में ला सकते हैं.
'बी' टीम फिर से बनेगी किंगमेकर?
जेडीएस पर बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही एक-दूसरे की 'बी' टीम होने का आरोप लगाते रहते हैं. इन आरोपों पर एचडी कुमारस्वामी कहते हैं कि जेडीएस के खिलाफ बीजेपी और कांग्रेस का दुष्प्रचार अभियान कामयाब नहीं होगा. हालांकि, उन्होंने ये भी इशारा कर दिया है कि अगर समान विचारधारा वाली पार्टियां उनके साथ आती हैं, तो गठबंधन के रास्ते खुले रहेंगे. आसान शब्दों में कहें, तो जेडीएस राज्य में कांग्रेस के साथ गठबंधन कर सकती है. वैसे, देखना दिलचस्प होगा कि क्या कांग्रेस कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले जेडीएस के साथ गठबंधन को तैयार होगी?
ये भी पढ़ें: