राहुल कर रहे आबादी से हिस्सेदारी देने की मांग, लेकिन कर्नाटक कैबिनेट में दलित-मुस्लिम और महिलाओं को नहीं मिला ‘हक’
सिद्धारमैया कैबिनेट में महिलाओं और मुसलमानों को सिर्फ प्रतीकात्मक भागीदारी मिली है. वो भी ऐसे समय में जब राहुल गांधी आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी देने की मांग को लेकर मुहिम छेड़े हुए हैं.
सरकार गठन के एक हफ्ते बाद सिद्धारमैया कैबिनेट का विस्तार भी हो गया है. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने सीएम और डिप्टी सीएम के बीच विवादों को सुलझाते हुए 24 नामों पर मुहर लगा दी है. सरकार गठन के वक्त मुख्यमंत्री और उप-मुख्यमंत्री के अलावा 8 मंत्रियों ने शपथ ली थी.
कर्नाटक कैबिनेट में कांग्रेस ने जातीय और क्षेत्रीय समीकरण को साधने का दावा किया है, लेकिन कैबिनेट में महिलाओं और मुसलमानों को सिर्फ प्रतीकात्मक भागीदारी मिली है. वो भी ऐसे समय में जब राहुल गांधी आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी देने की मांग को लेकर मुहिम छेड़े हुए हैं.
कर्नाटक चुनाव के दौरान ही राहुल गांधी ने 'जितनी आबादी, उतना हक' का नारा दिया था. ऐसे में माना जा रहा था कि राहुल के इस नारे की छाप कर्नाटक की नई कैबिनेट में भी दिख सकती है. 224 सदस्यों वाली कर्नाटक विधानसभा में कांग्रेस को 135 सीटें मिली है.
जितनी आबादी, उतना हक का नारा क्या है?
यह स्लोगन नया नहीं है. 1960 के दशक में समाजवादी नेता राम मनोहर लोहिया ने सत्ता के शीर्ष पदों पर सिर्फ एक जाति के वर्चस्व को चुनौती देने के लिए यह नारा दिया था. उस वक्त समाजवादियों का नारा था- सोपा ने बांधी गांठ, पिछड़े पावें सौ में साठ.
लोहिया का तर्क था कि देश में पिछड़े और दलितों की आबादी 60 फीसदी से अधिक है, लेकिन सत्ता में उसकी भागीदारी काफी कम है. लोहिया का यह नारा काम कर गया और 1967 के आसपास कई राज्यों में कांग्रेस की सरकार चली गई.
धीरे-धीरे यह मुद्दा पूरे देश में फैलता गया. 1990 में बीजेपी के राम मंदिर आंदोलन के बरक्स जनता दल के नेताओं ने मंडल कमीशन का बिगुल फूंक दिया. सरकारी नौकरी में मिलने वाले आरक्षण में संशोधन भी किया गया.
हाल ही में इस मुद्दे को फिर से तूल देते हुए बिहार में नीतीश कुमार की सरकार ने जातीय जनगणना का फैसला किया है. कांग्रेस भी इस मुद्दे को खूब तरजीह दे रही है और जातीय जनगणना कराने की मांग कर रही है. कर्नाटक में राहुल गांधी ने इसी रणीनीति के तहत जितनी आबादी, उतना हक का नारा दिया था.
राहुल गांधी के मुताबिक दिल्ली में जो नीति तय कर रहे हैं, वहां दलित-पिछड़ों की भागीदारी काफी कम है. ऐसे में सरकार आबादी के हिसाब से हिस्सेदारी देने की फॉर्मूले को अमल में लाए.
कैबिनेट में हिस्सेदारी का गुणा-गणित
14 फीसदी वाले लिंगायत को मिला 7 मंत्री पद
बीजेपी के कोर वोटर माने जाने वाले लिंगायत कर्नाटक में 14 प्रतिशत के आसपास है. कर्नाटक चुनाव में कांग्रेस ने भी लिंगायतों को खूब तरजीह दी. पार्टी ने इस बार 46 लिंगायत उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, जिसमें से 37 जीतने में सफल भी रहे.
कैबिनेट में लिंगायतों को खूब तरजीह दी गई है. कांग्रेस ने लिंगायत समुदाय से आने वाले 7 नेताओं को मंत्री बनाया है. इनमें एमबी पाटील, इश्वर खंडारे, एस दर्शनपुर, शिवानंद पाटील, एस.एस मल्लिकार्जुन, एसपी पाटील और लक्ष्मी हेबाल्कर का नाम शामिल हैं.
लोकनीति-सीएसडीएस के मुताबिक कर्नाटक चुनाव में सिर्फ 29 प्रतिशत लिंगायतों ने कांग्रेस के पक्ष में वोट किया था. बीजेपी की सरकार में भी लिंगायतों का दबदबा था. मुख्यमंत्री बासवाराज बोम्मई के अलावा 8 मंत्री सरकार में लिंगायत समुदाय के शामिल किए गए थे.
11 फीसदी वाले वोक्कलिगा सरकार में पावरफुल
कर्नाटक में लिंगायत के बाद वोक्कालिगा की आबादी सबसे अधिक है. राज्य में करीब 11 फीसदी वोक्कलिगा हैं. हालांकि, समुदाय इससे अधिक का दावा करती रही है. कर्नाटक कैबिनेट में लिंगायत की तरह ही वोक्कलिगा भी सबसे पावरफुल हैं.
वोक्कलिगा समुदाय से आने वाले डीके शिवकुमार सरकार में उपमुख्यमंत्री बनाए गए हैं. शिवकुमार के अलावा वोक्कलिगा समुदाय से 5 और मंत्री बनाए गए हैं इनमें रामलिंगा रेड्डी, एमसी सुधाकर, कृष्णा बायेर गौड़ा, एन चेलुवरस्वामी और के वेंकटेश का नाम शामिल हैं.
कर्नाटक में वोक्कलिगा पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा की पार्टी जनता दल सेक्युलर का कोर वोटर माना जाता रहा है. कांग्रेस ने इस बार वोक्कलिगा समुदाय से 42 उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, जिसमें से 21 जीतने में सफल रहे. वोक्कलिगा समुदाय के सौम्या रेड्डी 16 वोटों से चुनाव हार गई.
लोकनीति-सीएसडीएस सर्वे में कहा गया है कि वोक्कालिगा समुदाय के 49 प्रतिशत वोट कांग्रेस को मिले हैं. बीजेपी की बोम्मई सरकार में भी वोक्कलिगा को खूब तरजीह दी गई थी. 7 मंत्री वोक्कलिगा समुदाय से बीजेपी ने बनाए थे.
18 फीसदी दलित, लेकिन कैबिनेट में सिर्फ 6 मंत्री
कर्नाटक में दलित समुदाय की आबादी करीब 18 फीसदी है. कांग्रेस के अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे भी दलित हैं और कर्नाटक से आते हैं. कर्नाटक में जीत के बाद दलित नेताओं ने डिप्टी सीएम का पद मांगा था, लेकिन हाईकमान ने इसे ठुकरा दिया.
कर्नाटक में दलित समुदाय से सिर्फ 6 मंत्री बनाए गए हैं, जिसमें एक खरगे के बेटे प्रियांक का नाम भी है. प्रियांक के अलावा जी परमेश्वर, केएच मुनियप्पा, शिवराज तंगादगी, एचसी महादेवा और आरबी तिमापुर कैबिनेट मंत्री बनाए गए हैं.
कर्नाटक में दलितों के लिए विधानसभा की 36 सीटें रिजर्व है. कांग्रेस ने इस बार 38 दलित उम्मीदवार मैदान में उतारे थे, जिसमें से 27 सदन पहुंचने में कामयाब रहे. 2018 में कांग्रेस ने जेडीएस के साथ समझौते में दलित नेता जी परमेश्वर को डिप्टी सीएम बनाया था.
13 फीसदी मुसलमान पर कैबिनेट में सिर्फ 2
कर्नाटक में मुसलमानों की आबादी 13 प्रतिशत से अधिक है. कांग्रेस ने अहिन्दा फॉर्मूला के तहत मुसलमानों को साधने की रणनीति पर काम किया. कांग्रेस की यह रणनीति सफल भी रही और मुसलमानों ने पार्टी के पक्ष में जमकर मतदान किया.
लोकनीति-सीएसडीएस के सर्वे के मुताबिक कर्नाटक में 70 फीसदी मुसलमानों ने कांग्रेस के पक्ष में वोट डाले, जबकि 14 प्रतिशत मुसलमानों ने जेडीएस को वोट दिया. इस बार 9 मुस्लिम विधायक जीतकर सदन पहुंचे हैं. दिलचस्प बात है कि सभी कांग्रेस के ही हैं.
कर्नाटक में कांग्रेस ने इस बार सिर्फ 15 मुसलमानों को टिकट दिया था, जिसमें से 9 जीतने में कामयाब भी रहे. सरकार बनने के बाद मुस्लिम नेताओं ने डिप्टी सीएम की कुर्सी देने की मांग की थी, लेकिन कैबिनेट में सिर्फ 2 पद मुसलमानों को मिला है.
कांग्रेस ने बी जमीर अहमद और रहीम खान को मुस्लिम कोटे से मंत्री बनाया है. 2013 में सिद्धारमैया की सरकार में मुस्लिम कोटे से 4 मंत्री बनाए गए थे. हालांकि, इस बार कांग्रेस ने स्पीकर का पद मुस्लिम नेता यूटी खादर को दिया है.
आधी आबादी को हक देने में कांग्रेस भी फिसड्डी
सोनिया गांधी के वक्त से ही कांग्रेस महिलाओं को 33 फीसदी हिस्सेदारी देने की बात करती रही है, लेकिन कर्नाटक में आधी आबादी को हक देने में कांग्रेस पूरी तरह फिसड्डी साबित हुई है.
चुनाव आयोग के मुताबिक कर्नाटक में 43.7 फीसदी महिला वोटर्स है, लेकिन सिद्धारमैया की सरकार में सिर्फ एक महिला को मंत्री बनाया गया है. लक्ष्मी हेबाल्कर लिंगायत और महिला कोटे से मंत्री बनी हैं.
कर्नाटक में कांग्रेस ने इस बार 11 महिलाओं को टिकट दिया था, जिसमें से 4 जीतने में कामयाब रही थी. कयास लगाया जा रहा है कि पोर्टफोलियों आवंटन में हेबाल्कर को महिला विभाग मिल सकता है.
कांग्रेस ने महिलाओं को साधने के लिए पेंशन, फ्री बस यात्रा जैसी स्कीम की घोषणा की थी. पार्टी को इसका जबरदस्त फायदा भी मिला, लेकिन सरकार में महिलाएं भागीदारी नहीं पा सकी. सिद्धारमैया के पहली कैबिनेट में 3 महिलाओं को मंत्री बनाया गया था.
4 जिले से एक भी मंत्री नहीं
कर्नाटक कैबिनेट में जातीय के साथ-साथ क्षेत्रीय समीकरण को भी कांग्रेस ने साधने की कोशिश की है, लेकिन 4 जिले से एक भी मंत्री नहीं बने हैं. इनमें चिकमंगलूर, हावेड़ी, कोडागु और चमराजनगर का नाम शामिल हैं.
हावेड़ी में 6 में से 5 सीटें कांग्रेस के खाते में गई थी. वहीं चिकमंगलूर में भी सभी 5 सीटें कांग्रेस जीत गई थी. कोडागु और चमराजनगर में भी पार्टी का परफॉर्मेंस शानदार रहा. कोडागु की सभी 2 सीटों पर और चमराजनगर में 3 में से 2 सीटों पर पार्टी को जीत मिली थी.
हालांकि, पार्टी ने चमराजनगर से आने वाले सी पुट्टारंगशेट्टी को डिप्टी स्पीकर बनाने का फैसला किया है.
कैबिनेट का विरोध शुरू, नेताओं के समर्थक सड़क पर उतरे
सिद्धारमैया कैबिनेट का कांग्रेस के भीतर ही विरोध शुरू हो गया है. विधायक टीबी जयचंद्रा, विधायक एम कृष्णप्पा, रुद्रप्पा लमानी और प्रिया कृष्णा के समर्थक सड़कों पर उतर आए हैं.
समर्थकों का कहना है कि कैबिनेट में वरिष्ठ नेताओं को तरजीह नहीं दी गई है. इन चार विधायकों के अलावा आरवी देशपांडे और बीके हरिप्रसाद के मंत्री नहीं बनाए जाने पर भी सवाल उठ रहे हैं.